बद अच्छा बदनाम बुरा | bad achcha badnaam bura

बेढब बनारसी जी द्वारा लिखा गया एक व्यंग्य | A humorous sattire written by Bedhab Banarasi

बद अच्छा बदनाम बुरा । एक व्यंग्य बेढ़ब बनारसी द्वारा लिखा गया

संक्षिप्त परिचय: इस व्यंग्य में बेढब बनारसी जी ने बड़े ही अच्छे ढंग से समझाया है कि बुरा कौन होता है। बुराई करने वाला या बदनाम होने वाला? आप भी पढ़िए और जानिए कौन कैसे आपकी सोच बादल सकता है। सतर्क रहिए और ध्यान रखिए हमेशा, उन खबरों से दूर रहिए जो आपको अटपटी लगें। विश्वास तब कीजिए जब विश्वास करने का कारण मिले।                                                  

शेक्सपियर ने बहुत दिन हुए कहा था कि नाम में क्या रखा है । गुलाब को चाहे जिस नाम से पुकारिये सुगंध तो वैसी मीठी होगी। किन्तु वह नहीं जानते थे कि कुछ मनचले लोगों ने उन्हीं के नाटकों को दूसरे लेखक के नाम से कहना आरंभ कर दिया तो तहलका मच गया | तुलसीदास ने तो नाम की अपार महिमा गायी है और कह दिया कि ‘कद्दउं कहाँ लगि नाम बढ़ाई, राम न सकंहि नाम गुणगाई ।’ इसलिये संसार में जो कुछ किया जाय वह नाम के ही लिये किया  जाय तो इसमें आश्चर्य क्‍या हो सकता है। 

किसीसे छिपा नहीं है कि जब कोई पुण्य कार्य करता है तब यह तो निश्चित नहीं रहता कि बैकुंठ में उसके लिये स्थान सुरक्षित हो गया किन्तु उसका नाम अखबारों में छपेगा, लोगों की जबानपर उसका नाम अनेक बार आयेगा यह निश्चित है। और उस व्यक्ति को स्वर्ग का सुख यहीं मिल जाता है। जितने अधिक पत्रों में उसका नाम छपता है, जितने मोटे टाईप में छपता है, जितनी भाषाओं में छपता है उतना ही अधिक उसके आनंद का विस्तार होता है।

नाम का महत्व इतना हो गया कि लोग असलियत भूल गये | आजकल जब सभी ओर वास्तविकता की ओर लोगों का ध्यान कम जाने लगा है। लोग नाम की ही महत्ता समझने लगे हैं। यदि किसी का नाम हो गया तो वह उस पर्दे के भीतर जो चाहे वह कर सकता है। और यदि किसी की कुख्याति हो गयी तो वह चाहे कितना ही अच्छा हो सब लोग उसका नाम सुनकर नाक-भौँ चढ़ायेंगे ।

मैं आपको एक उदाइरणसे स्पष्ट कर दूँगा और आप मान भी जायेंगे कि जो मैं कह रहा हूँ उसमें कहाँ तक सच्चाई है। गधे को लीजिये। किसी अतीत काल में किसी ने गधे में कोई मूर्खता देखी होगी । तब से वह मूर्खता का प्रतीक बन गया । आज तक वह बेचारा मूर्खता का यह बोझ ढोता चला आ रहा है। और अध्यापकों को जब अपने विद्याथियों में कोई त्रुटि दीख पड़ती है तब यही बेचारा स्मरण किया जाता है। मालिक जब अपने चाकर में कोई कमी पाता है तब इसको याद करता है। आप स्वयं देखते होंगे कि यह कितना सीधा पशु है। सारे गंदे कपड़े साफ करने के लिये ढोता है। जितना बोझ चाहिये इसपर लादिये । उस कपड़े के बोझ पर स्वयं धोबी भी बैठ जाता है। किन्तु यह बोलता नहीं। किसी महान तपस्वी, निष्काम साधक की भाँति अपने लक्ष्य की ओर चला जाता है। कभी कभी तो यह ध्यान में आता है कि यह कोई पहले जन्म के योगी हैं जो स्वर्ग के किसी कर्मचारी की असावधानी से पशु के रूप में जा पड़े । इसके पैर बाँध दिये जाते हैं, डंडे का इस पर उसी प्रकार प्रयोग होता है जैसे छत पीटी जाती है। 

किन्तु वह कितना सहनशील होता है, संतोषी होता है | विनय, मर्यादा की सीमा से बाहर नहीं जाता । फिर भी उसकी प्रशंसा नहीं होती । किसी कालेज या स्कूल की डिसिपलिन यदि ठीक हो वहाँ के विद्यार्थी आज्ञा पालन में आदर्श हों तो यह कहते नहीं सुना गया कि अमुक विद्यालय के विद्यार्थी गधे के समान हैं। गधा बेचारा इतना बदनाम हो गया है कि ऐसा अनेक गुण संपन्न प्राणी सदा अवगुणों के लिये ही याद किया जाता है। उसकी बुद्धि देखिये कि यदि खेत में चरने के लिये छोड़ दिया जाय तो वह इस ढंग से चलता है कि कम से कम यात्रा उसे करनी पड़े । किसी त्रिभुज की दो भुजाएँ तीसरी से बड़ी होती हैं, उसी ने खोज निकाला है। ज्यामितिका इतना बड़ा पंडित फिर भी वह बेवकूफ है केवल इसलिये कि कभी कोई इससे रंज हो गया होगा |

यही हाल उल्लू का भी है। दूसरा कोई रात भर जागता वो जितेन्द्रिय कहा जाता। कौवा ऐसे निकृष्ट पक्षी का संहार करता है | रात को पहरा देता है । पुलिस का काम करता है| किन्तु मनहूस और मूर्ख समझा जाता है। कौवा धूर्त है, प्रातःकाल पुण्यात्मा लोगों से खाने के लिये ग्रास पाता है। यह है संसारका ढंग ।

कुत्ते में न जाने कहाँ से सच गुण आ गये । जिसके काटने से आदमी पागल तक हो सकता है किन्तु उसकी सब जगह पूछ है | शायद इसीलिये कि वह युधिष्ठिर का साथी था | उसका भोजन निकृष्ट, उसकी नैतिकता में संदेह है फिर भी वह लोगों की गोद का खिलौना बना हुआ है | यह है नाम की महिमा, यह है नाम का प्रभाव । बिलाई चूहे खाती है किन्तु उसको अपने बर्तन में पानी या दूध पिला दिया जायगा किन्तु गधे को जो पूर्ण रूप से शाकाहारी-वेजिटेरियन है कोई अपने बरतन में

पानी पिलाने के लिए तैयार नहीं है | क्योंकि यह बदनाम है। उसके नाम पर कलंक लगा है |

यह शिकायत की जा सकती कि पशुओं ओर गधे का ही उदाहरण क्यों दिया जाता है । कारण यह है कि संसार के सभी महान विचारक कह रहे हैं कि प्रकृति की ओर सबको लौटना चाहिये। इस युग की यही पुकार है। हम सबको अपना जीवन पशु-पक्षियों के अनुसार कीड़े-मकोड़े के अनुसार भुनगे-पतंगों के अनुसार बनाना चाहिये। इसलिये ऐसे प्राणियों का उदाहरण दिया जा रहा है जो प्रकृति के बृहद पुत्र हैं| यों तो परमात्मा पूर्ण है किंतु यदि परमात्मा के बाद कोई पूर्ण है तो गधा । शीतला माता ने इसीलिये इसे वाहन चुना है। माता के सम्मुख हाथी, ऊँट, जुराफा, जैबरा सभी थे किन्तु उन्होंने इ्से ही चुना। और कहाँ तक कहा जाय यह सिगरेट-सिगार तक नहीं पीता । किन्तु बद-तामीका प्रभाव देखिये | सब जगहोंसे यह बहिष्कृत है| इसे किसीने उपहार स्वरूप काबुल भी नहीं भेजा जहाँ सुना है नहीं होता।

जैसे बदनामी का बिल्ला गधे पर लगा दिया गया है उसी प्रकार मानव समाज में भी कुछ वर्ग ऐसे हैं जिन पर यह छाप लगा दी जाती है। जैसे अविवादहित लोग | सब अविवादहित लोग दुगचारी नहीं होते । आचरण-हीन नहीं होते । किन्तु कुछ लोगों ने बदनाम कर रखा है । अविवाहित जन ब्रह्मचारी होते हैं उनकी पूजा होनी चाहिये। किन्तु किसी से घर रहने के लिये किराये पर माँगिये तो पूछा जाता है कि आपका परिवार कहाँ हैं। ओर कहिये कि मैं कुँआरा हूँ तब आपको जगह उसी प्रकार नहीं मिलेगी जैसे भारत की भूमि में पेट्रोल नहीं मिलता | ओर यदि कहिये कि मैं ब्रह्मचारी हूँ तो पूजा होने लगेगी ।

कितने ही कवि तथा साहित्यकार इसी प्रकार बदनाम दो गये और उनकी रचनायें ऊँची कोटि की होने पर भी जनतासे दूर रहीं। और कितने ही लेखक तथा कवि जिनकी रचना चूसी गड़ेरी के समान नीरस और कतवार के समान निरर्थक है फिर भी कुछ लोगों ने नाम की माला जपी और वह साहित्यिकों के सरदार तथा नेता बन गये |

आज विशापन का युग है । यदि विज्ञापन अच्छे ढंग से हुआ, कला से हुआ तो कैसी भी गंदी वस्तु हो, खराब हो, बेकाम हो उसका बोल-बाला होता है। आजकल का टेकनीक यही है । किसी को बुरा कहने लगिये और संसार उसे बुरा समझने लगता है। बड़ी पुरानी कहानी है कि एक आदमी एक बछड़ा खरीद कर ले जा रहा था। कुछ लोगों ने उसे ठगना चाहा। थोड़ी-थोड़ी दूर पर वह खड़े हो गये। जब वह आदमी कुछ दूर गया तब एक ठग ने कहा आज यह कुत्ता कहाँ लिये चले जा रहे हैं। उस आदमी ने कहा यह बछड़ा है देखते नहीं । फिर दूसरे ठग ने वही बात कुछ दूर पर कही, फिर तीसरे ने और इसी प्रकार चौथे ने । उस आदमी को विश्वास हो गया कि यह कुत्ता है। मुझे धोखा हो गया। उसने उस बछड़े को वहीं छोड़ दिया | चार आदमियों के कहने से बछड़ा कुत्ता बन गया। हिटलर ने “माइन कैंफ” में बताया है कि किसी झूठ को भी बारबार कहा जाय तो वह सच हो जाता है। यह सच्चाई की परिभाषा कहाँ तक ठीक है मैं नहीं कह सकता किन्तु होता ऐसा ही है। इसलिये इस युग में बद भले ही मनुष्य हो जाय किन्तु बदनाम न होना चाहिये।

यही सबसे उत्तम सामाजिक व्यवस्था है। यही जीवन की सफलता की सुनहली कुंजी है। आप बढ़िया से बढ़िया और अधिक से अधिक वारुणी का सेवन कीजिये किन्तु बोतल लेकर टहलने का उपक्रम न रचिये |

लोटिये भी तो घर के आँगन में पब्लिक रोड की नाली में नहीं। सारी बुराई की जड़ बदनामी है, बुराई नहीं। स्पार्टा में भी पुराने समय में जो चोर पकड़ जाता था वही दण्ड पाता था । जो चोरी में पकड़ा न जाय वह चैन की बंसी बजाये। कितना सुन्दर व्यवहारिक सिद्धान्त है। कुछ कठिन अवश्य, किन्तु सभी लाभकारी बातें कठिन तो होती ही हैं ।


पढ़िए बेढब बनारसी जी की अन्य रचनाएँ, यहाँ:

  • अफवाह : एक व्यंग्य उन लोगों पर जो अफवाह फैलाते हैं और जो उन पर विश्वास कर लेते हैं।
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बद अच्छा बदनाम बुरा | bad achcha badnaam bura

बेढब बनारसी जी द्वारा लिखा गया एक व्यंग्य | A humorous sattire written by Bedhab Banarasi

  1. बेढब जी की लेखनी तो चुम्बक जैसी खींचती है, और इसे उपलब्ध कराने के लिए आपका धन्यवाद।

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