शब्द मंथन 1 – मंगलम | Shabd Manthan 1 – Manglam

शंकर देव तिवारी जी की रचना । Shankar Dev Tiwari ji ki Rachna

शब्द मंथन 1 - मंगलम | Shabd Manthan 1 - Manglam ।शंकर देव तिवारी जी की कविता । Shankar Dev Tiwari ji ki Kavita

धर्म अपना क्यों बिगाड़ो,
कर्म जब जब अव्वल हो ।
बहाना जाति का लेकर हो,
शक्ति समेटो जो अव्वल हो ।

सरल नहीं है हल करना सभी प्रश्न जीवन के,
आगे पीछे अंक बहुत हैं मुश्किल है गणना करना ।
सफल प्रतीक बनो कुछ ऐसे कर लो कुछ जीवन में,
अभी बहुत है शेष पड़ा जीवन में गुणा भाग करना ।

तुमने तो हमें जगा दिया,
वैसे भी मैं कब सोया था ।
अपनी वारी के इंतजार में,
लगी पंक्ति में खोया था ।

है कितना कौन बड़ा शातिर,
इस पर भी फ़िल्म बना डालो ।
है कश्ती डूब रही लेकिन,
भव सागर इसे दिखा डालो ।

कायल घायल हो जाए अगर,
तो शायर शायद कुछ लिख भी दे ।
कोरा कागज जो जीवन है,
उसमें कुछ पढ़ लिख रंग भर भी दे ।

ऐसी गाथा किस कलाकार की,
जो अक्षम गुण गान कराने में ।
उसपर अनुकम्पा सबकी हो,
जो सक्षम बात छिपाने में ।

करुणा किसकी किसको भाई,
अरुणा ने बता दिया सब कुछ ।
फिर भी ना राशि तरुणा आई,
वरुण उड़ा फिर किसका भाई ।

वन्द अंत का सुन लो भाई,
सब कुछ करती देखो माई ।
अपनी तो छोटी तरुणाई,
जीवन में केवल है माई ।

कहानी वही दुहरती है,
आदत नहीं बदलती है ।
समझ के पार है नदिया,
किनारे रोज बदलती है ।


शंकर देव तिवारी जी के बारे में और जानने के लिए पढ़ें यहाँ

PC: alex_andrews

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