संक्षिप्त परिचय – जैसा कि नाम से ही प्रत्यक्ष है, यह रचना लेखक राजू उपाध्याय जी का आत्म परिचय है।
ज़िन्दगी का सच …. ! ” मैं भी अपनी बात लिखूँ अपने हाथ से , मेरे सफ़े पर छोड़ दे थोड़ा सा हाशिया ” कवि दुष्यंत के इस शेर के साथ साहित्य यात्रा में एक राही बन कर मैं अपनी बात कहना चाहता हूँ । वैसे तो सोशल मीडिया के साहित्यिक समूहों में एक अरसे से कई बरसो से सक्रिय हूँ । इस लिए आत्म परिचय के रूप में खुला खत लिखने का ख्याल आया ,” मैं माँ सरस्वती का उपहार ” कलम ” को हाज़िर नाजिर मान कर कहता हूँ जो कहूँगा सच कहूँगा ।
यहाँ आपको बताऊँ उ. प्र. के एटा जिले की जमीन में पल पुस कर जीवन के उत्तरार्ध में पहुचा हूँ । छात्र जीवन में छात्र राजनीति से राजनीति में जाना चाहता था , इसी लिए राजनीति शास्त्र को एम. ए. में मैंने पढ़ने के लिए चुना । परन्तु भारत-भ्रमण के (70 दिवसीय साइकिल यात्रा) अनुभव ने मुझे इसको लेकर ग्लानि और क्षोभ से भर दिया। मेरा यायावर मन आज तक मौजूदा राजनैतिक व्यवस्था के विद्रूप और विसंगतियों को स्वीकार नही कर सका है । मेरा साहित्य या रचना संसार कुछ भी नही है, न मैं शायर हूँ और न लेखक। सिर्फ लंबे समय से पत्रकारिता में रहने के कारण सवाल पूछ-पूछ कर कुछ कहना आया हूँ। जो अब मेरी टिप्पणी बन जाती है ।वैसे “सफरनामा “(यात्रा वृतांत ) अधूरा संग्रह ” वफ़ा ” लम्बी धारावाहिक कहानी ” रिश्ता ज़ज़्बात का ” कहानी “टुकड़ा-टुकड़ा पाँव चलती ज़िन्दगी ” लघु कथा ” व्यवस्था की सलीब ” एफिडेविट कहानी बीते सालों का बहुत पहले का सफर है जो मेरे अपने द्वारा सम्पादित समाचार पत्र में प्रकाशित है। परंतु अब वो किस बैग फाइल या पुराने कागजो में हैं, ढूढें तब मिले। यह सच है कि अच्छे अनुभव और उनके बिम्ब ज़िन्दगी के इर्द-गिर्द घूमते रहते है, जो कभी डायरी कागज के टुकड़ों पर उतरते रहे ,और कभी कभी आलेख समीक्षा में आते रहे हैं । अब फेस बुक के पटल पर रचनाओ के रूप में स्वतः स्फूर्त प्रवाह से रच जाते हैं। अभी तक मुक्त छंद विधा मुक्तक,गीत गजल विधा में लगभग 250 रचनाएं लिख गई हैं, जिन में अनेकों प्रिंट मीडिया में भी प्रकशित हैं, पाठको एवं फेसबुक फ़ॉलोअर्स की स्नेहिल टिप्पणियां और अधिक प्रोत्साहित करती हैं ।
यहां एक बार अपने शहर की धरती का मिजाज भी बता दें – क्रांतिकारी ऐतिहासिक तथ्यों से लबरेज हमारी सरजमीं में बलबीर सिहं रंग नीरज जी जैसे युग कवि, अमीर खुसरो मानस के रचयिता बाबा तुलसी की कर्म भूमि भी रही है । संघर्षों के इतिहास ने यहाँ की मिट्टी का मिज़ाज़ खुद्दार और लडाकू बना दिया है। यहाँ लोग मुहब्बत भी करते हैं तो खुद्दार मिज़ाजी से, अंदाज़ कुछ ऐसा — “मुहब्बत मांगने निकले हैं यह चेहरे से जाहिर है , हम किसी के सामने हाथ फैलाया नहीँ करते ” यह मिजाज अदबी दुनिया में झलकता है ,हम भी इससे अछूते नही हैं । एक बात और… हमारे यहां बच के छुपके बात करने की अदा नहीं है, आँख में आँख डाल कर बात करने के आदी हैं लोग। ऎसे में हमारी तरफ से पूरा ख्याल रखा जायेगा कि हम जब भी कहें अदब और कायदे के दायरों का ख्याल हो । मूलतः पत्रकारिता के रस्ते से हमने रचना संसार में प्रवेश किया है, इस लिए ज़िन्दगी के सामाजिक राजनैतिक शासनिक हकीकत के बिम्ब की बात करते है परंतु अधिकांश रचनात्मक सृजन प्रेम आधारित हैं, प्रेम हमारी रचनात्मकता का प्राण तत्व है, इसके बिना रचनात्मक सृजन अधूरा सा लगता है। यह सर्वविदित है, यह भी सही है, इससे इतर विविध विधाओं में हम लिखते हैं । व्यवस्थाजन्य विसंगतिया हमारी रचनाशीलता को गतिशील करती हैं, सामाजिक चेतना की जमीन से जुड़ कर बात की है हमने । पर ज्यादातर लेखन विशेषतः काव्य लेखन मन की भावात्मक अनुभूति का स्पंदन है। जिसे मित्रों एवं पाठक वर्ग ने सहज भाव से स्वीकार कर सराहना की, हार्दिक स्वीकृति देकर हमें कृतार्थ किया है। हमारा मानना है कि कवि/साहित्यकारों को रचनात्मकता रचनाधर्म के प्राण तत्व मानव और मानवीयता को आत्मसात कर अपनी यात्रा में मानवीय सरोकारों को भी दिशा देनी चाहिए। सामयिक सन्दर्भो में साहित्य का यह लोकधर्म है।
राजू उपाध्याय ‘वरिष्ठ पत्रकार’
एटा , उत्तर प्रदेश
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बहुत बहुत शुक्रिया आपका💐💐