गिल्लू | Gillu | Mahadevi Verma ki Kahani

कहानी हिंदी में | hindi short story

गिल्लू | Gillu | Mahadevi Verma ki Kahani | gillu by mahadevi verma | महादेवी वर्मा लिखित गिल्लू | Hindi short stories | Kahaniya | हिंदी कहानिया

संक्षिप्त परिचय: यह कहानी महादेवी वर्मा की सुप्रसिद्ध हिंदी कहानियों में से एक है। यह कहानी एक नादान और जंगली गिलहरी के बच्चे की है जो पालतू और जिगर का टुकड़ा बन गया लेखिका के लिए। पढ़िए यह कहानी ।

*आप यह कहानी हमारे youtube channel पर सुन भी सकते हैं।

सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है । इसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुंचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चौंका देता था।तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज है। 

परंतु वह तो अब तक इस सोनजुही की जड़ में मिट्टी होकर मिल गया होगा। कौन जाने स्वर्णिम कली के बहाने वही मुझे चौंकाने ऊपर आ गया हो।

अचानक एक दिन सबेरे कमरे से बरामदे में आकर मैंने देखा, दो कौवे एक गमले के चारों ओर चोंचों से छूआ-छुऔवल जैसा खेल खेल रहे हैं। यह काकभुशुंडि भी विचित्र पक्षी है- एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति अवमानित। 

हमारे बेचारे पुरखे न गरूड़ के रूप में आ सकते हैं,  न मयूर के, न हंस के। उन्हें पितरपक्ष में हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर ही अवतीर्ण होना पड़ता है। इतना ही नहीं, हमारे दूरस्थ प्रियजनों को भी अपने आने का मधु संदेश इनके कर्कश स्वर में ही देना पड़ता है। दूसरी ओर हम कौवा और काँव-काँव  करने की अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं।


मेरे काकपुराण के विवेचन में अचानक बाधा आ पड़ी, क्योंकि गमले और दीवार की संधि में छिपे एक छोटे-से जीव पर मेरी दृष्टि रुक गई। निकट जाकर देखा,  गिलहरी का छोटा-सा बच्चा है, जो संभवतः घोंसले से गिर पड़ा है और अब कौवे जिसमें सुलभ आहार खोज रहे हैं।

काकद्वय की चोंचों के दो घाव उस लघुप्राण के लिए बहुत थे, अतः वह निश्चेष्ट-सा गमले से चिपका पड़ा था। सबने कहा, कौवे की चोंच का घाव लगने के बाद यह बच नहीं सकता, अतः इसे ऐसे ही रहने दिया जाये। परंतु मन नहीं माना- उसे हौले से उठाकर अपने कमरे में लायी, फिर रूई से रक्त पोंछकर घावों पर पेंसिलिन का मरहम लगाया। 

रूई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर जैसे-तैसे उसके नन्हे से मुँह में लगाई, पर मुंह खुल न सका और दूध की बूँदें दोनों ओर ढुलक गयीं।


कई घंटे के उपचार के उपरांत उसके मुंह में एक बूँद पानी टपकाया जा सका। तीसरे दिन वह इतना अच्छा और आश्वस्त हो गया कि मेरी उंगली अपने दो नन्हे पंजों से पकड़कर, नीले काँच के मोतियों जैसी आंखों से इधर-उधर देखने लगा।

तीन-चार मास में उनके स्निग्ध रोयें , झब्बेदार पूँछ और चंचल चमकीली आँखें सबको विस्मित करने लगीं। 

हमने उसकी जातिवाचक संज्ञा को व्यक्तिवाचक का रूप दे दिया और इस प्रकार हम उसे गिल्लू कहकर बुलाने लगे। मैंने फूल रखने की एक हलकी ड़लिया  में रूई बिछाकर उसे तार से खिड़की पर लटका दिया। 

वही दो वर्ष गिल्लू का घर रहा। वह स्वयं हिलाकर अपने घर में झूलता और अपनी काँच के मनकों-सी आँखों से कमरे के भीतर और खिड़की से बाहर न जाने क्या देखता-समझता रहता था। परंतु उसकी समझदारी और कार्यकलाप पर सबको आश्चर्य होता था।

जब मैं लिखने बैठती तब अपनी ओर मेरा ध्यान आकर्षित करने की उसे इतनी तीव्र इच्छा होती थी कि उसने एक अच्छा उपाय खोज निकाला।

  
वह मेरे पैर तक आकर सर्र से परदे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेजी से उतरता। उसका यह दौड़ने का क्रम तब तक चलता, जब तक मैं उसे पकड़ने के लिए न उठती।

कभी मैं गिल्लू को पकड़कर एक लंबे लिफाफे में इस प्रकार रख देती कि उसके अगले दो पंजों और सिर के अतिरिक्त सारा लघु गात लिफाफे के भीतर बंद रहता। इस अद्भुत स्थिति में कभी-कभी घंटों मेज पर दीवार के सहारे खड़ा रहकर वह अपनी चमकीली आँखों से मेरा कार्यकलाप देखा करता।

भूख लगने पर चिक-चिक करके मानो वह मुझे सूचना देता और काजू या बिस्कुट मिल जाने पर उसी स्थिति में लिफाफे से बाहर वाले पंजों से पकड़कर उसे कुतरता रहता।

फिर गिल्लू के जीवन का प्रथम बसंत आया। नीम-चमेली की गंध मेरे कमरे में हौले-हौले आने लगी। बाहर की गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आकर चिक-चिक करके न जाने क्या कहने लगीं।

गिल्लू को जाली के पास बैठकर अपनेपन से बाहर झाँकते देखकर मुझे लगा कि इसे मुक्त करना आवश्यक है।

मैंने कीलें निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया और इस मार्ग से गिल्लू ने बाहर जाने पर सचमुच ही मुक्ति की साँस ली। इतने छोटे जीव को घर में पले कुत्ते, बिल्लियों से बचाना भी एक समस्या ही थी। 

आवश्यक कागज-पत्रों के कारण मेरे बाहर जाने पर कमरा बंद ही रहता है। मेरे कॉलेज से लौटने पर जैसे ही कमरा खोला गया और मैंने भीतर पैर रखा, वैसे ही गिल्लू अपने जाली के द्वार से भीतर आकर मेरे पैर से सिर और सिर से पैर तक दौड़ लगाने लगा। तब से यह नित्य का क्रम हो गया।


मेरे कमरे से बाहर जाने पर वह भी खिड़की की खुली जाली की राह बाहर चला जाता और दिन भर गिलहरियों के झुंड का नेता बना, हर डाल पर उछलता-कूदता रहता और ठीक चार बजे वह खिड़की से भीतर आकर अपने  झूले में झूलने लगता। 

मुझे चौंकाने की इच्छा उसमें न जाने कब और कैसे उत्पन्न हो गई थी। कभी फूलदान के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में।

मेरे पास बहुत से पशु-पक्षी हैं और उनका मुझसे लगाव भी कम नहीं है, परंतु उनमें से किसी को मेरे साथ मेरी थाली में खाने की हिम्मत हुई है, ऐसा मुझे स्मरण नहीं आता।

गिल्लू इनमें अपवाद था। मैं जैसे ही खाने के कमरे में पहुंचती, वह खिड़की से निकलकर आँगन की दीवार, बरामदा पार करके मेज़ पर पहुंच जाता और मेरी थाली में बैठ जाना चाहता। बड़ी कठिनाई से मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया, जहां बैठकर वह मेरी थाली में से एक-एक चावल उठाकर बड़ी सफ़ाई से खाता रहता। काजू उसका प्रिय खाद्य था और कई दिन काजू न मिलने पर वह अन्य खाने की चीजें या तो लेना बंद कर देता या झूले से नीचे फेंक देता था।

उसी बीच मुझे मोटर दुर्घटना में आहत होकर कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा। उन दिनों जब मेरे कमरे का दरवाज़ा खोला जाता, गिल्लू अपने झूले से उतरकर दौड़ता और फिर किसी दूसरे को देखकर उसी तेजी से अपने घोंसले में जा बैठता। सब उसे काजू दे आते, परंतु अस्पताल से लौटकर जब मैंने उसके झूले की सफ़ाई की तो उसमें काजू भरे मिले, जिनसे ज्ञात होता था कि वह उन दिनों अपना प्रिय खाद्य कितना कम खाता रहा। 

मेरी अस्वस्थता में वह तकिए पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हे-नन्हे पंजों से मेरे सिर और बालों को इतने हौले-हौले सहलाता रहता कि उसका हटना एक परिचारिका के हटने के समान लगता।

गर्मियों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता, न अपने झूले में बैठता। उसने मेरे निकट रहने के साथ गर्मी से बचने का एक सर्वथा नया उपाय खोज निकाला था। वह मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी रहता और ठंडक में भी रहता।

गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती अतः गिल्लू की जीवन यात्रा का अंत आ ही गया। दिनभर उसने न कुछ खाया न बाहर गया। रात में अंत की यातना में भी वह मेरे बिस्तर पर आया और ठंडे पंजों से मेरी वही उंगली पकड़कर हाथ से चिपक गया, जिसे उसने अपने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था।

पंजे इतने ठंडे हो रहे थे कि मैंने जागकर हीटर जलाया और उसे उष्णता देने का प्रयत्न किया। परंतु प्रभात  की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया।
उसका झूला उतारकर रख दिया गया है और खिड़की की जाली बंद कर दी गई है, परंतु गिलहरियों की नयी पीढ़ी जाली के उस पार चिक-चिक करती ही रहती है और सोनजुही पर बसंत आता ही रहता है।

सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी गई है- इसलिए भी कि उसे वह लता सबसे अधिक प्रिय थी- इसलिए भी कि उस लघुगात का, किसी वासंती दिन, जुही के पीताभ छोटे फूल में खिल जाने का विश्वास, मुझे संतोष देता है।  


महादेवी वर्मा की अन्य हिंदी रचनाएँ | Mahadevi Verma ki anya Hindi Kahaniyan :

  • निक्की, रोज़ी और रानीएक बच्ची और उसके तीन पालतू जानवर। उनके निःस्वार्थ प्रेम और प्रीति की मासूम कहानी। Mahadevi Verma ki Hindi mein Kahani – ‘निक्की, रोज़ी और रानी
  • नीलू कुत्ता – कहानी एक अनोखे कुत्ते की। जिसने स्नेह दिया सबको। जिस पर विश्वास किया सबने। एक कहानी ऐसे कुत्ते की जिसने निस्वार्थ भाव से बिल्ली चूहे खरगोश पक्षी आदि सब की रक्षा की। Mahadevi Verma ki Hindi mein Kahani – ‘नीलू कुत्ता
  • दुर्मुख ख़रगोश – एक मासूम दिखने वाला ख़रगोश क्यों बन गया झगड़ालू और ग़ुस्सैल? पढ़िए इस कहानी में । Mahadevi Verma ki Hindi mein Kahani – ‘दुर्मुख ख़रगोश
  • सोना हिरणी – आख़िर क्यों निश्चय किया लेखिका ने फिर से हिरण न पालने का? पढ़िए इस बेहद भावपूर्ण, एक हिरणी की अटखेलियों से भरी कहानी में ।Mahadevi Verma ki Kahani – ‘सोना हिरणी
  • गौरा गाय – कितना सहना पड़ता है एक गाय को उस देश में जहाँ उन्हें पूजा भी जाता है, पढ़िये इस कहानी में । Mahadevi Verma ki Kahani – ‘गौरा गाय
  • नीलकंठ मोर – एक सुंदर और भावपूर्ण कहानी मोर के प्रेम, भावनाओं और परवाह पर । Mahadevi Verma ki Kahani – ‘नीलकंठ मोर’

महादेवी वर्मा की पुस्तकें आप amazon.in पर भी पढ़ सकते हैं, यहाँ:

  • मेरा परिवार | Mera Pariwar(Hindi) : यह पुस्तक एक संस्मरण-संग्रह है। इस पुस्तक में महादेवी वर्मा ने अपने पालतू पशु-पक्षियों के संस्मरण लिखे हैं। महादेवी वर्मा की अन्य कहानियों की तरह यह संस्मरण भी दिल को छू जाते हैं।
  • अतीत के चलचित्र | ateet Ke Chalchitra (Hindi) : यह पुस्तक एक रेखाचित्र-संग्रह है। इस पुस्तक की कहानियों में महादेवी वर्मा ने अपने संपर्क में आए साधारण जन की विशेषताओं के साथ-साथ उनके जीवन-संघर्ष का चित्रण किया है।
  • पथ के साथी | Path Ke Sathi (Hindi) : यह पुस्तक भी एक रेखाचित्र-संग्रह है। इस पुस्तक की कहानियों में महादेवी वर्मा ने अपने समकालीन साहित्यकारों जैसे रवीन्द्रनाथ ठाकुर, मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के स्मृति चित्र उकेरे हैं ।
  • नीलांबरा | Neelambra (Hindi Edition): यह पुस्तक महादेवी वर्मा द्वारा रचित  कविताओँ का संग्रह है।
  • यामा | Yama (Hindi): यामा एक कविता-संग्रह है जिसकी रचायिता महादेवी वर्मा जी हैं। इसमें उनके चार कविता संग्रह नीहार, नीरजा, रश्मि और सांध्यगीत संकलित किए गए हैं।
  • आत्मिका | Aatmika (Hindi Edition): यह पुस्तक महादेवी वर्मा द्वारा रचित  कविताओँ का संग्रह है।आत्मिका में संगृहीत कविताओं के बारे में स्वयं महादेवीजी ने यह स्वीकार किया है कि इसमें उनकी ऐसी रचनाएं संग्रहीत हैं जो उन की जीवन-दृष्टि, दर्शन, सौन्दर्य-बोध और काव्य-दृष्टि का परिचय दे सकेंगी।पुस्तक की भूमिका अत्यंत रोचक है जिसमें उन्होंने अपने बौद्ध भिक्षुणी बनने के विषय पर स्पष्टीकरण भी किया है।
  • स्मृति की रेखाएँ | Smriti Ki Rekhaye (Hindi): यह पुस्तक एक संस्मरण-संग्रह है। ये संस्मरण भक्तिन, चीनी फेरीवाला, जंग बहादुर, मुन्नू, ठकुरी बाबा, बिबिया, गुंगिया के जीवन के सच को कलात्मकता से कथात्मक रूप में प्रस्तुत करते है।
  • शृंखला की कड़ियाँ| Srinkhala Ki Kadiyan (Hindi): शृंखला की कड़ियाँ महादेवी वर्मा के समस्या मूलक निबंधों का संग्रह है। स्त्री-विमर्श इनमें प्रमुख हैं।
  • सांध्यगीत | Sandhyageet (Hindi): सांध्यगीत महादेवी वर्मा का चौथा कविता संग्रह हैं। इसमें 1934 से 1936 ई० तक के रचित गीत हैं। 1936 में प्रकाशित इस कविता संग्रह के गीतों में नीरजा के भावों का परिपक्व रूप मिलता है। यहाँ न केवल सुख-दुख का बल्कि आँसू और वेदना, मिलन और विरह, आशा और निराशा एवं बन्धन-मुक्ति आदि का समन्वय है।
  • हिमालय | Himalaya (Hindi): हिमालय महादेवी वर्मा का संस्मरण, रेखाचित्र और निबंधों का संग्रह है।
  • दीपशिखा | Deepshikha (Hindi): दीपशिखा महादेवी वर्मा जी का का पाँचवाँ कविता-संग्रह है। इसका प्रकाशन १९४२ में हुआ। इसमें १९३६ से १९४२ ई० तक के गीत हैं।
  • नीरजा | Nirja (Hindi): नीरजा महादेवी वर्मा का तीसरा कविता-संग्रह है। इसका प्रकाशन १९३४ में हुआ। इसमें १९३१ से १९३४ तक की रचनाएँ हैं। नीरजा में रश्मि का चिन्तन और दर्शन अधिक स्पष्ट और प्रौढ़ होता है। कवयित्री सुख-दु:ख में समन्वय स्थापित करती हुई पीड़ा एवं वेदना में आनन्द की अनुभूति करती है।

आपको मुंशी प्रेमचंद की ये रचनाएँ भी अच्छी लगेंगी | Munshi Premchand ki Rachnayein:

  • आत्म-संगीत: क्या होता है जब एक बड़े देश की रानी भक्ति में लीन हो जाती है ? क्या है आत्म-संगीत ? क्या है सुख ? इन्हीं सब के इर्द-गिर्द घूमती प्रेमचंद की हिंदी में कहानी ‘आत्म-संगीत’। Premchand Hindi Story ‘Aatm-Sangeet’.
  • कफ़न: यह कहानी २ गरीब आदमियों की ज़िंदगी के एक दिन पर आधारित है। ये २ लोग बहुत आलसी हैं और काम करना भी नहीं चाहते। पर एक कफ़न के पैसों से ये जो करते हैं वो आपको सोचने पर मजबूर कर देगा। Premchand Hindi Story ‘Kafan’.
  • कौशल: अजीब ही है पति-पत्नी का रिश्ता। इसमें हंसी भी है रुदन भी। लड़ाई भी है मिलन भी। सुख भी है दुःख भी। पर फिर भी एक दूसरे के साथ रहें तभी रिश्ता पूरा है। फिर जब पति, पत्नी की कोई तीव्र इच्छा पति पूरा नहीं करता तो पत्नी को क्या करना पड़ता है? जानिए मुंशी प्रेमचंद जी की हिंदी में कहानी कौशल में। Premchand Hindi Story ‘Kaushal’.
  • राष्ट्र का सेवक: राष्ट्र का सेवक, मुंशी प्रेमचंद जी की हिंदी में कहानी, बहुत ही सरल ढंग से एक महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाती है । यह दर्शाती है कि कभी कभी लोग जो उपदेश देते हैं उसका पालन कर पाना खुद उनके लिए कठिन होता है ।
  • आत्माराम: महादेव को सबसे प्यारा अपना तोता आत्माराम है। परंतु एक दिन महादेव का जीवन बदल जाता है उसके आत्माराम के लिए प्रेम की वजह से ही। जानिए ऐसा क्या घटित हो जाता है एक ही दिन में – मुंशी प्रेमचंद की हिंदी कहानी (Premchand Hindi Story) आत्माराम में ।
  • ठाकुर का कुआँ – गंगू के लिए साफ़ पानी ला पाना इतना कठिन क्यों था? जानने के लिए पढ़िए मुंशी प्रेमचंद की हिंदी कहानी ‘ठाकुर का कुआँ’।

 16,411 total views

Share on:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *