संक्षिप्त परिचय: जीवन में आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी नहीं कि सब कुछ सही हो, कभी कभी पुरानी बातों को भूल कर नयी शुरुआत भी करनी पड़ती है। ऐसी ही एक सीख देती है कवि सौरव मिश्रा की सकारात्मक सोच पर यह कविता ।
बस अभी हुई है शुरुआत मेरी,
हर रोज कदम यूँ बढ़ाऊँगा,
सिर्फ, एक कदम चलते चलते
एक दिन मंजिल भी पा जाऊंगा ।।
अब भीड़ नहीं पसंद मुझको,
मैं राह खुद अपनी बनाऊंगा,
जो सोचा कभी था सपनो में,
सब हकीकत कर दिखलाऊंगा ।।
साथ देने वालों को प्रणाम मेरा,
न देने वालों को नमस्कार है,
जो खुद को भुला बैठे खुद से,
उनका जिया जीवन भी धिक्कार है ।।
मतलबियों से खत्म हुआ नाता मेरा,
कर दिया उनका अब बहिष्कार है,
जिन्होंने बिना मांगे बदले में,
मुझे दिए सभी तिरस्कार हैं ।।
जो बीत गए मेरे लम्हें वक़्त में,
उनसे बातें नयी सुनाऊँगा,
कुछ टूटें हुए हैं वो शब्द जोड़कर,
मैं एक नग्मा बन जाऊंगा ।।
हाँ अभी हुई शुरुआत मेरी,
एक दिन मंजिल भी पा जाऊंगा ।।
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इस कविता के लेखक सौरव मिश्रा के बारे में जाने ले लिए यहाँ पढ़े ।
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Photo by Aamir Suhail
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