मुझे आत्मज्ञान की तलाश है | बदलाव पर कविता

अक्षय कंडवाल की कविता

मुझे आत्मज्ञान की तलाश है | अक्षय कंडवाल की कविता | बदलाव पर कविता

संक्षिप्त परिचय: समाज में बदलाव के लिए भीतर से आवाज उठाती मन की आत्मा, हम भी कल उस भीड़ का हिस्सा बनकर उस भीड़ में शामिल हो जाएंगे, अगर आज हमने अपने अंदर बदलाव नहीं किया तो कल हम खुद आज के दिन को याद करके हमेशा पछताएंगे, बदलाव शुरू होता है सोच और विचारधारा में आने वाले बदलाव से, खुद से ज्यादा दूसरों के लिए करने की सोचो वह भी निस्वार्थ भाव से, आप इन छोटी वजह से भी इस भीड़ से अलग नजर आओगे कुछ ऐसे ही विचारों पर है अक्षय कंडवाल की यह कविता ।

मेरी लाश में भी वही बात होगी , जो दुसरो को जलाने के बाद होगी ।

चिंगारी भड़क उठेगी जिस्म जल जाएगा ,
हर बुराई अच्छाई मन में दबा जाऊंगा ।

उठेगी जब हवा, उड़ेगा जब धुआँ आसमान की ऊंचाई तक,
हर किसी की साँसों में मेरा कतरा-कतरा बहेगा ।

जलते हुए अंगारो की गर्मी से तपेगा शरीर,
हड्डियों का ढांचा होगा राख में तब्दील ।
जब बनेगी राख हवा के साथ कुछ उड़ जायेगी ,
और कुछ पानी में बहकर अस्तित्व को अलविदा कह जायेगी ।।

पहचान बनानी पड़ती है पहचान चुराई नहीं जाती ,
बगैर पहचान के आपकी जिंदगी बदल नहीं पाती ।

जिन्दा रहोगे तो सिर्फ अपनों को ही पाओगे ,
पर जलते हुए शरीर को देखने अनजान भी आएँगे ।

नाम सिर्फ नाम नहीं एक पहचान है ,
इस पहचान के साथ जिए , इसी पहचान से मरना समान है ।
मरते हुए जिस्म पे जुल्म ना करना ,
आग कम पड़ जाए और जिस्म वहीं पड़ा-पड़ा सड़ जाए ।

आत्मा शरीर मुझे नहीं पता दोनों का अंत साथ में है या नहीं ,
पर इस जीवन का अंत समय हम अपनी उम्र से ही पता कर लेते है ।


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कवि के बारे में जानने के लिए पढ़े यहाँ: अक्षय कंडवाल



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