व्यथा अंतर्मन की | हिंदी कहानी

उषा रानी की कहानी | A Hindi story by Usha Rani

व्यथा अंतर्मन की | उषा रानी की कहानी

संक्षिप्त परिचय: कमल नारायण एक अस्पताल में भर्ती हैं। कुछ ऐसी स्थिति है कि घबराहट होना लाज़मी है। पर इसी समय में उनका मन भूले बिसरे गलियारों में भी घूम आता है। कौनसे हैं वो गलियारे? जानने के लिए पढ़िए यह कहानी ‘व्यथा अंतर्मन की’।


कमल नारायण अस्पताल में भर्ती है। बीस मरीजों वाले बड़े कमरे में एक पलंग पर लेटे है। आधी रात होने को आई है। पर आंखों में नींद नहीं है। बदन बुखार से तप रहा है। खांसी भी खांसते खांसते भी नहीं सो पा रहे है । वहाँ भर्ती मरीजों की स्थिति सबकी लगभग एक जैसी ही है । अस्पताल में सारे परीक्षणों के बाद पता चला है कि डाइबिटीज, बीपी के साथ कोरोना पोजिटिव आया है, जिसकी दवाई अभी तक नहीं बनी है । अस्पताल में सारे लोग – डाक्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी, ऊपर से नीचे तक, प्लास्टिक से बने कपड़े पहनकर ही वहाँ काम कर रहे हैं । किसी का चेहरा दिखाई नहीं देता । ऐसा लगता है जैसे भूतों की दुनिया में आ गये हैं । मरीजों के साथ उनके घर का भी कोई व्यक्ति नहीं रह सकता है । ऐसे में हर एक के दिल में डर सा है, जाने कैसी बीमारी है? जिंदगी बचेगी या नहीं? कोई नहीं जानता।

कमल नारायण की तरह ही सभी अपनी भरी पूरी जिंदगी जीने के बाद यहाँ आ फँसे हैं। यह अनिच्छा से मिला एकांतवास सजा बन गया है। वैसे डाक्टर, नर्स सभी अच्छे से देखभाल कर रहे हैं । हर चीज यानी खाना-पीना, दवाई आदि सब समयानुसार उपलब्ध कराते हैं। डाक्टर को धरती का भगवान माना जाता है लेकिन कोरोना पोजिटिव को ठीक करने वाली दवाई या कहे इलाज डाक्टर के पास भी नहीं हैं। कोरोना पोजिटिव नाम की बीमारी ने सारी दुनिया को हिला दिया है। आदमी हो या औरत? अमीर हो या गरीब? कोई भी इस से बच नहीं पा रहा है। दुनिया का कोई देश इससे अछूता नहीं रहा है। राम भरोसे डाक्टर मरीजों का इलाज कर रहे हैं । यही बात कमल नारायण को चिंता में डाले है। रह रह कर दिल रो रहा है । अच्छी खासी जिंदगी की गाड़ी चल रही थी । कपड़े का अच्छा व्यापार है। उनका भरा पूरा परिवार है, शानदार बंगला-गाड़ी है, घर को संभालने के लिए दो अच्छे नौकर भी हैं। उनमें से एक उनके साथ अस्पताल में साथ आने को तैयार था किन्तु अस्पताल वालों ने अनुमति नहीं दी। यहाँ सभी मरीज अपने अपने बिस्तर पर अकेले ही हैं। सबके मुँह पर मास्क लगे हैं । कोई किसी को पहचान नहीं पाता, न ही सुख- दु:ख की बात कर सकता। उनके बीच दूरियाँ जो हैं, ऐसा लगता है जैसे कोई बहुत बड़ा जुर्म करके आये हैं। अपनों के होते हुए भी, अपनों से दूर रहना सजा ही तो है!😔

कमल नारायण सूनी आँखों से छत-पंखे को घूमते देखने लगे। मन में अजीब सा ख्याल आया, ये पंखा ताउम्र इसी तरह घूमता रहता है। मैं भी पूरी जिंदगी धन कमाने में लगा रहा। उम्र अड़सठ साल की हो चुकी है, डायबिटीज जैसी बिमारी ने पहले से ही पकड़ रखा है। अब कितने दिन और जीना है? ये विचार आते ही मन में हूक सी उठी, ये क्या❓ बस जीवन खत्म। आज की स्थिति ने सबको एक लाइन में ला खड़ा किया है। अमीर- गरीब की सीमा रेखा भी नहीं रही। दौलत से सुख-सुविधा खरीदने वाले भी अब इस बीमारी के सामने लाचार, ठगे से हो गये हैं। कल एक बड़े नेताजी की इहलीला समाप्त हो गई थी पर उन्हें लेने कोई नहीं आया था।

अस्पताल से ही उन्हें पैक-पार्सल कर श्मशान घाट पहुंचाया गया था। वहाँ उनका कोई परिवार का आया होगा मुखाग्नि देने। हर दिन अस्पताल से इसी तरह दो-चार की विदाई हो रही है। सारी जिंदगी जिन्हें अपना-अपना कहके साथ गुजारी, आज अंतिम संस्कार के लिए कोई साथ नहीं। न मुँह में गंगाजल देने वाला, न गीता पढ़ कर सुनाने वाला। कोरोना पोजिटिव ने सारी दुनिया को बेगाना बना दिया। कमल नारायण की आँखों में आँसूओँ ने खलबली मचा दी। चेतना सुन्न सी होने लगी। किसी को पुकारना चाहा लेकिन पुकार नहीं पाये। पुकारते भी किसे? पत्नी को लेकिन वो तो घर पर है, बेटे को लेकिन वो भी यहाँ नहीं है, फिर किसे पुकारें? अपने से उठे बाथरूम जाने के लिए। धीरे धीरे चल कर गए। थोड़ी देर खुली हवा को महसूस किया, आकाश में चमकते तारों की टिमटिमाती रोशनी की किरणों से बतियाते उसके पहले ही एक आवाज आई ” ओह भाई! यहाँ खड़े नहीं होने का। जाओ । आराम से सोने का, नहीं तो तुम्हारी तबियत बिगड़ जायेगी तो हमको डांट पड़ेगा।’ कमल नारायण तुरंत बाथरूम में गये और फिर धीरे-धीरे चलते पलंग के पास आये । चारों तरफ नजर घुमाई सब जैसे सांस रोके पड़े थे। वे भी चद्दर खींच कर लेट गये पर आंखों में नींद नहीं आई। जिंदगी के आखिरी पलों को कैसे जीएँ? यादों के गलियारे में घूमने के लिए उत्साहित होकर खुद के लिए जैसे खुश होना चाहिए, उनके चेहरे पर छाई उदासी थोड़ी देर के लिए गायब हो गई। अपने छोटे से घर को याद किया जहाँ उनका बचपन गुजरा। अपने भाई-बहनों के साथ ही अपने दोस्तों की भी याद आई जिनके साथ बचपन की शरारतें की। लड़ाई- झगड़ा और मान-मनौवल की घटनाओं ने चलचित्र की जीवंत झांकी दिखा दी। माँ की याद आयी, पिता की डांट- फटकार भी, जिनके साथ सुखद अनुभूतियों की पूरी दुनिया जुड़ी हुई थी। खेल खेल में लड़ना – झगड़ना और रुठना- मनाना, हार-जीत की खुशियाँ मनाना, इन खेलों में गली – मौहल्ला
के बच्चे भी शामिल होते थे। इन्हीं बच्चों की टोली में कब कौन किसका खास बन जाता था पता ही नहीं चलता था पर कब तक छुपता? किसी न किसी रुप में सामने आ ही जाता। कौन किसका साथ देता है? कौन किसका विरोध करता है? पता चल ही जाता था। इसी बालपन की टोली में उसकी मित्र बनी पल्लवी। वह हमेशा उसका साथ देती थी। माँ की तबियत ठीक नहीं रहती थी तो वह हर समय माँ की सहायता के लिए उपस्थित रहती थी। मेरे जिद्द करने पर सही गलत भी वही समझा देती थी। उसकी आदत ही थी कि वह सबकी मदद करने के लिए तैयार रहती थी। शायद उसकी इसी आदत ने कब मेरे मन के तारों को झंकृत कर दिया, पता ही नहीं चला। धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती प्रगाढ़ होने लगी, पढ़ाई- लिखाई में पल्लवी कमल से ज्यादा तेज थी। इसलिए कमल को निरंतर पढ़ाई के लिए प्रेरित करना भी उसकी दिनचर्या रही। युवावस्था के आकर्षण और लगाव को प्रेम का नाम दिया जा सकता है, लेकिन अक्सर ऐसा प्रेम मंजिल तक नहीं पहुंच पाता है। कभी अमीरी-गरीबी की दीवारें खड़ी हो जाती है तो कभी जाति-भेद की। कमल नारायण और पल्लवी का प्रेम भी अपनी दुनिया नहीं बना सके। 👩‍❤️‍👨

कोरोना पोजिटिव ने अस्पतालों में नये तरह की अव्यवस्था पैदा कर दी। डाक्टर, नर्स, सहायक कर्मचारी सबकी कमी होने लगी है। संसाधनों की कमी पहले से ही थी। अब बढ़ती मरीजों की संख्या विस्फोटक स्थिति बना रही है। अस्पताल आधी रात की तंद्रा में ऊँग रहा है, कमल नारायण की आंखों से नींद रुठी हुई है। वे पुनः यादों की गलियों में घूमने लगे। जीवन के अंतिम पल की चाहत ऐसी होती है कि सारी दुनिया उसे मिल जाये ।जीवन भर संघर्ष करके जो पाया है अब उसे अचानक छोड़ कर जाना वैसा ही लग रहा है जैसे डाकुओं ने जिंदगी भर की कमाई लूट ली हो। लेकिन कमल नारायण की आंखों में बहुत अपना सा चेहरा दिखाई दिया । उनके मन की दुनिया में छाई रहने वाली पल्लवी सामने आ खड़ी हुई। वे खुशी के मारे उछल पड़े। अपने मन में ही गुनगुनाने लगे। अपने को यकीन दिलाने के लिए कि सच में उनके सामने पल्लवी ही है। सपने भी इतने सजीव होते हैं कि लगता है जैसे फिल्म हो। ख्यालों की दुनिया भी स्वप्न सी ही होती है। इस समय उनके ख्वाबों को जैसे पंख लग गयें हो।

पल्लवी सामने खड़ी है जैसे पूछ रही है -” कैसे हो कमल? ”

कमल नारायण ने हंस कर कहा “अच्छा हूँ लेकिन तुम यहाँ कैसे? यहाँ तो किसी को आने ही नहीं दिया जाता है। फिर तुम यहाँ कैसे? ‘

पल्लवी ने उसे प्यार से थपथपाते हुए कहा -” तुम कितने लापरवाह हो? अपना ध्यान नहीं रख सकते थे। अब इस लाइलाज बीमारी से तुम्हें लड़ना है। अब चिंता नहीं करना, मैं आ गयी हूँ। सब ठीक कर दूंगी।”

कमल नारायण ने उसका हाथ अपने हाथों में लेकर कहा -“पल्लवी! मुझे माफ कर देना, मैं अपना वादा नहीं निभा सका। तुम मेरी सच्ची दोस्त हो। अपनी दोस्ती कभी कम मत करना.. हम इस जन्म में नहीं मिले तो क्या? अगले जन्म में जरूर मिलेगें? ”

पल्लवी ने धीरे से अपना हाथ खींचते हुए कहा -“क्यों मजाक करते हो? मिलना- मिलाना प्रारब्ध के हाथ हैं। हम मानव हैं, जीवन मंच के किरदार हैं। सब अपने- अपने कर्मों के हिसाब से जुड़ते- बिछड़ते हैं कोई वादा मत करो.”!🤝

पल्लवी की आँखों से आंसूओँ की धारा बहने लगी। ये देखकर कमल नारायण हतप्रभ हो गया। उसने तुरंत पल्लवी के आंसुओं को रोकने की कोशिश करते हुए कहा -” अरे? ये क्या❓ तुम तो मेरी शेरनी हो। साक्षात माँ दुर्गा स्वरुप। तुम मेरी हिम्मत हो, तुम से दूर जाकर भी मैं आज तक इसलिए जिंदा रहा कि तुम हमेशा मेरे दिल में थी। मेरी कल्पनाओं की दुनिया में तुम ही रही हो। हम दूर नहीं थे। हमेशा एक दूसरे के ख्यालों में एक साथ थे फिर ये आंसू क्यों?”

पल्लवी ने हंसने की कोशिश करते हुए कहा -” कमल! बातें करना कोई तुम से सीखे, लेकिन मैं जो कहने आई थी वो सुनो। कमल नारायण तुम कहीं नहीं जा रहे हो।अभी तुम्हें कही नहीं जाने की जरुरत है। अपने को संभालो, मैं भगवान से प्रार्थना करुंगी तुम जल्दी ठीक हो जाओगे।”

सुनकर जैसे सपने की तंद्रा टूटी, कमल नारायण ने आंखें खोल कर देखा सामने चायवाला खड़ा है। उन्होंने उठ कर चाय का प्याला थामा अपने चारों ओर नजरें घुमाई, सब सुबह की चाय का मजा ले रहे हैं। कमरे में राम राम की ध्वनियाँ गूंज रही थी जैसे जिंदगी लौट आई हो।

स्वरचित कहानी
उषा रानी पुंगलिया जोधपुर राजस्थान


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व्यथा अंतर्मन की | हिंदी कहानी

उषा रानी की कहानी | A Hindi story by Usha Rani

  1. व्यथा अंतर्मन की अच्छी कहानी है। हार्दिक बधाई

  2. कहानी अच्छी लगी ऊषा जी।और संवा रिए।और निखारिए ।खूब पढ़िए लिखिए।

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