संक्षिप्त परिचय – पैसों का पेड़, तुलसी पिल्लई जी की लिखी हुई कहानी है। इस कहानी में लेखिका अपने बचपन के दिनों का एक दिलचस्प क़िस्सा साझा कर रही हैं। यह कहानी पाँच भागों में लिखी गयी है और यह इस कहानी का पहला भाग है। (bachpan ki kahani)
जब मैं अप्पा से रोज – रोज पैसों की माँग करती थी, वैसे मैं अकेली ही पैसे नहीं माँग करती थी।मेरे छोटे भाई-बहन भी अप्पा से पैसे माँग करते थे | मेरा बड़ा भाई जितेन्द्र उर्फ सोनू हमेशा से ही हमारे समूह से अलग रहा है तो उसकी इतनी अधिक जानकारी नहीं हैं |
खैर! अप्पा ने कहा कि तुम सभी रोज-रोज मुझसे पैसे मांगते हो। तो क्यों नहीं तुम सब, एक पैसों का पेड़ उगा लेते ? इससे जब तुम्हें जो चाहिए होगा – उस पैसों के पेड़ से पैसे तोड़ना और जो मन में आए खरीद लेना। हम सभी सत्य समझ बैठे।
हमने पूछा :-“कैसे ?”
अप्पा बोले :- “किसी पेड़ को उगाने के लिए क्या करना चाहिए ?”
हम सबने कहा :-“पहले बीज बोया जाता हैं। लेकिन पैसों का बीज कैसे होता हैं ?”
उन्होंने कहा :- “मैं तुम्हें पैसे का बीज दे दूंगा। उसे एक अच्छी जगह देखकर वहाँ उगा देना। ओर रोज पानी देना। पैसों का पेड़ उग जाएगा। जब उस पर पैसे उगेंगे। पैसों को तोड़ना और फिर जो जी में आए वो खरीद लेना। धीरे – धीरे तुम्हारे पैसों का पेड़ बड़ा होगा। तुम्हारे पास खूब सारे पैसे हों जाएंगे, तुम करोड़पति बन जाओगे। “
भूमा और दलो(छोटे भाई-बहन ) का पता नहीं। लेकिन मैं तो कल्पना बुनने लगी कि मैं एक दिन करोड़पति बन जाऊंगी। अप्पा ने अपना बटुआ निकाला। उसमे से तीन पचास पैसे के सिक्के निकाले और हमें देते हुए बोले :- “यह पैसों के पेड़ का बीज है। उगा दो। लेकिन तीनों अलग-अलग जगह पर उगाना। देखता हूँ कि किसका पेड़ जल्दी उगता हैं ?”
(हमको जब अप्पा ने पैसों के पेड़ का बीज दिया तो वो सिक्के के हू-ब-हू ही लगा)
हम पूछ बैठे :- “अप्पा यह तो सिक्का ही है, बीज थोड़े ही है ?”
अप्पा बोले :- “मैंने इस पर जादू किया है।यह बीज ही है | तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है? अब ज्यादा प्रश्न न करो, इसे उगा दो।” अप्पा ने जो बात कह दी वो पत्थर पर लकीर समझी जाती थी। झूठ कहां लगता था ?
दलों, भूमा और मैं तीनों ने अलग-अलग अच्छी जगह तलाश कर बीज बो दिए और अपनी-अपनी जगह की पैहरेदारी करने लगे | आधा घंटा हुआ।
हम बहन-भाइयों ने आपस में पूछा :- “तुम्हारे पैसों का पेड़ उगा क्या ?”
तीनों ने नहीं में उत्तर दिया। छोटा भाई भूमा तो हम दोनों बहनों से ज्यादा होशियार निकला। एक घंटे बाद भी जब पेड़ नहीं उगा तो उसने पचास पैसे की चॉकलेट खा ली और हमसे झूठ बोलता रहा कि उसने पैसों का पेड़ उगाया है। वो हमारे पैसों का पेड़ उगने का इंतजार करने लगा |
हम दोनों बहनें मिट्टी खोदकर देखतीं कि सिक्का पेड़ मे परिवर्तित हुआ या नहीं? इसी इंतजार में पुरा दिन बीत गया कि हमारा पैसों का पेड़ जरूर उगेगा। संध्या तक बीज पेड़ में परिवर्तित नहीं हुआ तो तुरंत दौड़ी अप्पा के पास और बोली :- “अप्पा पैसों का पेड़ उगा ही नहीं।”
अप्पा बोले :- सब्र रखो,उग जाएगा। और पहले बीज बोने की सही–सही प्रकिया बताओगे ?
पढ़िए इस कहानी का अगला भाग:
पैसों का पेड़ (भाग-२): यह कहानी ‘पैसों का पेड़’ कहानी का दूसरा भाग है।
कैसी लगा आपको बचपन की याद करती इस कहानी (bachpan ki kahani) का पहला भाग? कॉमेंट में ज़रूर बताएँ और लेखिका को भी प्रोत्साहित करें।
लेखिका तुलसी पिल्लई “वृंदा”के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़ें यहाँ।
पढ़िए तुलसी पिल्लई ‘वृंदा’ की एक और कहानी:
- दाढ़ी बनाने की कला: लेखिका अप्पा को दाढ़ी बनाते हुए देखती हैं और फिर उनका भी मन करता है कि वो उनकी दाढ़ी बनाएँ। पर क्या वो उनकी दाढ़ी बना पाती हैं? जानने के लिए पढ़िए लेखिका तुलसी पिल्लई “वृंदा” की बचपन को याद करती यह कहानी “दाढ़ी बनाने की कला”। (bachpan ki kahani)
बचपन की याद करती और कहानियाँ () आप पढ़ सकते हैं यहाँ:
- निक्की, रोज़ी और रानी, लेखक – महादेवी वर्मा: इस कहानी में है एक बच्ची और उसके तीन पालतू जानवर। बच्ची के निःस्वार्थ प्रेम और प्रीति की बचपन को याद करती हुई यह कहानी ।
- दो सखियाँ : दो सखियाँ हैं – मुन्नी और रामी – जिनमें से एक अमीर है एक गरीब। पर साथ में पढ़ने लिखने और बड़े होने के बाद उनका जीवन कैसे एक दूसरे से बंधता है उसकी कहानी है ‘दो सखियाँ’ जिसे लिखा है ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’ ने।
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वाह बहुत सुंदर 👌 स्टोरी दिल से बहुत बहुत आभार मेरे संस्मरण को पटल में साझा करने के लिए 🙏😊
आप बहुत अच्छा लिखती हैं तुलसी जी, आपके संस्मरण storiesdilse.in पर साझा करने के लिए धन्यवाद :).
बहुत सुंदर ढंग से लिखा गया संस्मरण , तुलसी जी आप सदैव ऐसी कहानियां लिखती रहें साधुवाद