पैसों का पेड़ (भाग-3) | बचपन के दिन याद दिलाती कहानी

तुलसी पिल्लई "वृंदा" की कहानी | Short Story in Hindi written by Tulsi Pillai "Vrinda" | Paison ka Ped Part-3

पैसों का पेड़ (भाग-3) | बचपन के दिन याद दिलाती कहानी | तुलसी पिल्लई "वृंदा" की कहानी | Short Story in Hindi written by Tulsi Pillai "Vrinda" | Paison ka Ped Part-3

संक्षिप्त परिचय: पैसों का पेड़, तुलसी पिल्लई जी की लिखी हुई कहानी है। इस कहानी में लेखिका अपने बचपन के दिन याद करते हुए एक दिलचस्प क़िस्सा साझा कर रही हैं जो एक पैसों के पेड़ से सम्बंधित है। यह कहानी पाँच भागों में लिखी गयी है और यह भाग इस कहानी का तीसरा भाग है। आप इस कहानी का पहला भाग पढ़ सकते हैं यहाँ और दूसरा भाग यहाँ

मन में बहुत ईर्ष्या होने लगी थी कि अप्पा का पैसों का पेड़ उग गया और मैं निक्कमी पैसों का पेड़ उगा नहीं पाई।

मैंने अप्पा से कहा :- “ठीक हैं।मत बताओ।मेरा भी पैसों का पेड़ उगेगा तो, मैं भी नहीं बताऊँगी।”

अप्पा बोले :- “जब तू पैसों का पेड़ उगा लेगी, तब ही मैं अपना पैसों का पेड़ बताऊँगा।”

मैंने कहा :- “ऐसा क्यों ?”

अप्पा बोले:- “जब तेरे पास पैसों का पेड़ होगा। तब तू मेरे पेड़ से पैसे नहीं लेगी न? मेरे में ज्यादा दिमाग है।

क्या हमारे पैसों का पेड़ उगा ? क्या लगता हैं ? पैसों के पेड़ भी कभी उगते हैं ?
हाँ,कभी नहीं उगा।

जब मेरे पैसों का पेड़ उग नहीं पाया और अप्पा का आत्म विश्वास से कहना कि उनके पैसों का पेड़ उग गया है – तो मैंने पैसों का पेड़ उगाना छोड़कर अप्पा के पैसों का पेड़ खोजना शुरू कर दिया।

पैदमा का नया घर था। मकान के पीछे खाली जगह थी। पैदमा के द्वारा जहां बहुत सारे पेड़ – पौधे लगाए गए थे। मुझे लगता था कि इन पेड़ – पौधों के बीच में ही कहीं अप्पा का पैसों का पेड़ छुपा हुआ हैं | अप्पा अक्सर उन पेड़ – पौधों को सस्नेह निहारा करते थे।

एक रोज मैंने अप्पा से पूछा :- “अप्पा, इन पेड़ों में क्या देख रहे हो ?”

अप्पा बोले :- “मैं देख रहा हूँ कि मेरे पैसों का पेड़ बड़ा हुआ या नहीं?”

मैंने पूछा :- “इनमे से पैसों का पेड़ कौन सा है ?”

(उस समय बुद्धि पेड़-पौधों की जानकारी भी नहीं रखती थी | धीरे–धीरे वातावरण से परिपक्व हो रही थी।)

अप्पा ने एक पौधे की तरफ इशारा करते हुए कहा :- “यहीं है मेरे पैसों का पेड़।अभी छोटा है, बड़ा होगा तो पैसे लगेंगे ।मैं किसी को नहीं दूंगा।”

फिर क्या था ? अप्पा के साथ-साथ मैं भी उस पौधे को निहारा करती थी। पैसों के पेड़ की कल्पना के सितारे आँखों में चमचमाने लगे थे। यह भ्रम कुछ यूं टूटा, जब मैं पैदमा से सब पेड़–पौधों की जानकारी ले रही थी, इस बीच में पैसों का पेड़ भी आ गया।

मैंने सोचा की पैदमा को खुशी–खुशी से बताती हूँ कि यह अप्पा के पैसों का पेड़ है और मैंने उनको बताया भी, पैदमा मुझ पर हँसी और बोलीं:- “बेवकूफ! यह जामुन का पौधा है। किसने कहा तुमको यह पैसों का पेड़ है ?”

मैंने कहा :- “और किसने? तुम्हारे अप्पा ने।”

पैदमा हंसती हुई बोलीं :- “मेरे नहीं वो तुम्हारे अप्पा हैं।तुम सबको बेवकूफ बना रहे है। तभी तो कहती हूँ कि इस आदमी की बातों में मत आया करो। खुद तो पागल ही हैं। तुम सभी को पागल बना देंगे।एक नम्बर के झूठे हैं।”

मैंने सोच लिया अब अप्पा को रंगे हाथ ही पकड़ूँगी। एक बार अप्पा ऐसे ही पड़े-पौधे निहार रहे थे।

मैंने पूछा:- “क्या कर रहे हैं अप्पा?”

अप्पा बोले :- “तुझे बताया था न, पैसों का पेड़, उसी को देख रहा हूँ । बड़ा हुआ या नहीं ?”

मैंने कहा :- “वो पैसों का पेड़ ?”

उन्होंने कहा:-“हां, भगवान करे जल्दी बड़ा हो जाए।”

मैंने कहा:-” कितने झूठे इन्सान हो? वो पैसों का पेड़ नहीं हैं। वो जामुन का पेड़ है।”

अप्पा फिर दुविधा में घिर आए ओर बोले :- “किसने कहा ?”

मैंने कहा :- “पैदमा ने।”

अप्पा कुछ सोच में पड़ गए। उनकी चोरी जो पकड़ी गई। अप्पा को अभिनेता होना चाहिए।अभिनय करने में बहुत माहिर हैं। मुझसे ज्यादा शातिर हैं और बोले:-“अच्छा हुआ, जो तुमको असली वाला पैसों का पेड़ नहीं बताया। वरना तुम तो पैदमा को बता देती और तेरी पैदमा मेरे पैसों के पेड़ के सारे पैसे तोड़ लेतीं। पैदमा को बताना नहीं।तेरी पैदमा एक नम्बर की चोर है। मेरे बटुए से भी पैसे चुरा लेती है। मुझे पहले ही पता था कि तेरे पेट में कोई बात नहीं पचेगी। इसलिए असली पैसों का पेड़ बताया ही नहीं और बताऊंगा भी नहीं।”

मैं डर गई कि अप्पा अब कभी मुझे अपने पैसों का पेड़ नहीं बताएंगे।एक बार फिर से अप्पा की घुमावदार बातों में आ फंसी।


पढ़िए इस कहानी का अगला भाग:

पैसों का पेड़ (भाग-4): यह कहानी ‘पैसों का पेड़’ कहानी का चौथा भाग।


कैसा लगा आपको बचपन के दिन याद दिलाती यह कहानी ‘पैसों का पेड़’ का तीसरा भाग? कॉमेंट में ज़रूर बताएँ और लेखिका को भी प्रोत्साहित करें।

लेखिका तुलसी पिल्लई “वृंदा”के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़ें यहाँ।


पढ़िए तुलसी पिल्लई ‘वृंदा’ की एक और कहानी:

  • दाढ़ी बनाने की कला: लेखिका अप्पा को दाढ़ी बनाते हुए देखती हैं और फिर उनका भी मन करता है कि वो उनकी दाढ़ी बनाएँ। पर क्या वो उनकी दाढ़ी बना पाती हैं? जानने के लिए पढ़िए लेखिका तुलसी पिल्लई “वृंदा” की बचपन को याद करती यह कहानी “दाढ़ी बनाने की कला”। (bachpan ki kahani)

बचपन के दिन याद करती और कहानियाँ आप पढ़ सकते हैं यहाँ:

  1. निक्की, रोज़ी और रानी, लेखक – महादेवी वर्मा: इस कहानी में है एक बच्ची और उसके तीन पालतू जानवर। बच्ची के निःस्वार्थ प्रेम और प्रीति की बचपन को याद करती हुई यह कहानी ।
  2. दो सखियाँ : दो सखियाँ हैं – मुन्नी और रामी – जिनमें से एक अमीर है एक गरीब। पर साथ में पढ़ने लिखने और बड़े होने के बाद उनका जीवन कैसे एक दूसरे से बंधता है उसकी कहानी है ‘दो सखियाँ’ जिसे लिखा है ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’ ने।

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