‘मद्रास की मुर्गी’ और ‘गुड़िया वाला अण्डा’ | एक प्यारी सी कहानी

तुलसी पिल्लई "वृंदा" की कहानी | Short Story in Hindi written by Tulsi Pillai "Vrinda"

'मद्रास की मुर्गी' और 'गुड़िया वाला अण्डा' | एक प्यारी सी कहानी | तुलसी पिल्लई "वृंदा" की कहानी

संक्षिप्त परिचय : बचपन के दिन अलग होते हैं। हर चीज़ एक अविश्वसनीय चीज़ लगती है और हम इस दुनिया को देख कर ये सोचते हैं कि यहाँ कुछ भी हो सकता है। बस ऐसे ही भोलेपन को दर्शाती और दिल को गुदगुदाती है ये प्यारी सी कहानी ।

पैदमा(मौसी) और अप्पा(मौसाजी) हमारे परिवार से मिलने के लिए मद्रास जाने की तैयारी कर रहे थे। मैं भी साथ चलने की जिद्द करने लगी।उस वक्त मेरी उम्र बहुत छोटी थी।लगभग चार-पाँच साल रही होगी।

उस समय रेल में मद्रास जाने के लिए शायद तीन या चार दिन की यात्रा होती थी। पैदमा और अप्पा कम से कम पन्द्रह दिन या एक महीने मद्रास में ठहरने का निश्चय कर चुके  थे।तो भला मुझे अपने साथ कैसे मद्रास ले जा सकते थे?उनको यह भय सता रहा था कि मद्रास में कहीं मैं अपनी माँ के पास आने की जिद करने लगी तो? क्योंकि मद्रास कोई प्रताप नगर (मौसी का निवास स्थान)और कमला नेहरू नगर(मेरा निवास स्थान) जैसे आधा घण्टे का सफर नहीं है।इस डर से वो मुझे अपने साथ नहीं ले जा रहे थे। मैंने मजबूरन आश्वासन दिया कि मैं मद्रास में माँ के लिए नहीं रोऊँगी। अगर मुझे छोड़कर मद्रास चले गए न??? (अप्पा की ओर देखकर और भीगी पलको के साथ) मैं बहुत रोऊँगी।

अप्पा स्नेहवश पैदमा से बोले:-“ले चलते है न लक्ष्मी(पैदमा)।बच्ची है।बोल रही है न, कि माँ के लिए नहीं रोऐगी।”

पैदमा मेरे अप्पा पर गुस्सा दिखाती हुई बोली :-“तुम चुप करो जी।दिमाग है कि नहीं?? यह तो ऐसे ही बोलेगी।यहाँ पर भी कितना अपनी माँ के लिए रोती है। वहाँ पर रोऐगी तो क्या छोड़ने वापस आओगे? अपने साथ मद्रास ले जाने की कोई जरूरत नहीं है।”

अप्पा को धमका सकती हूँ। आँख दिखाकर डरा सकती हूँ। लेकिन यह पैदमा??? मुझे इनसे थोड़ा डर लगता था।पैदमा ने साफ मना कर दिया और मैं रोने लगी। अप्पा ने मुझे रोते हुए देखकर तुरन्त गोद में उठा लिया। मुझे चुप कराने लगे। उन्होने मुझे बहलाने की कोशिश की।

मुझसे कहने लगे:-“पहले तू बडी़ हो जा। फिर तुझे मद्रास लेकर जाऊँगा।”

मैंने मुहँ फुला लिया। उनकी बातों को सुनकर भी अनसुना कर दिया।

अप्पा बोले:-“चल बता। तेरे लिए क्या लाऊँ?।”

मैंने क्रोध में कुछ जवाब नहीं दिया।

अप्पा ही बातों को आगे जारी रखते हुए बोले:-“मैं तो तेरे लिए ‘मद्रास की मुर्गी’ और ‘गुडियों वाला अण्डा’ लाऊँगा।”

बचपन में अप्पा की यह रोचक बातें मन को हर लेती थीं। मैं उनके वश में हो जाती थी। जैसे सपेरा बीन बजाकर नाग को अपने वश में कर लेता है। और अप्पा बच्चों के निश्छल और मासूम मन को विनम्रता से वश में करने का हुनर जानते थे। मुझे उनकी यह बातें सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ और मैं मद्रास जाना भूल बैठी।

मैंने अप्पा से पुछा:-” अप्पा! यह मद्रास की मुर्गी क्या है ? और यह गुड़ियों वाला अण्डा? “

अप्पा बोले:-” मद्रास में एक मुर्गी है। जो जोधपुर की मुर्गी की तरह नहीं है – बिल्कुल छोटी-छोटी सी। हमारे मद्रास की मुर्गी तो मेरे जितनी बड़ी-बड़ी है। वह मुर्गी ऐसी-वैसी मुर्गी नहीं है। वह तो इन्सानों की तरह बोलती है। जब मैं पिछली बार मद्रास गया था न? तो वो मुर्गी देखी थी। तुझे पता है कि उस मुर्गी ने मुझे देखकर वनकम किया था और मुझसे कहने लगी: -‘क्या भाई कैसे हो? मजे में हो?’, ‘फिर मैंने भी कहा ‘मैं ठीक हूँ।’

वो मुर्गी मुझसे बात कर रही थी। वो मुर्गी नाचती भी है। वो मुर्गी गाना भी गाती है। वो मुर्गी टी.वी भी देखती है। वो मुर्गी नहाती भी है। उसको नहाने के लिए साबुन चाहिए। वो मुर्गी कपडे़ भी पहनती है। यह मुर्गी सोने का अण्डा देती है।”

(यह सब बातें सुनकर मैं रोमांचित हो गई।ऐसी मुर्गी तो मेरे कल्पना से परे थी।मैं तो ऐसी मुर्गीयाँ केवल टेलीविजन के कार्टून नेटवर्क में देखा करती थी। जो इन्सान की तरह बात करती हो और साबुन से नहाती भी हो। यह तो मेरे लिए आश्चर्य का विषय बन गया। मुझे अप्पा से स्नेह होने लगा। वो मुझे इतनी प्यारी और  अनोखी चीज  भेंट करेंगे।)

और अप्पा आगे बोले:-“मैं तो इस मुर्गी पर बैठकर पूरा मद्रास घूमा। जब यह मुर्गी तेरे लिए लाऊँगा, तब तुझे भी जहाँ घुमने जाना हो, इस मुर्गी पर चढ़कर बैठ चली जाना। और यह मद्रास की मुर्गी तुझे पूरी दुनिया की सैर करवा देगी। यह तुझे पाँच मिनट में जहाँ जाना होगा पहुँचा देगी।”

मैं बहुत खुश हो गई ।

मैंने कहा:-“अप्पा,यह गुड़ियों वाला अण्डा़ क्या होता है?”

अप्पा बोले:-“मद्रास में एक अण्डा मिलता है। उस अण्डे से गुडिया निकलती है। वह गुड़िया दूध पीती है। अगर दूध न पीलाओ तो रोती है। वो तुझसे रोटी माँगेगी। जैसे तू हमेशा मेरी गोद में बैठी रहती है, वह भी तेरी गोद में बैठी रहेगी। उसे तुझे लोरी गाकर सुलाना पडे़गा। तब ही वह सोऐगी। तेरी चोटियाँ खींचेगी। तेरी अँगुली पकड़कर चलेगी। तेरे स्कूल का सारा गृहकार्य कर देगी। तू उसे कहानियाँ सुनाना।”

मुझे लगने लगा। जब वो गुड़िया आ जाऐगी, तब मुझे भी अप्पा जैसा बनने का सौभाग्य प्राप्त हो जाऐगा। और मैं भी अप्पा की तरह बन बैठूँगी। जितना अप्पा मुझसे प्रेम करते हैं, मैं भी उस गुड़िया से बहुत प्रेम करूँगी। और ऐसी सजीव गुड़िया की कल्पना में झूम उठी।

सच कहूँ तो मैं अब बहुत उत्सुक हो गई। क्योंकि अप्पा मुझे अपना बहुत कम समय दिया करते थे। सुबह दस बजे तक वह अपना समय हम सभी के साथ बिताते थे। फिर अपने होटल चले जाया करते थे। और शाम को होटल से आठ बजे या उससे भी ज्यादा समय रात को लौटते थे। मैं और मेरे भाई-बहन रोज अप्पा के होटल चले जाने के बाद अप्पा के लौटने की प्रतीक्षा में समय गुजारते थे। हम सभी छत की मुँडेरों पर चढ़-चढ़कर अप्पा के आगमन की प्रतीक्षा करते थे। गलियों में दूर से ही अप्पा को पाकर उनके पास दौड़ पड़ते थे और उनको घेर लेते थे।

मैं अप्पा की प्रतीक्षा में  कुछ ज्यादा ही बेचैन रहती थी। मुझे एकान्त का भी एक भयानक अनुभव होता था और मैं चाहती थी कि अप्पा चौबीसों घंटे मेरे साथ बिताऐं। मुझे यों ही अपनी अनोखी- अनोखी बातों से बहलाते फुसलाते रहे। मुझे खुश करते रहे। वे अपनी उल्टी-पुल्टी रोचक नयी-नयी बातें और जिन्दगी जीने का अलबेला ढंग सिखाते रहें।

जब अप्पा ने इस गुडिया वाला अण्डा़ और मद्रास की मुर्गी की बातें की। तो मैं बहुत ज्यादा ही खुश हो गई। जब यह दोनों मेरे पास आ जाऐंगे, तो मैं अप्पा की अनुपस्थिति में भी सहजता से रह लूँगी। और अगर अप्पा की कमी महसूस हुई तो उस मद्रास की मुर्गी पर बैठकर अप्पा के होटल पहुँच जाऊँगी। सब कुछ कितना अच्छा होगा। मुझे अप्पा की मद्रास की मुर्गी बहुत पसंद आई।

मैं बचपन से ही बहुत घुमक्कडी़ रही हूँ। अप्पा जहाँ जाएँ, उनकी अँगुली पकड़कर निकल पड़ती थी। इस तरह कभी मुझे कोई अपरिचित गली या रास्ता देखकर भय लगता था कि मैं कभी अकेली घुमने निकलूँ और रास्ता भूल बैठी तो क्या होगा? आज तो अप्पा मेरे साथ हैं। यह भय भी सताता था। कभी-कभी घुमते हुए यों ही कोई अद्भूत सुन्दर वस्तु मेरा मन मोह लेती। जैसे कोई सुन्दर उपवन या कोई सुन्दर इमारत। मुझे घुमक्कड़ बनने की चाह उमड़ती थी।

तब मैं सोचती थी कि मुझे इन सबसे अनजान नहीं रहना है। इस तरह बालपन से ही पूरी दुनिया देखने का स्वप्न पाल बैठी। और यह मद्रास की मुर्गी अब मेरा स्वप्न पूर्ण कर देगी। मैं उस पर बैठकर पूरी दुनिया को देख सकूँगी। क्योंकि यह दुनिया बहुत खूबसूरत है और यह दुनिया इस कुदरत की सुन्दरता का अद्भूत खजाना है। यदि मद्रास की मुर्गी मेरे पास होगी तो मेरे रास्तों के भूल जाने का डर भी नहीं रहेगा। यह मुझे कैसे भी करके सुरक्षित घर पहुँचा देगी।

इस तरह मुझे मूर्ख बनाकर अप्पा और पैदमा मद्रास  की यात्रा पर निकल पडे़। और यहाँ मैं स्वच्छन्द मन से कल्पनाओं के अतल सागर में डूबती जा रही थी। अप्पा के आने की प्रतीक्षा में अपने दिन गुजार रही थी। कब अप्पा आऐंगे? अप्पा मुझे ‘मद्रास की मुर्गी’ और ‘गुड़िया वाला अण्डा’ के स्वप्न के साथ छोड़ गए थे। मैं उन्हीं स्वप्नों के सहारे जीवन जीने लगी।

समय के साथ एक महीना बीत गया। अप्पा और पैदमा घर लौट आए। मैं, भूमा (छोटा भाई भुवनेश्वर)और दलो (छोटी बहन रूकमणी)ने अप्पा को घेर लिया। मेरे ख्याल से अप्पा ने भूमा और दलो को भी मूर्ख बनाने में कमी न की होगी। पैदमा अपने हिसाब से सबको मद्रास से खरीदी गई वस्तुएँ दिखा रही थी। हब सब भाई बहनों की नजर बैग पर ही टिकी थी। कब हमको हमारी इच्छानुकूल वस्तु मिलेगी? पैदमा और अप्पा भूमा और दलो के लिए मद्रास से क्या लाए थे? इसका मस्तिष्क को ज्यादा आभास नहीं। लेकिन मुझे मिली एक निर्जीव गुड़िया। मुझे मन के मुताबिक जो प्रसन्नता होनी चाहिए थी, उतनी नहीं हुई। फिर भी अप्पा के लौट आने की मन में भरपूर प्रसन्नता थी।

मैं रात को अप्पा के पास ही सोई, मन में उथल-पुथल मची हुई थी। क्या अप्पा ने मुझसे झूठ बोला? वो सारी कहानियाँ झूठी थी? और यहाँ अप्पा मद्रास से लौटकर बहुत खुश थे। कहीं अप्पा खुशी-खुशी में ‘मद्रास की मुर्गी’ और ‘गुड़ियों वाला अण्डा’  वाली बात भूल गए हों और उनको साथ लाना भूल बैठे तो नहीं? लेकिन यह बात न थी।अप्पा सोच रहे थे कि मैं इतने दिनों में सब कुछ भूल बैठी होंगी। वह पूरी तरह से निश्चिन्त थे।

मैंने उन्हें संस्मरण दिलाया:-“अप्पा, मद्रास जाने से पहले तुमने कहा था, मेरे लिए ‘मद्रास की मुर्गी’ और ‘गुड़िया वाला अण्डा’ लाओगे।लाए तो नहीं ?”

आज फिर से अप्पा अपने बिछाए जाल में आ फँसे। वह मुस्कुराते हुए बोले:-” गुड़िया तो लाकर दी न।”

मैंने कहा:-“ऐसी गुड़िया तो जोधपुर में भी मिलती है। सब मुझसे झूठ कहा न?”

अप्पा बोले:-” नहीं बेटा, तेरे अप्पा कभी झूठ बोलते है क्या? “

मैंने कहा:- “तब तो तुम भूल गए न? ‘मद्रास की मुर्गी’ और ‘गुड़िया वाला अण्डा’ लाना?”

अप्पा बोले:- “नहीं, मैं भूलक्कड़ नहीं हूँ। मुझे सब याद है। क्या हुआ न वो जो मुर्गी थी न, जिसके बारे में तुझे बताया था, उसका एक्सीडेंट हो गया और उसकी मौत हो गई। अब बता इसमें मेरी क्या गलती? मैं तेरे लिए दूसरी मुर्गी खोजने बाजार भी गया। लेकिन वैसी दूसरी मुर्गी कहीं मिली ही नहीं। तेरी इस मद्रास मुर्गी के लिए खूब परेशान हुआ। देख! मेरे पाँव अभी तक दर्द कर रहें है। बाम लगाना पड़ेगा।”

इससे मैं बहुत खुश हो गई। मैं बेवजह ही अपने अप्पा पर संदेह कर रही थी। इसमें अप्पा की कोई गलती नहीं थी।

“चलो! मद्रास की मुर्गी नहीं मिली ठीक है। लेकिन यह गुड़ियों वाला अण्डा – इसका क्या हुआ?”

अप्पा को फिर दुविधा ने घेर लिया।

शातिर व्यक्ति वह होता है, जो कैसी भी परिस्थिति हो, स्वयं को बचा ही लेता है और इस परिस्थिति से  बाहर निकलना अप्पा के लिए चुटकी का काम था।

अप्पा बोले:- “अब मैं सच बोलूँ या झूठ? क्योंकि अगर मैं सच बोलूँगा तो तु झूठ ही समझेगी। जाने दो। मैं चुप ही रहता हूँ। यही ठीक रहेगा।” अप्पा बचकर निकलने की सोचने लगे।

“ऐसे कैसे बक्श दूँ? नहीं बताओ? मैं झूठ नहीं समझूँगी।”

अप्पा बोले:-“अण्डा किससे होता है? पहले यह बता?”

मैंने कहा:-” मुर्गी से और किससे?”

अप्पा बोले:-” वही तो। इस वर्ष मुर्गी ने मुझे अण्डे देने से मना कर दिया।”

मैंने कहा:-“अण्डा देने वाली मुर्गी एक ही थी क्या?”

अप्पा बोले:-” नहीं,मुर्गी तो बहुत सारी थी।लेकिन मद्रास में इतनी गर्मी पडी़ कि सभी मुर्गी के अण्डे खराब हो गए।बस एक मुर्गी का अण्डा सही था। जो उस मुर्गी ने दिया ही नहीं। कमबख्त,वो मुर्गी बहुत गुस्सेल भी थी। मैं ज्यादा जबरदस्ती करता तो मेरी आँख फोड़ देती। तेरी पैदमा से जाकर पूछ कि उस मुर्गी ने एक बार मेरी अँगुली को चोंच मारकर घायल कर दिया था और मेरे खून से एक डिब्बा भर गया था। ओ…ए(कुछ याद करने का अभिनय करते हुए) वो खून का डिब्बा तो वहीं भूल आया। सोचा था,तुझे दिखाऊँगा। कि तेरे गुड़िया वाले अण्डे़ के वज़ह से क्या हुआ!”

मैंने कहा:-“किस अँगुली पर चोच मारा दिखाओ तो?”

अप्पा अपनी हल्की -सी अँगुली टेड़ी करके दिखाने लगे और मैंने जैसे ही उस अँगुली को छुआ तो आऊँच… आऊँच करने लगे। इस प्रकार वह अपनी सत्यता का प्रमाण दे रहे थे।

मुझे उस मुर्गी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। भला ऐसे भी कोई मुर्गी होती है क्या? एक अण्डा ही तो माँग रहे थे। उससे कौनसा सारे अण्डे माँग रहे थे?

मैंने कहा:-“अप्पा, वो मुर्गी रात को सोती नहीं है  क्या?”

अप्पा बोले :-” हा, सोती तो है। क्यों?”

मैंने कहा:-” अप्पा तब तो पैदमा सही कहती है कि तुम बहुत बेबकूफ हो। रात को चुपचाप उसके सो जाने के बाद तुमको एक अण्डा चुरा लेना था।”

अप्पा बोले:-“नहीं, नहीं! चोरी करना गलत बात है।”

मुझे अप्पा के इस आदर्शता पर गुस्सा आने लगा। अब कर भी क्या सकती थी? केवल गुस्सा पीने के अलावा।

मैंने कहा:-“अप्पा,अगली बार मुझे मद्रास ले जाओगे न ?”

अप्पा बोले:-” हाँ, ले जाऊँगा।”

मैंने कहा:-“पैदमा ने मना किया तब?”

अप्पा बोले:-“मैं तेरी पैदमा को मना लूँगा।”

मैं खुशी से बोल पड़ी :-“ठीक है तब तो मुझे  तुम उस मुर्गी का बता देना और वो अपने अण्डे़ कहाँ रखती है, उस जगह को भी बता देना।”

अप्पा मेरी मनसा ज्ञात कर चुके थे। और मुस्कुराते हुए बोले:-“क्यों? इससे क्या होगा?”

मैंने कहा:-“तुम उस मुर्गी से डर गए हो न? तभी तुम्हें उस मुर्गी के अण्डे़ को चुराने से डर लग रहा है।”

अप्पा बोले:-” नहीं, ऐसी बात नहीं है।”

मैंने कहा:-” तुम अण्डा़ मत चुराना। मैं उस मुर्गी का अंडा चुरा लूँगी। ठीक है।”

अप्पा बोले:-” नहीं, चोरी करना गलत बात है।”

मैंने कहा:-” क्या गलत बात है? मुझे गुड़िया वाला अण्डा चाहिए।”

अप्पा बोले:-” तू चोरी करेगी। फिर तो मैं तुझे मद्रास नहीं ले जाऊँगा।”

मैंने कहा:-“कोई बात नहीं। मैं अकेली बड़ी होकर मद्रास चली जाऊँगी।फिर उस मुर्गी का अण्डा़ चुरा लूँगी।”

अप्पा बोले:-” मैं उस मुर्गी को पहले से ही बता दूँगा। एक लड़की तेरे अण्डे चुराने आ रही है। फिर वो मुर्गी तुझे काट खाऐगी। तब मुझे बहुत मजा आऐगा।”

मुझे ऐसा लगने लगा, अप्पा मेरे दोस्त नहीं दुश्मन हैं। आज फिर अप्पा से लड़ बैठी। अप्पा की चारपाई छोड़ दी। अप्पा को धमकाई। “मैं अब से तुम्हारे घर कभी नहीं आऊँगी। कल सुबह होते ही अपने घर चली जाऊँगी। तुम्हारे साथ खेलूँगी भी नहीं। खाना भी तुम्हारे साथ नहीं खाऊँगी।” और मीना दीदी के पास आकर लेट गई।

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उस मुर्गी के अण्डे कैसे चुराऊँगी ? कहीं सच में अप्पा ने मुर्गी को सचेत कर दिया तो? अप्पा मेरा साथ भी नहीं दे रहे है। क्या करूँ? कुछ सूझ नहीं रहा। सारी रात जागती-जागती  मुझे बमुश्किल से नींद आई होगी। सुबह हुई।”कौन मद्रास की मुर्गी” और “कौनसा गुड़िया वाला अण्डा”? मुझे अप्पा की गोद प्यारी है और बस मेरे अप्पा ~

लेखिका तुलसी पिल्लई” वृंदा”


कैसी लगी आपको अप्पा और लेखिका के बीच की प्यारी सी बातों से भारी यह प्यारी सी कहानी । कॉमेंट में ज़रूर बताएँ और लेखिका को भी प्रोत्साहित करें।


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