विश्वंभर नाथ शर्मा ‘कौशिक’ (1899- 1945) प्रेमचन्द परम्परा के ख्याति प्राप्त कहानीकार थे। प्रेमचन्द के समान साहित्य में आपका दृष्टिकोण भी आदर्शोन्मुख यथार्थवाद था। कौशिक जी का जन्म 1899 में पंजाब के अम्बाला नामक नगर में हुआ था। इनकी अधिकांश कहानियाँ चरित्र प्रधान हैं। इन कहानियों के पात्रों में चरित्र निर्माण में लेखक ने मनोविज्ञान का सहारा लिया है और सुधारवादी मनोवृत्तियों से परिचालित होने के कारण उन्हें अन्त में दानव से देवता बना दिया है। कौशिक जी की कहानियों में पारिवारिक जीवन की समस्याओं और उनके समाधान का सफल प्रयास हुआ है। उनकी कहानियों में पात्र हमारी यथार्थ जीवन के जीते जागते लोग हैं जो सामाजिक चेतना से अनुप्राणित तथा प्रेरणादायी हैं। इनकी प्रथम कहानी संग्रह ‘रक्षाबंधन’ सन 1913 में प्रकाशित हुई ‘कल्प मंदिर’, ‘चित्रशाला’, ‘प्रेम प्रतिज्ञा’, ‘मणि माला’ और ‘कल्लोल’ नामक संग्रहों में कौशिक जी की 300 से अधिक कहानियां संग्रहित हैं। इनकी कहानियां अपनी मूल संवेदना को पूर्ण मार्मिकता के साथ प्रकट करती हैं। इनका निधन सन 1945 में हुआ।
इनकी कहानी रक्षा-बंधन एक परिवार को रक्षा बंधन से वापस पिरोने की कहानी है ।
यह उल्लेख https://hi.wikipedia.org/ से लिया गया है। जैसे ही और जानकारी प्राप्त होगी यहाँ जोड़ी जाएगी ।
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