मुल्क़ के हालात | भारत देश पर कविता

संदीप कुमार कटारिया की कविता

मुल्क़ के हालात | भारत देश पर कविता | संदीप कुमार कटारिया की कविता

संक्षिप्त परिचय: भारत देश आज कुछ कठिनाइयों से जूझ रहा है। इन्ही कठिनाइयों पर प्रकाश डालती है यह कवि संदीप कुमार कटारिया जी की भारत देश पर कविता ‘मुल्क के हालात’।

आजकल मेरे मुल्क़ के हालात, बहुत ख़राब हो गए हैं ;
आवाम पर सफ़ेदपोश लुटेरों के ज़ुल्म बेहिसाब हो गए हैं ।

कोई खोलकर पढ़ना ही नहीं चाहता एक दूजे के दुख-दर्द को;
आदमी मेरे शहर के अलमारी में बंद किताब हो गए हैं ।

मंहगाई, भ्रष्टाचार, अपराध ने कमर तोड़ दी आम आदमी की;
इज्ज़त से दो वक्त़ की रोटी मिलना, मुफ़लिसों के ख्वाब हो गए है ।

मज़लूमों का बहता ख़ून देखकर भी नहीं पसीजता इनका दिल;
हुक़्मराँ मेरे मुल्क़ के ज़हनो-दिल से बेआब हो गए हैं ।

अर्बन नक्सली, टुकड़े टुकड़े गैंग बताते वो- सब हक़ माँगने वालों को;
लगता है सत्ता के नशे में इनके दिमाग़ ख़राब हो गए हैं ।

फेक न्यूज़, पुलिस, छापे, देशद्रोह से डराते वो खिलाफ़त करने वालों को;
सच को दबाने के इनके तरीके पहले से नायाब हो गए हैं ।

ज़मीन-जंगल, सरकारी इदारे सब बिकने को तैयार हैं;
कुर्सी वाले सरमायदारों के दलाले-अहबाब हो गए हैं ।

अगर आने वाली नस्लों को रोशन देखना चाहते हो ‘दीप’;
तो अंधेरों से खुलकर लड़ो, अब आग़ाज़े इंक़लाब हो गए हैं ।

आजकल मेरे मुल्क़ के हालात, बहुत ख़राब हो गए हैं ;
आवाम पर सफ़ेदपोश लुटेरों के ज़ुल्म बेहिसाब हो गए हैं ।


शब्दार्थ:-
सफ़देपोश-=सफेद कपड़े पहनने वाले नेता लोग ;
मुफ़लिस =गरीब ;
मज़लूम =कमजोर/शोषित ;
बेआब– बेशर्म/ जिनकी आँख का पानी मर जाए ;
ख़िलाफत– विरोध करना; नायाब – पहले से अलग ।
सरकारी इदारे=सरकारी विभाग ;
सरमायदार=अमीर व्यपारी वर्ग ।
दलाले-अहबाब=दलाली करने वाले दोस्त ;
आग़ाजे-इंक़लाब– क्रान्ति की शुरूआत ।


कैसी लगी आपको भारत देश पर यह कविता ‘मुल्क के हालात’ ? कॉमेंट में ज़रूर बताएँ और लेखक को भी प्रोत्साहित करें।

संदीप कटारिया के बारे में जानने के लिए पढ़ें


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Photo by Maarten van den Heuvel

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