हाँ मैं बदल गई हूँ | स्त्री और समाज पर कविता

शिखा सिंह(प्रज्ञा) की कविता | A Hindi Poem by Shikha Singh (Pragya)

हाँ मैं बदल गई हूँ | स्त्री और समाज पर कविता | शिखा सिंह(प्रज्ञा) की कविता | A Hindi Poem by Shikha Singh (Pragya)

संक्षिप्त परिचय: आज के समाज में जहां एक तरफ़ स्त्री को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी जाती है वहीं समाज का एक हिस्सा उसे वांछित सम्मान दे पाने में भी असक्षम है। स्त्री पर लिखी गयी यह कविता एक स्त्री के हृदय की आवाज़ है उसी समाज के लिए।

हाँ मैं बदल गई हूँ,
क्यूंकि तुम्हारे चेहरे पर चढ़े
नकाब के पीछे के इंसान को पहचान गई हूँ..।

हाँ मैं बदल गई हूँ,
क्यूंकि तुम्हारे दिल बहलाने वाले मीठी
बातों के पीछे की सच्चाई को समझ गई हूँ..।


हाँ मैं बदल गई हूँ,
क्यूंकि तुम्हारे आँखों में जो मुझे नोच लेने
की गन्दी चाह छुपी है, उस चाह को जान गई हूँ..।

तुम्हारे धोखे और ढोंग भरे दिलोशों
के माया जाल में अब नही आती
शायद इसलिए मैं बदल गई हूँ…।

हाँ तुम सही हो मैं बदल गई हूँ,
क्यूंकि तुम्हारे गन्दे इरादों को 
तुमसे ज्यादा मैं समझ गई हूँ..।

तुम्हारी झूठी प्रशंसा के
पीछे छिपे हर इरादे को भांप गई हूँ,
शायद इसलिए आज मैं बदल गई हूँ…।

हाँ मैं बदल गई हूँ,
क्यूंकि एक लड़की होने का 
मतलब मैं बखूबी समझ गई हूँ,
कल तक जो थी एक मासूम गुड़िया
आज मैं बड़ी हो गई हूँ,
कैसे रहना है तुमसे बचकर
उस बचाव को सीख गई हूँ,
इसलिए मैं बदल गई हूँ
हाँ ये सच है, मैं बदल गई हूँ…।


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यह कविता की लेखिका शिखा सिंह(प्रज्ञा) के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।

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2 thoughts on “

हाँ मैं बदल गई हूँ | स्त्री और समाज पर कविता

शिखा सिंह(प्रज्ञा) की कविता | A Hindi Poem by Shikha Singh (Pragya)

  1. दीदी आपने समाज को अपनी कविता के माध्यम से अच्छा जवाब दिया हर लडकी को ऎसा ही जवाब इस समाज के लोगों को देना चाहिए जो बेटियों को आगे बढ़ने से रोकते हैं🙏🏻🙏🏻

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