यूँही लोग इक रोज । हिंदी की कविता

उपकार सारांश की रचना | Hindi Poem written by Upkar Saransh

यूँही लोग इक रोज । हिंदी की कविता | उपकार सारांश की रचना | Hindi Poem written by Upkar Saransh

संक्षिप्त परिचय: उपकार सारांश जी की हिंदी में लिखी यह कविता एक कटु सत्य उजागर करती है। ऐसा सत्य जो हमें पता भी है और जिस के बारे में हम सोचना भी नहीं चाहते ।

यूँही लोग इक रोज
साईकिल चलाते,
थैले टांगे , दिखना
बंद हो जाएँगे।

उनकी मौत से पहले
की कारीगरी
उन्हें मुक्त नहीं कर पायेगी,
भयभीत का रहस्य
परास्त नहीं होगा।

आधुनिकता का चोला
पहने बेटों से,
उम्मीद सिर्फ इंतज़ार
करवाती रहेगी
उनकी मौत तक।

हाथ की नसें चमड़ी
को उधेड़ कर दिख
रही होगी,
धीमे से बहता रक्त
जैसे अभी थमने वाला हो।

वो हाथ मे लकड़ी
लिए लोग
इक रोज दिखना
बंद हो जाएँगे,
उनका सफ़र जारी रहेगा
उनके वात्सल्य में।


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इस कविता के लेखक उपकार सारांश के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।


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PC: Nick Fewings

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