ये कैसे हैं रिश्ते | रिश्तों पर कविता

Ye Kaise Hain Rishte | जुबैर खाँन की कविता | A Hindi poem by S Zubair Khan

ये कैसे हैं रिश्ते | रिश्तों पर कविता | Ye Kaise Hain Rishte | जुबैर खाँन की कविता | A Hindi poem by S Zubair Khan

संक्षिप्त परिचय: ‘ये कैसे हैं रिश्ते’, यह एक रिश्तों पर कविता है जिसे लिखा है कवि ‘जुबैर खाँन’ ने । अपनी इस कविता में कवि रिश्तों की विचित्रता का वर्णन कर रहे हैं।

ये कैसे हैं रिश्ते । अनमोल रिश्ते
ये धागे रिश्तों के । ये धागे हैं कैसे
मजबूत हो कर भी यह टूट जाते हैं
जाने यह कैसे । जाने यह कैसे
ये कैसे हैं रिश्ते । अनमोल रिश्ते

ये कैसा है दर्पण । अनमोल दर्पण
ये अक्स अपनों का । ये अक्स है कैसा
दिखाई देता है जिसमें सँसार अपनों का
मजबूत हो कर भी यह टूट जाता है
जाने यह कैसे । जाने यह कैसे

इस दर्पण मे मिले कितने रिश्ते
इस दर्पण मे बने कितने रिश्ते
देखे कितने रूप हमने रिश्तों के
साये कई हैं मेरे अपनों के
सामने होकर भी दर्पण बिखर जाता है कैसे
जाने यह कैसे । जाने यह कैसे
ये कैसे हैं रिश्ते । अनमोल रिश्ते

आये थे हम एक रिश्ते में । बंधे थे हम एक रिश्ते मे
बना दिये खुदा ने जाने कितने रिश्ते
मिलता रहा मैं हर रूप में । ये रूप हैं कैसे
किरदार कई हैं इन रिश्तों के । ये किरदार हैं कैसे
बचपन में एक होते हैं, और जवानी में छोड़ जाते
हैं कैसे जाने यह कैसे । जाने यह कैसे


कैसी लगी रिश्तों पर यह हिंदी कविता ? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवि को भी प्रोत्साहित करें।

इस हिंदी कविता के लेखक ‘जुबैर खाँन’ जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।


पढ़िए ज़ुबैर खाँन की और कविताऐं :

  • तू ज़िंदगी है: ‘तू ज़िंदगी है’ एक हिंदी कविता है जिसे कवि ज़ुबैर खाँन ने लिखा है। इस कविता में कवि अपने दिल के प्रेम को सुंदर शब्दों में बयाँ कर रहे हैं।
  • अब तो कुछ करना होगा: यह कविता ‘अब तो कुछ करना होगा’ नारी पर हो रहे अत्याचारों पर आवाज़ उठाती हुई, नारी के लिए सशक्तिकरण की माँग करती हुई कविता है।
  • तुम न आए : ‘तुम न आए’ एक हिंदी कविता है जिसे कवि ज़ुबैर खाँन ने लिखा है। यह एक प्रेम कविता है जिसमें कवि अपने प्रेम का इंतज़ार कर रहे हैं।

पढ़िए रिश्तों पर ही और कविताएँ:

  • हमारे घर का आँगन: इस कविता में कवि सौरभ रत्नावत अपने घर की ख़ूबसूरती को बयाँ कर रहे हैं। साथ ही उनके परिवार और प्रकृति के बीच कैसे तालमेल बैठा हुआ है यह भी समझा रहे हैं।
  • मुझे याद आते हैं वो गर्मी के दिन:  हम सब के लिए सब से क़ीमती होते हैं बचपन के वो मासूम दिन। इस कविता में कवियत्री अपने बचपन में बिताए गर्मी के दिनों को याद करती हैं।

अगर आप भी कहानियाँ या कविताएँ लिखते हैं और बतौर लेखक आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमसे ज़रूर सम्पर्क करें storiesdilse@gmail.com पर। आप हमें अपनी रचनाएँ यहाँ भी भेज सकते हैं: https://storiesdilse.in/submit-your-stories-poems/


PC: Shane Rounce

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