संक्षिप्त परिचय :- इस दुनिया का नियम है बदलाव। और कभी कभी जो रिश्ते हमें जान से भी प्यारे होते हैं वो भी बदल जाते हैं। ऐसी ही बात कहती यह कविता ‘ अपना मेहमान ‘।
जीना अब ज़रा सा आसान हो गया है,
लगता है कोई अपना मेहमान हो गया है,
जिसे जानते थे खुद से ज्यादा कभी हम,
शायद वो ही कहीं गुमनाम हो गया है,
फिर भी लगता है कोई अपना मेहमान हो गया है ।।
कर्मा सिर्फ एक शब्द ही नहीं सबक़ है,
इस बात से क्यूँ वो अनजान हो गया है,
क्यों? एक रिश्ते को बचाते-बचाते मेरी,
शराफत का तमाशा सरेआम हो गया है,
फिर भी लगता है कोई अपना मेहमान हो गया है ।।
डर जरा भी न था तमाशे का मुझको,
न सोचा कभी, वो अन्जाम हो गया है,
उस रिश्ते की बुनियाद ही झूठी थी,
शायद तभी वो आज बदनाम हो गया है,
फिर भी लगता है कोई अपना मेहमान हो गया है ।।
बेगैरत सी ज़िंदगी बर्दाश्त हो तुझको,
मेरे सब्र का भी अब इम्तिहान हो गया है,
था दिल में तेरे लिए एक बगीचा खिला,
हाँ आज वो शांत कब्रिस्तान हो गया है,
फिर भी लगता है कोई अपना मेहमान हो गया है ।।
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इस कविता के लेखक सौरव मिश्रा के बारे में जाने ले लिए यहाँ पढ़े ।
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PC: Benjamin Davies
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Wow….. unbelievable
……. loved it


Kitna achha likha h
Keep it up
Supper
A1
Nyc
Amazing
Jis prakar pani ko jarurat nhi kisi ayne ki. khule aakash me wo khud ayna ban jata h. Sourabh sir hum ye duayain karte hn aap ise tarah se kavita likhte rahe hn…