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तुलसी पिल्लई "वृंदा" की कहानी | Short Story in Hindi written by Tulsi Pillai "Vrinda"

होमवर्क | तुलसी पिल्लई वृंदा की कहानी | बचपन के लक्ष्य की कहानी

संक्षिप्त परिचय : लेखिका तुलसी पिल्लई ‘वृंदा’ की यह कहानी उनके अप्पा के सपने पर है। बचपन के सपने को लेखिका अपने लक्ष्य के रूप में भी देखती हैं। पढ़िए यह कहानी और जानिए कि क्या अप्पा का सपना पूरा हो पाया?

मैं बचपन से सदा ही अप्पा का व्यक्तित्व क्या है ? यह जानने में लगी रहती। अप्पा को कौन से कलर पसंद हैं ? कौन सा फूल? यह सब जानने की चेष्टा करती थी।अप्पा को क्या पहनना पसंद हैं ? अप्पा को क्या – क्या खाना पसंद है? अप्पा का व्यक्तित्व इतना सौम्य और विनम्र कैसे है ? अप्पा इतने अच्छे इंसान कैसे हैं ? मैं अप्पा के जीवन की सारी घटनाओं को जानने में रुचि रखती थी। और उन सबको अपने जीवन में उतारने की कोशिश करती थी ।

एक रोज मैंने अप्पा से पूछ ही लिया अप्पा तुम्हारा सपना क्या है ?

अप्पा ने कहा :- “मैं सपने नहीं देखता ।”

मैंने कहा :- “फिर भी कोई तो ऐसा सपना होगा, जिसको तुम पूरा करना चाहते होंगे ?”

अप्पा ने कहा :- “अच्छा ! तुम बताओ, तुम्हारे सपने क्या हैं ?”

मैंने कहा :- मेरे तो बहुत सारे सपने हैं। मेरा बहुत बड़ा घर होना चाहिए, जिस में बहुत सारी चिड़िया, कबूतर, तोता, मोर, बत्तख , हंस, सरस, बंदर, हाथी-घोड़े, हिरण, भालू, ऊंट, खरगोश आदि होने चाहिए और हां कुत्ता- बिल्ली भी… ठीक है।  मैं दिन भर उन जानवरों के साथ खेलती रहूंगी। मैं बड़ी होकर जानवरों की डॉक्टर बनूँगी। सुनो, अप्पा अगर मेरे जानवरों को बुखार आया तो उनका इलाज कौन करेगा और उनका इलाज नहीं हुआ तो वो सब मर जाएंगे।यह मेरा सपना है और तुम्हारा ?

अप्पा बोले :- मेरा तो(कुछ सोचकर), मैं चाहता हूँ कि बस सबको प्रेम दूँ और सदा खुश रखूँ।जो कचराबीन लोगों के बच्चे होते हैं, उनको खाना खिलाऊँ, उनको अच्छे – अच्छे कपड़े दिलवाऊँ, उनकी इच्छा पूरी करूँ क्योंकि उन मासूमों की आँखों में भी तो इच्छाएँ होती हैं | मैं उनकी इच्छाएँ पूरी करना चाहता हूं। अप्पा की यह बातें सुनकर मैं सोचने लगी, मेरा सपना बड़ा हैं या अप्पा का ?

मैंने अप्पा से पूछा:-“क्या तुम अपने सपनों को पूरा करके दिखाओगे?”

अप्पा ने कहा:- “पता नहीं”

मुझे अप्पा की इस निराशा भरी प्रतिक्रिया से रोष उत्पन्न होने लगा। मुझे लगा कि अप्पा मुझे सकारात्मक होकर बोलेंगे कि हाँ, मैं अपने सपनों को जरूर पूरा करूँगा। चाहे कितनी भी बुरी परिस्थितियाँ आएँ। मैं उनका सामना करूँगा। लेकिन अपने सपनों को किसी भी हालत में पुरा जरूर करूँगा।

हाय… मेरे अप्पा का ऐसा उत्तर … मुझे अफसोस हुआ।और क्रोध भी आया कि यदि आप कोई स्वप्न देखते हैं तो उनको पूरा करो। अन्यथा कोई भी स्वप्न न देखो। फिर जीवन में क्या मतलब है स्वप्न देखने का? जब आप उसके लिए प्रयासरत हैं ही नहीं?

मैंने कहा:- मुझे तो पुरा विश्वास है कि एक दिन मैं अपने इस सपने को पूरा जरूर करूँगी। किसी भी हालत में… क्योंकि मैं जो सपने देखती हूँ, उनको यथार्थ में परिवर्तित करने में विश्वास रखती हूँ। अप्पा जब तुमको सपने पूरे करने ही नहीं है तो देखते क्यों हो?(अप्पा पर मैंने व्यंग्य किया)

अप्पा बोले:-“बस यह सब सोचता हूँ। मैंने कब कहा कि मेरा कोई सपना है।”

मैंने कहा:-“तुम्हारी इन सारी बातों को सपना ही बोलते हैं। यह सारी कल्पनाएं तुम्हारा सपना हैं, जिसको पूरा करना आना चाहिए। मैं अभी छोटी हूँ, जब बड़ी हो जाऊँगी तो अपने सपनों को पूरा जरूर करूँगी‌। मैं तुम्हारी तरह नहीं हूँ।”

यह सब सुनकर अप्पा बोले:-” हाँ बाबा, मैं भी पुरा करने की कोशिश करूँगा। बस खुश?”

 मैंने पूछा:-“अच्छा बताओ ? अप्पा तुम अपने सपनों को पूरा कैसे करोगे?”

(क्योंकि मुझे भी मेरा असंभव सपना पूरा करना था। वो कैसे पुरा होगा ? मालूम न था। शायद अप्पा के पास ही कोई उपाय मिल जाए)

अप्पा बोले:-“समय आने पर खुद-ब-खुद पूरा हो जाएगा।”

मैं पैदमा से भी कभी-कभी अप्पा के सपने के बारे में चर्चा करती थी। मुझे जो जानकारी अप्पा नहीं दिया करते थे वो पैदमा मुझे दे दिया करती थी। क्योंकि मेरे अप्पा को लगता था कि मैं एक छोटी बच्ची हूँ। और इन सब बातों की मुझे कोई समझ नहीं है। मेरे अप्पा एक समाज सेवक थे। यह बात मुझे अप्पा ने नहीं,  पैदमा ने बताई थी। अप्पा कभी मेरे सामने अपने अच्छे कार्यों का बखान नहीं करते थे। जबकि वो बहुत ही दंभी व्यक्ति थे, हमारे साथ खेल में अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते रहते थे।

अप्पा का एक आदर्श प्रसंग है :-

एक दिन अप्पा बाजार गए। वहाँ एक अस्पताल के सामने एक लड़की रो रही थी। उस लड़की के पिता का स्वर्गवास हो गया और उसके पास गाँव जाने के पैसे नहीं थे। कोई उसकी मदद नहीं कर रहा था।अप्पा ने उसकी मदद की। उसे किराया दिया। अप्पा की देखा देखी में सबने उसकी मदद की।

मुझे यह अप्पा की महानता पसंद आई। लेकिन पैदमा को तो अप्पा की यह महानता पसंद नहीं आई। अप्पा को बहुत जली-कटी सुननी पड़ी |

मैंने पैदमा से कहा :- “पैदमा अप्पा ने इसमे क्या गलत किया ?”

तब पैदमा ने अप्पा की अनुपस्थिति में कहा:-” तुझे पता नहीं? इस आदमी की आदत ? उस लड़की की मदद की। इसमे अच्छी ही बात हैं। ऐसे लोगों की मदद करे, मुझे खुशी है। लेकिन पहले खुद की भी सोचनी चाहिए, कोई हम करोड़पति तो नहीं हैं। अगर मैं तेरे अप्पा की तारीफ करूँ तो वह हर किसी को बैखोफ होकर उलटे–उलटे काम करेंगे।ऐसे लोगों की मदद करो जिनको वास्तविकता में मदद की जरूरत हो।हर किसी की नहीं।कल एक आदमी आया। तेरे अप्पा बाहर चौक पर बैठे थे।उस आदमी ने बोला कि मैं भूखा हूँ और पैसे मांगने लगा। तेरे अप्पा ने भावुकता में उसको पचास रूपए दे दिए। और वो शाम शराब पीकर जा रहा था। अब बोल ? तेरे अप्पा का क्या करूं? और एक बार जब मैं तेरे अप्पा के साथ बाजार गई, वहाँ बहुत सारे कचराबीन लोगों ने अप्पा को घेर लिया, क्योंकि अप्पा जब भी बाजार जाते, कचराबीन के बच्चे और कचराबीन महिलाओ को पैसे देते थे। कभी उन्हे मिठाई दिलवाते और कभी नमकीन, कितनी गंदी आदत हैं (खीझते हुए) घर का कभी सोचा नहीं। दो लड़कियाँ कुंवारी हैं, और यह लोक सेवा कर रहे हैं।” पैदमा को यह सब बातें अखरती थी ।

अप्पा के व्यक्तित्व की यह सारी बातें सुनकर मेरी अप्पा के  प्रति श्रद्धा और कई गुणा बढ़ गई। मैंने भी निश्चिय किया कि मैं भी अप्पा को अपना सहयोग दूँगी। यदि मैं बड़ी होकर इस योग्य हुई तो जरूर जरूरतमंदों की मदद करूँगी।आखिर मेरे अप्पा, मेरी पैदमा और परिवार वालों की जली-कटी सुनकर भी बहुत साहस से लोगों की मदद कर रहे थे। मुझे भी अच्छा काम ऐसे ही करना है।

अब मैं चाहती थी कि अप्पा अपने सपनों को पूरा करने के लिए मेहनत करें। लेकिन मेरे अप्पा अपने इस सपने के लिए कभी गंभीर ही नहीं हुए‌। कभी- कभी पैदमा की तरह मैं भी उनकी विरोधाभासी हो जाती थी। क्योंकि वो अपना आधे से ज्यादा समय सोने में बिताते थे। जब-जब मैं उनको दोपहर में सोते देखती तो मुझमें रोष पनपने लगता और मुझे लगता था कि अप्पा को याद दिलाऊँ कि उठो, तुमको अपना सपना पूरा करना है। ऐसे आराम से सोते रहने से कुछ नहीं होगा।

लेकिन मैंने कभी अप्पा पर इस बात के लिए दवाब नहीं डाला। सपने उनके … इच्छा उनकी… मैंने बस यही सोचा कि मैं अपने सपने पुरे करूँगी।और अप्पा को एक रोज जरूर बताऊँगी कि सपने पूरे भी होते हैं। अगर तुमने कभी अपने सपनों को पूरा करने का विचार किया होता तो तुम्हारे सपने भी जरूर पूरे होते।

अप्पा के लिए अपने सपने क्या थे? महज मनोरंजन? कोई कल्पना? मुझे नहीं मालूम… लेकिन जब से मैंने अप्पा के सपने को समझा तो मैं उन सपनों को पूरा करने के लिए जलती रही। क्योंकि अप्पा मेरी प्रेरणा थे। यदि वो अपने सपनों को पूरा करते हैं तो मुझे भी प्रेरणा मिलती। लेकिन अप्पा तो असफल व्यक्ति की तरह ही जीवन यापन करके चल‌ बसे। लेकिन मैं कभी निराश नहीं हुई। मैंने तो अप्पा की असफलता से ही प्रेरणा ग्रहण की, कि मुझे अपने जो भी सपने हैं पूरे करने हैं। फिर मरना है। अप्पा की तरह नहीं… यह रोष मेरे मन में तब तक बना रहा, जब-तक  मुझे अप्पा एक असफल व्यक्ति लगते रहे।

अप्पा के 2017 में निधन के बाद भी अप्पा का यह सपना मुझे परेशान करता रहा। पता नहीं, भीतर कोई कहता रहा कि जिसको मैंने अपनी प्रेरणा माना वो एक आलसी, कामचोर, बेवकूफ और असफल इन्सान था। यह मेरी प्रेरणा के लायक कैसे हैं? मैं भी खुद से सवाल करने लगी कि अप्पा ने यहाँ अपना जीवन व्यर्थ जीया? अब अप्पा की तुलना सफल और असफल व्यक्तित्व में होने लगी थी।

चाहे मेरे अप्पा एक असफल व्यक्ति रहे। लेकिन  विनम्रता, प्रेम  और एक भावुक व्यक्ति का जीवन जीना ही उनकी सफलता थी। मैंने अपने भीतर की आवाज को प्रतिउत्तर देते हुए कहा कि कोई बात नहीं, यदि मेरे अप्पा असफल होकर मर गए तो क्या हुआ मैं तो जिन्दा हूँ। मैं अप्पा का यह सपना पूरा करूँगी।

मैंने एक शेयर बाजार की कम्पनी में नौकरी की। वहां मुझे वोरेन बुफेट और भी बड़े-बड़े इन्वेस्टर्स के बारे में जानकारी मिलती थी कि वो इतने अमीर कैसे बने? राकेश झुनझुनवाला ने पांच हजार से शेयर बाजार में शुरूआत की। इन सभी इन्वेस्टर्स की सफलता का राज यह था कि इन्होंने अपने पैसों को अच्छी-अच्छी जगह इन्वेस्ट किया था। जब मैं यह सुन रही थी। अप्पा मुझे याद आ गए कि अप्पा भी एक अच्छे इन्वेस्टर से कम नहीं थे। उन्होंने भी तो अपना समय, प्रेम और पैसा मुझमें इन्वेस्ट किया था। मुझे तो अप्पा के लिए कुछ करना ही था। अप्पा ने जो बचपन में पचास पैसे और एक -एक रुपए दिए थे, यह उनका इन्वेस्ट ही तो था। मैंने भी सोचा की मैं ईमानदारी से अप्पा का पैसा अप्पा को वापस लौटा दूंगी-उनके सपनों के रूप में।

जब अप्पा बुजुर्ग हो गए तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी और मेरे कैलाश भईया अप्पा को जेब खर्ची देते थे। तो मुझे ऐसा लगता था कि ऐसा सुनहरा मौका मुझे भी मिले ताकि मैं भी अप्पा को खर्ची के पैसे दे सकूँ। लेकिन मेरे अप्पा भला मुझसे पैसे कैसे ले सकते थे? मैंने अपनी ज़िद कुछ इस प्रकार पूरी की। जब भी मेरी सैलरी आती थी, मैं अप्पा के लिए सौ रुपए अलग कर लेती थी  और उससे कचराबीन लोगों को कुछ खिला देती थी । मुझे ऐसा ही एहसास होता था कि मैं अप्पा को ही पैसे दे रही हूँ और मेरा पैसा भी अप्पा के उन लोगों के पास ही जा रहा है ।धीरे- धीरे मेरी भी आदत बन गई, कचराबीन बच्चों और औरतों के लिए सहानुभूति रखने की।

मेरी सहेली जब मुझे यह सब करते हुए देखती हैं तो अप्पा की तरह मुझे भी आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता था। कोई बोलती है कि मैं पागल हूँ। कोई बोलती है कि मुझे पैसों की कद्र नहीं है। मेरी सहेली नेहा तो मुझ पर बहुत हँसती थी। वो तो मैं कहीं अगर घूमने भी जाऊँ तो मेरा पर्स अपने पास रखती थी ताकि मैं किसी भी जरूरतमंद को पैसे न बाँटती रहूँ। वो अक्सर हंसते हुए कहती:- “मैं भी तो गरीब हूँ। कचराबीन बच्चों को पैसे देने के बजाय मुझे पैसे दे दिया कर।”

कभी-कभी हम दोनों में कचराबीन लोगों को लेकर तू-तू, मैं-मैं हो जाती। क्योंकि वो मुझे अच्छा काम करने से रोकती थी। मुझे बर्दाश्त नहीं होता था कि कोई मुझे अपने हिसाब से जीवन जीने से रोके।जब वह मेरा पर्स मुझे नहीं देती तो मैं उससे कह देती कि तुझे क्या करना? पैसे मेरे हैं? मैं अपने पैसे किसी को भी दूँ?

तब वो मुस्कुराती हुई कहती:- “तुझ जैसा बेवकूफ नहीं देखा। कोई भी पैसा माँगे तो पैसे बाँटने लगती है।”

मैंने उससे कहा:- “किसी को दस रुपए देने से न तो हम गरीब हो जाते हैं और न दस रूपए लेकर वो अमीर।जब तक भगवान ने मुझे दिया है तो मैं भी लोगों को दूँगी। जिस दिन नहीं हुए पैसे ,तब की बात कुछ और है? फिर मुझे शांत रहना पड़ेगा।”

(वैसे भी भगवान ने जब हमको इतना सामर्थ्यवान बनाया है तो लोगों की मदद कीजिए। मेरे ख्याल से मेरे अप्पा की जो सैलरी थी … पन्द्रह सौ रुपए (वैसे बहुत पहले की बात है), तब भी वह सबकी मदद करते थे। बस इंसान में देने की प्रवृत्ति होनी चाहिए। मैंने कहीं पर सुना है, ईश्वर देने वालों को और देते हैं और मन में थोड़ी दया तो होनी ही चाहिए। अगर आपकी वजह से किसी के जीवन को राहत मिलती है तो नाम-मात्र  ही सही… लोगों को राहत दीजिए।)

खैर,अप्पा तो चले गए लेकिन उनका यह सारा काम मेरे लिए होमवर्क बन गया। जिसको पुरा करने की कोशिश है। देखते हैं अप्पा का दिया होमवर्क कब पुरा होता है? वैसे मुझे अप्पा का दिया होमवर्क करना बहुत अच्छा लगता है। अफसोस…पूरे जीवन उनको ग़लत साबित किया गया। लेकिन वो ग़लत नहीं थे। उनको अपने अच्छे कार्यों के बदले कुछ नहीं मिला। लेकिन मैं अपने अप्पा को कुछ देने की कोशिश कर रही हूँ। एक बात हमेशा याद रखें कि जो जैसे कर्म करता है, एक न एक दिन प्रकृति उसको देती जरूर है…. चाहे सम्मान हो…. चाहे अपमान…. इसलिए अच्छे कर्म में सदा विश्वास रखिए। समय आने पर जरूर मिलेगा।

~तुलसी पिल्लई”वृंदा”


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