भाऊ और सत्तू की प्रेम कहानी

पवन कुमार पाण्डेय 'भाऊ हिंदुस्तानी' की कहानी

भाऊ पवन हिंदुस्तानी की कहानी भाऊ और सत्तू की प्रेम कहानी

संक्षिप्त परिचय : सत्तू कौन है? कैसे हो गया उससे प्रेम? आप भी पढ़िए ये अजब ग़ज़ब अनोखी प्रेम कहानी – भाऊ और सत्तू की।

27 नवंबर 2021 का वह दिन था जब भाऊ और सत्तू –

एक जगह सत्तू देखा ,नजरे सत्तू पर गयी और सत्तू की नजरें हमारी नजरों पर मिली। बस क्या था दोंनो एक दूसरे को टकटकी लगाये देख रहे थे। किसी कार्य के उद्देश्य से जाना हुआ था, थोड़ी देर बीतने के बाद फिर चलना हुआ, जैसे ही सत्तू की नजरों से ओझल हुए हृदय में एक बेचैनी सी हुई, मानो हमें सत्तू से मोहब्बत हो गयी हो। रास्ते भर सत्तू के ख्याल में डूबा हुआ था।

मन की व्याकुलता,हृदय की तड़पन वह वही समझ सकता था जिसे किसी के लिये सच्ची मोहब्बत हुई हो और वह उसे हमेशा के लिए उसका होना चाहता हो। रास्ते कटते गये व्याकुलता अपने चरम पर थी। जैसे-तैसे घर पर पहुँचा रात्रि हो चुकी थी भोजन हुआ ,शयन कक्ष में पूर्णतया आराम की ओर था । लेकिन हृदय में सिर्फ सत्तू का प्रतिबिंब ही था। किसी तरह रात गुजरी। सुबह नाश्ते के बाद सत्तू की खोज में निकला लेकिन इस ठण्ड भरे मौसम में सत्तू का नामोनिशान ना था। हर तरफ निराशा, चारों ओर अन्धकाररूपी बादल छाए हुए थे।  दिन का भोजन नहीं हुआ क्योंकि अब सत्तू में ही प्राण बसा था।

शाम को बेमन से भोजन हुआ, भूख नहीं मिटी लेकिन कुछ खाने की भी इच्छा नहीं हुई। फिर अगली सुबह थोड़ा ही नाश्ता करके बाजार की ओर गया काम कुछ नहीं था बस ऐसे ही निकल पड़े। जैसे चले जा रहे हैं उद्देश्य का पता नहीं बिल्कुल ऐसे ही । विशेश्वरगंज बस स्टॉप पर जैसे ही पहुँचे अचानक कुछ भूला-बिसरा सामान याद आ गया। उस सामान को लेने के लिये बड़े भाई पिंटू तिवारी जी की दुकान पर रूके। हमने श्री पिंटू तिवारी भैया जी को प्रणाम किया बड़े भैया जी ने आशीर्वाद दिया और कहा पवन क्या हालचाल हैं ?

हमने कहा – ठीक है भैया। फिर भैया जी से पूंछा की भैया अपने इधर कहीं सत्तू मिलेगा?

भैया जी हँसकर बोले – कि इस ठण्डी में सत्तू अपने इधर तो कहीं नहीं मिलेगा यदि गर्मी का मौसम होता तो मिल जाता। हृदय में और बड़ी बेचैनी हुई कि अब क्या होगा ? फिर भैया जी ने कहा एक मिनट हम बताते हैं कि सत्तू कहाँ मिल सकता है,यह सुनकर मानो हमने दशों दिशाएं जीत ली हो। अब हमसे बड़ा कोई राजा और बादशाह नहीं हो सकता,

हमने बहुत ही उत्सुकता पूर्वक भैया जी से आग्रह किया कि बताइये कहाँ मिलेगा?

भैया जी ने कहा – कि अयोध्या से पहले एक स्थान कटरा पड़ता है वहाँ आपको हर प्रकार का सत्तू मिलेगा। जब कटरा पहुंचना तब वहां किसी से पूंछ लेना कि सत्तू कहाँ मिलता है। तो वहाँ के लोग आपको बता देंगे,भैया जी की दुकान से सामान लिए और पुनः धन्यवाद और प्रणाम के साथ वापस घर आ गए। बाजार जाने का प्लान तत्काल स्थगित कर दिए क्योंकि वह उद्देशित नहीं था। वापस घर आ गए और एक बड़ी उम्मीद जगी कि अब तो हम सत्तू को पा ही लेंगे।  जब अयोध्या की बात आयी तो तुरंत छोटे भाई अरुण कुमार मिश्र जी का ख्याल आया कि छोटे भाई तो अयोध्या में ही अपनी सेवा दे रहें हैं । उनका आना जाना तो लगा ही रहता है। फिर क्या छोटे भाई जी को 29 नवंबर 2021 समय रात्रि 8:25 पर व्हाट्सअप के जरिये एक संदेश लिखा कि भैया यदि आप अयोध्या में हो तो वापसी में कटरा से हमारे लिये 2 किलो सत्तू ले आना। फिर रात्रि 12:29 पर छोटे भाई का संदेश प्राप्त हुआ ok bhai।

29 नवंबर से 2 दिसंबर 2021 तक हमने इंतजार किया कि छोटे भाई 2 किलो सत्तू लाएंगे लेकिन सत्तू नहीं मिला। हम जानते थे कि छोटे भाई के ऊपर काफी जिम्मेदारी है।  जिसे वह निर्वहन करने में लगे रहे होंगे, समय ना मिल पाया होगा नहीं तो सत्तू जरूर मिलता हमें।  खैर अब आगे बढ़ते हैं, 3 दिसंबर की सुबह हुई हमें एक विशेष कार्य हेतु अयोध्या जाना ही पड़ गया। पल्सर बाइक उठाई और सुबह लगभग 10 बजे अयोध्या की ओर प्रस्थान कर गए। रास्ते भर उत्सुकता और व्याकुलता अपने भवन निर्माण पर तुले थे। हम भी क्या करते बाइक की रेस से रेस करवाते भागे जा रहे थे।  रास्ते में दो पड़ाव के साथ लगभग  12.15 दोपहर हम कटरा पहुँच ही गये।  बूंदाबांदी के साथ मौसम भी बहुत ही सुहाना था। यूँ कहें कि प्यार भरे मौसम के साथ प्रकृति हम पर मेहरबान थी।  कटरा पहुँचते ही बाइक को रोककर एक व्यक्ति से प्रश्न किया कि भाई यहाँ सत्तू कहाँ मिलता है? उसने तुरंत हमें रास्ता दिखाया और वह स्थान हाथ के इशारे से दिखा दिया। हमने तुरंत बाइक की स्पीड पकड़ा दी और उसे धन्यवाद भी नहीं बोल पाये लेकिन रास्ते में हमने हृदय से उसे धन्यवाद ज्ञापित किया।

उस स्थान पर पहुँचे जहाँ सत्तू हमारा इंतजार कर रहा था। बाइक रोक कर सबसे पहले सत्तू को निहारा फिर हाथ से उसे स्पर्श किया। मानों अब हम एक दूजे के हो गये थे। जहाँ सत्तू हमारा इंतजार कर रहा था वहाँ पर एक लगभग 65 वर्षीय दादी अम्मा जी बैठी थी।

अम्मा जी ने कहा – ‘का लेहैव बेटा?

हमने कहा – “अम्मा जी सत्तू लेना है।

अम्मा बोली- कौन सा सत्तू चाहिए ?

हमने कहा – अम्मा जी जो आपका मन करे वह सत्तू दे दीजिए बस हमें सत्तू चाहिए।

अम्मा जी ने कहा – कितना सत्तू लेना है ?

अब इस प्रश्न पर हम अटक गए हमने कहा – अम्मा जी 2 मिनट का समय दो। हम बाइक की डिग्गी की ओर भागे, अरे इसमें तो शाल, जैकेट, मोफलर, दास्ताना एवं जरूरी कागजात रखा है। डिग्गी अपनी क्षमता से ज्यादा भार रोके हुए है । अब क्या करूँ क्या करूँ यह विचार मन ही मन उठ रहे थे कि हमने मोफलर को निकाल लिया और कुछ कागजात को भी। फिर अम्मा की ओर भागे और बोले अम्मा आधा किलो सत्तू दे दो।

अम्मा बोली – आधा किलो में क्या होगा?

हमने कहा- वापसी में आऊँगा तब और लूंगा।

तो अम्मा बोली-वापसी में ही एक साथ ले लेना।

हम नहीं तैयार हुए बोले – कि खत्म हो गया तो ?

अम्मा बोली – हाँ बेटा आज खाली 3 किलो ही सत्तू बचा है। अब कल पिसाइब तब और होइ।

हम आधा किलो सत्तू लेकर अयोध्या की तरफ चल पड़े। कटरा में वापसी लगभग 7:30 शाम का समय हुआ था। अम्मा अपनी दुकान पर बैठी मिली हमें खुशी हुई कि चलो काम बन गया। शाम को ठंड हो ही गयी थी लगभग 90 किलोमीटर की दूरी तय भी करनी थी तो ठंड लगना स्वाभाविक था और वह भी जब बाइक साथ में हो।

हमने अम्मा से कहा – कि डेढ़ किलो सत्तू और दे दो ताकि पूरे 2 किलो हो जाये। डिग्गी से सारा सामान बाहर निकाल लिया और शरीर पर धारण कर लिया। 2 किलो सत्तू आराम से रख गया और अतिरिक्त जगह भी दिख रही थी तो अम्मा जी से कहा कि अम्मा जी कुछ और अच्छा क्या मिलता है आपके यहाँ ?

तो अम्मा जी ने कहा – कि देशी मकई का आटा भी हम रखते है वह भी डेढ़ किलो ले लिया। बाइक की छोटी सी डिग्गी सत्तू और मकई के आटे से भर गई । डिग्गी बन्द करके पुनः अम्मा जी के पास गया।

और अम्मा जी से पूछा – कि अम्मा जी यह सत्तू आप कब से बेच रहे हो ?

तो अम्मा जी बोली – यही कोई 35 वर्ष हम हैरान रह गए कि हमारी उम्र से ज्यादा अधिक दिनों से अम्मा जी दुकान चला रही हैं।

हमने फिर अम्मा जी से पूछा –  कि अम्मा जी हम लोगों को सत्तू कब तक मिलेगा ?

अम्मा जी बोली-कि बेटा जब तक पैरुख रही तब तक बेचब बेटा। क्योंकि हमारे ना रहने पर ई हमरे लड़िके ना बेचिहै बेटा।  क्योंकि इनका सबका ई सब कहाँ पसंद है।

फिर हम अम्मा को प्रणाम किये और बोले – कि अम्मा जी अब घर जाइत है फिर आइब।

अम्मा बोली – कहाँ घर पड़त है बेटा?

हम बोले – अभी 90 किलोमीटर हम जाइब अम्मा ।

अम्मा जी बोली – ‘बेटा आराम -आराम से जाएव बेटा सड़क गीली होई गयी है टायर बहुत बिछलात है ई किचकिच मा।’

हमने कहा – अम्मा जी धीरे-धीरे जाबै।  पुनः प्रणाम किये और घर की तरफ निकल लिए। रास्ते में बड़े आराम से बाइक चला रहे थे।  ट्रैफिक भी उस दिन ज्यादा नहीं था जितना अक्सर होता है। अब किसी बात की तनिक भी चिंता नहीं थी। इस खुशी में कई गाने भी गुनगुना डाले रास्ते कटते रहे। लगभग 10:30 रात्रि पर घर सकुशल पहुँच गए । पत्नी जी को अयोध्या से ही फोन कर दिया था कि हमारे लिये भोजन मत बनाना। तो भोजन का कोई सवाल ही नहीं उठता। घर में सत्तू के साथ प्रवेश किये बहुत अच्छा लग रहा था। यह खुशी सिर्फ हम ही समझ पा रहे थे मानो कि जीवन में अब कोई दुःख तकलीफ नहीं रहा।  कपड़े बदले और हाथ-पैर धुले। थोड़ा 10 मिनट आराम किये। इसके बाद पत्नी से आग्रह किया कि जो सत्तू हम लाये हैं उसे  पानी के साथ एक आधा लीटर स्टील ग्लास में भुना जीरा,बारीक कटा प्याज,हरी धनिया,काला नमक,सफेद नमक,निम्बू का रस,आम की खटाई का रस,थोड़ी सी हींग,आदि को ग्लास में डालकर 6 से 7 चम्मच सत्तू भरकरऔर फिर पानी के साथ उसको चम्मच से खूब मिला दीजिये।

पत्नी जी बोली हम कभी सत्तू बनाये नहीं हैं पहली बार बनाएंगे पता नहीं कैसे बनेगा। हमने कहा अच्छा कोशिश तो करो अच्छा ही बनेगा। फिर लगभग 20 से 25 मिनट में उपरोक्त का मिश्रण युक्त सत्तू का ग्लास हाथ में आया मानो समुद्र मंथन से निकला हुआ अमृत हो। जैसे ही ग्लास को होंठ से लगाया और सत्तू पीना शुरू किया। वाह क्या सोंधी-सोंधी खुशबू, वाह क्या स्वाद, आंनद के साथ जो अनुभूति हुई वह शब्दों से परिभाषित नहीं हो सकता। सत्तू से भरा पूरा ग्लास एक मिनट में पी गए। बड़े जोर से डकार आयी और अंतःकरण सत्तूमय हो गया।

3 दिसंबर से अनवरत शाम को सत्तू का आनंद लिया जा रहा है। अब प्रतिदिन अपने हाथ से शाम को सत्तू में सहायक सामग्री मिश्रण करके सत्तूपान कर लेते हैं। इस आनंद में हमारी हर दिन की सुबह बहुत ही आनंदित के साथ होती है और पूरे भागदौड़ की दिनचर्या में अब तनिक भी थकावट आदि नहीं होती। सत्तू कितना महत्वपूर्ण है यह सत्तूपान करके ही पता चलेगा।

हम सत्तू के हो गए और सत्तू हमारा हो गया।

भाई मन को क्यों तड़पायें-

जब तक शरीर में श्वांस है तब तो वह आपकी ही हुई उस पर सिर्फ और सिर्फ आपका ही अधिकार है,तो मन में उठे प्रबल प्रवाह को क्यों दबाना,उसकी निर्मम हत्या क्यों करना,वह जो चाह रहा है उसे पूरा करिये लेकिन एक बात ध्यान रहे कि उस प्रवाह को पहले जान लीजिये कि समाज में उससे कोई विष ना फैले,यदि उस प्रवाह से सिर्फ आपका व्यक्तिगत नुकसान हो रहा है तो होने दीजिए तभी आप सीख भी पाएंगे।

धन्यवाद

भाऊ पवन हिंदुस्तानी
लेखक की योग्यता- परास्नातक- भारतीय संस्कृति एवं पर्यटन अध्ययन, शिक्षाशात्र, समाजशास्त्र
बीएड, डीएलएड,


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लेखक पवन कुमार पाण्डेय”भाऊ हिंदुस्तानी” के बारे में जानने के लिए पढ़ें ।


पढ़िए उनकी कविता:

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Photo by Nathan Dumlao

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