संक्षिप्त परिचय: प्रेम को रोग तो कई लोगों ने कहा है पर कुछ लोगों के लिए प्रेम पूजा भी होता है। कैसा लगता है वो प्रेम जो पूजा बन जाता है? ऐसा ही कुछ प्रदर्शित कर रहे हैं कवि राजू उपाध्याय जी अपनी प्रेम पर हिंदी कविता ‘तुमने कहा था’ (कविता शृंखला ४) में।
#प्रेम_सिद्धा…!
हालातों की
तपिश में प्रेम की
सीढ़ियाँ,
जब मोम की
तरह
पिघलने लगती हैं,
तो उन पर
हौले से भी पाँव
रख कर
चलना…
दूभर हो जाता है,
हमें याद है–
ऐसे ही
पिघल कर पानी
बन कर,
बहते
एहसासों की
समतल
जमीन पर
खड़े
होकर एक दिन
तुमने कहा था-
‘एक
चट्टान जैसी
दिखती हूँ
मैं,
पर कई
जगह से
चटकी हुई हूँ,
जो
सिर्फ
मैं जानती हूँ,
डर सा
लगता है
अब के
कोई
ठेस लगी तो-
टूट के
बिखर जाऊंगी
पत्थर सी थी,
मिट्टी में
बदल जाऊंगी,
ऐ !
अजनबी
दया कर
मुझपे,
गिरने की
कगार पर
हूँ,
मुझे हौले ही
छोड़ना..!!
‘ऐ सुनो !
ये तुम्हारा बहका-
बहका विश्वास था,
प्रेम पर,
शायद इसी लिये
वक्त से पहले…
तुम समापन के
अध्याय
रचती थीं,
देखो !
हमने तुम्हारे बहके
विश्वास की
उसी जमीन से
एक-एक
अंजुरी मिट्टी
लेकर प्रेम की
अटल मूरत गढ़ ली है,
जिसे हर दिन
पूजा के
थाल सजा कर
पूजते हैं,
और हौले हौले
निहारते हैं हर दिन…,,
तुम बन गई हो
मेरे प्रेम की
सच्ची साधना,
धीरे-धीरे
मेरे ह्रदय कमल में
विराजित
होती जा रही हो,
‘प्रेम-सिद्धा’ मूरत
बन कर….!
अब
तुम देख लो
निष्प्राण देह में
प्रेम के
नव रूपांतरण
का प्रस्फुटन
होते हुये फिर से..
ऐ सुनो !
प्रेम-देविका
देख रही हो न तुम.. !!
#राजू_उपाध्याय(स्वरचित-९२)
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कविता के लेखक राजू उपाध्याय जी के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े: राजू उपाध्याय
पढ़िए प्रेम पर ही और हिन्दी कविताएँ:
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बहुत बहुत आभार आपका
storiesdilse.in से जुड़ने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद 🙂 🙂
Bahut sunder कविता है।👏🏼👏🏼