संक्षिप्त परिचय – आख़िर क्या है अपराध? कौन होता है अपराधी? किसे मिलनी चाहिए सजा? कुछ ऐसे सवाल उठाती पर साथ में ही प्रेरणा देती हुई है रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’ जी की यह कविता ‘मैं अपराधी हूँ’ ।
हाँ मैं अपराधी हूँ!
मैंने तोड़ा है कानून
लिया है हाथ में,
थे चार वो मैं अकेली ।
पथ सुनसान…
बना था पहेली ।
ठीक निशीथ काल,
बंद गाड़ी भयभीत हाल,
गड़गड़ाहट द्रुम-दल
मन हुआ घोर विकल
डरी सहमी मैं चली
सोयी थी हर एक गली
भाग्य भी था सो गया
जिसका डर था वही हो गया
उन चारों ने दबोच लिया
पुनित-दामन नोंच दिया
अबला मैं करती भी क्या?
जीती क्या मरती भी क्या?
नन्हें बच्चों का ध्यान आया
लड़ने का अरमान छाया
नाखूनों से वार किया
छीन चाकू प्रहार किया
फटे दुकुल को रंग लिया
काट शीश था संग लिया
फिर दहाड़ी मैं कोर्ट,थाने
ना थी पहचान..
थे वो अनजाने
कबूल मुझे जुर्म मेरा,
बनूँगी मैं गुलाम नहीं,
कहीं हमें आराम नहींं
शोषण करने वालों सुनो,
मैं ही उत्थान, बर्बादी हूँ।
है हर सजा मंजूर मुझे,
हाँ मैं अपराधी हूँ।।
रोहताश वर्मा “मुसाफिर”
कविता की लेखक रोहताश वर्मा ‘मुसाफ़िर’ जी के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े ।
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Photo by Markus Spiske
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रचना को स्थान देने पर साहित्य मंच का तहेदिल से धन्यवाद 🙏🙏🎉🎉
storiesdilse.in के साथ जुड़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद 🙌🙌
अतिउत्तम।
धन्यवाद राकेश सर जी