तकलीफ | हिन्दी गजल

शिखा सिंह(प्रज्ञा) की ग़ज़ल | A Hindi Ghazal by Shikha Singh (Pragya)

तकलीफ | शिखा सिंह 'प्रज्ञा' की ग़ज़ल

संक्षिप्त परिचय: ज़िंदगी क्या ही हो अगर इसमें कुछ अजीब कश्मकश ना हो? ऐसी ही एक कश्मकश की बात करती है शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’ की यह हिन्दी गजल ‘तकलीफ़’।

कर्म के अनुसार ही फल बाटता भगवान है।
गोल पहिया जिंदगी नित घूमता इंसान है।

चाहता है बस उसे दिल जो इसे मिलता नही
टूट कर ये खुद सँवरता दिल बहुत नादान है।

देख कर चुपचाप हो तुम मेरे दर्दे गम सनम,
और कहते हो कि मुझमें ही बसी ये जान है।

रोज़ करता था जो हमसे बात घंटो फोन पर,
आज कहता है वो हमसे बेवफ़ा अनजान है।

प्रेम तन मन भी लुटाया स्नेह दे मां बाप ने,
दे रहा तकलीफ़ उनको तो वही संतान है।

शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’


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इस कविता की लेखिका शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’ के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।


पढ़िए उनकी ग़ज़ल:

  • ग़ज़ल: शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’ जी की यह सुंदर ग़ज़ल आपको इस जीवन के कुछ गहरे राज़ चुपके से बता जाएगी।

पढ़िए उनकी कहानी:

  • इंजीनियर बिटिया: शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’ की यह एक प्रेरणादायक लघु कहानी है। यह कहानी शिक्षा के महत्व को समझाती हुई नारी सशक्तिकरण की प्रेरणा देती है।

अगर आप भी कहानियाँ या कविताएँ लिखते हैं और बतौर लेखक आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमसे ज़रूर सम्पर्क करें storiesdilse@gmail.com पर। आप हमें अपनी रचनाएँ यहाँ भी भेज सकते हैं: https://storiesdilse.in/guidelines-for-submission/


Photo by Michał Parzuchowski

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