स्नेहपूर्ण रिश्ता | बुजुर्गों पर कहानी

अंजु ओझा की कहानी

स्नेहपूर्ण रिश्ता | अंजु ओझा की कहानी | बुजुर्गों पर कहानी

संक्षिप्त परिचय: रोज़मर्रा की ज़िंदगी में यूँ ही कभी-कभी कुछ छोटी-छोटी बातों से बड़े-बड़े किस्से बन जाते हैं।ऐसा ही एक किस्से पर है यह बुजुर्गों पर कहानी ‘स्नेहपूर्ण रिश्ता’।

आकांक्षा दौड़कर मुझसे लिपट गई है – “दादी आप अब से मुझको छोड़कर  कभी नहीं जाना , दादू आप भी मत जाना।”

आकांक्षा की स्नेहिल बातों से दादा-दादी की आंखें भर गई हैं और गौरव भी गदगद सा हो चला है। अपने माँ पापा को वापस आते देखकर। आकांक्षा का प्यार उन्हें खींच लाया है। यह कहकर गए थे कि “कभी तुम सबके पास नहीं आएंगे।”

आकांक्षा से बहुत प्यार है उन्हें, गौरव अच्छे से जानता है कि किसी भी माता पिता को मूल से अधिक प्यारा सूद होता है । माँ पापा को तो आकांक्षा से जितना लगाव है उतना हमदोनों भाई-बहन से शायद उन्नीस बीस के जैसा है। हमसे अधिक।

सुनीता ने माँ पापा के पसंद का सारा खाना तैयार किया है – मटर पुलाव,  दाल मखनी, आलू गोभी दम, शाही पनीर , बूंदी का रायता, पूड़ी , खीर । खाते-खाते पापा बोले कि बहुत दिन के बाद लजीज खाना खा रहा हूँ, माँ भी मुस्कुराए  जा रही है, खाने का स्वाद लेते हुए हामी भरती जाती है ।

सुनीता भी दिलखुश लग रही है कि सास-ससुर ने अपने बेटे के घर आकर बेटे-बहू को माफ कर अपने बड़प्पन का परिचय दिया है। नहीं तो दिल की खटास को कोई भी कम नहीं कर सकता जब तक उसका मन साफ न हो।

बहुत छोटी सी बात के चलते घर में बवाल सा मच गया है  ।आकांक्षा स्कूल से चार बजे आती है ,  उसी स्कूल में  सुनीता पढ़ाती है बच्चों को । सुबह का नाश्ता सभी को खिला कर  अपना आकांक्षा और गौरव का लंच लेकर निकलना है , दाल सब्जी बनाकर जाती ,  दोपहर में चावल माँ बना लिया करतीं हैं। चार बजे स्कूल से आकर दोनों मां बेटी खाना खाते , फिर पांच बजे तक मां-पापा पार्क में टहलने निकल जाते हैं। एक घंटा आराम करने के बाद सात बजे चाय पीते हम सब।

बहुत देर तक घंटी बजती रही है, आकांक्षा और सुनीता की आंख नहीं खुली, गहरी नींद के वजह से सुनाई नहीं दिया है । इस दरम्यान गौरव भी आ जाता है और दूसरा चाभी से घर का दरवाजा खोलकर आते हैं सब।

अभी तक सोई हो यार ! कब से मां पापा बाहर खड़े हैं ओह हो हड़बड़ा के उठ गई आकांक्षा भी।

चलो ,अब चाय बनाओ सबके लिए। बस जल्दी जल्दी चाय बिस्कुट बनाकर लाई । पर पापा को शायद यह बात खटक रही है कि बहू ने जानबूझकर दरवाजा नहीं खोला है ? मां तो नार्मल दिखी मुझे ।

बस पापा को एक और दिन मुझे जजमेंट करने का मौका मिल गया है, जल्दी उठकर काम निपटा रही हूं नाश्ता खाना तैयार करना , नहाना धोना मतलब सुबह का काम दौड़ भाग का रहता है । स्कूल निकलने के आधा घंटा पहले पापा किचन में आकर बोले , बहू खड़ा मूंग दाल का तड़का बना देना दोपहर में खाने के लिए।

अभी निकल रही हूं शाम को बना दूंगी , आनन फानन में आकांक्षा को लेकर निकल गई। गौरव मेरे निकलने के आधे घंटे बाद जाते हैं ऑफिस।

चार बजे आने पर देखा कि मां पापा घर पर है ही नहीं ? सोची कि जल्दी दोनों इभनिंग वाॅक के लिए चले गए होंगे। रात के आठ बजे गौरव के आने पर अरे पापा मां अभी तक नहीं आए टहल कर? जरा देखिए न कहां हैं दोनों ।

वो दोनों चले गए हैं मुजफ्फरपुर। अरे कब सुबह तो मुझसे नहीं कहे पापा ? अचानक से , ऐसे कैसे ?

पापा बोल रहे कि बहू को हम दोनों का यहां रहना रास नहीं आ रहा है , हम मुजफ्फरपुर चले जाते हैं , डेढ़ साल से वहां का मकान बंद है ? साफ सफाई कराना है।

दंग रह गई मैं, गौरव सब समझ रहा है पर क्या बोले वो । सुनीता का पक्ष लेता तो पापा को लगता कि पक्षपात कर रहा है।

खैर एक साल बीत गए, आकांक्षा के जन्मदिन को मां पापा भला कैसै मिस करते । फोन किए हैं पापा कि आ रहे हैं पटना । दोपहर तक पहुंच जायेंगे।

पापा खाना खा रहे हैं , बोलते जा रहे हैं कि बहू के हाथ के खाने में जादू है ।

सुनीता ने कभी भी मां पापा से कुछ नहीं कहा न कभी पूछा, वो समझ गई है कि खामोशी सबसे बड़ा हथियार है।

खुशहाल जीवन का मूल मंत्र है कि छोटी छोटी बातों को तूल न दें। जब कोई आपके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता हो , तब प्रत्युत्तर देना लाजमी है।

अंजु ओझा पटना।
मौलिक स्वरचित
१•६•२१


कैसी लगी आपको यह बुजुर्गों पर कहानी? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और लेखिका को भी प्रोत्साहित करें।
लेखिका अंजु ओझा के बारे में जानने के लिए पढ़ें : अंजु ओझा


पढ़िए घर के बुजुर्गों पर ऐसी एक और कहानी यहाँ :-

  • दादी माँ | एक छोटी सी कहानी : उषा रानी द्वारा रचित यह एक छोटी सी कहानी है जो दादी माँ के गुणों और उनकी दिनचर्या स्पष्ट करती है।
  • साथ : लेखिका भावना सविता द्वारा लिखी गयी यह कहानी एक अनूठी प्रेम कहानी है जो आप को सच्चे प्रेम पर फिर से विश्वास दिल देगी।

पढ़िए कुछ और कहानियाँ :-

  • इंतज़ार : अमेरिका में रहने वाली वाणी ने अचानक अपने पति और बेटे को सड़क हादसे में खो दिया। अपने देश वापस आकर उसने अपनी दोस्त प्रियंका की मदद से अपनी बिखरी  ज़िंदगी को फिर से संवारने की कोशिश की। क्या उसकी ज़िंदगी में दोबारा प्यार का आगमन हो पाएगा? क्या वह किसी और को अपनी ज़िंदगी में फिर से शामिल कर पाएगी? जानने के लिए पढ़िए यह कहानी।
  • बुद्धु का काँटा: बुद्धु का काँटा, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी द्वारा लिखी गयी एक नटखट प्रेम कहानी है जो आपको ले जाएगी पुराने समय में।साथ ही आपका दिल भी गुदगुदा देगी।

अगर आप भी कहानियाँ या कविताएँ लिखते हैं और बतौर लेखक आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमसे ज़रूर सम्पर्क करें storiesdilse@gmail.com पर। आप हमें अपनी रचनाएँ यहाँ भी भेज सकते हैं: https://storiesdilse.in/submit-your-stories-poems/


Photo by Katarzyna Grabowska

 725 total views

Share on:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *