संक्षिप्त परिचय: पैसों का पेड़, तुलसी पिल्लई जी की लिखी हुई कहानी है। इस कहानी में लेखिका अपने बचपन के दिनों का एक दिलचस्प क़िस्सा साझा कर रही हैं जो एक पैसों के पेड़ से सम्बंधित है। यह कहानी पाँच भागों में लिखी गयी है और यह इस कहानी का दूसरा भाग है। आप इस कहानी का पहला भाग पढ़ सकते हैं यहाँ।
अप्पा बोले:- “सब्र रखो, उग जाएगा। पहले बीज बोने की पूरी प्रक्रिया सच-सच बताओ?”
हमने बताया :- “पहले मिट्टी की खुदाई की, फिर पैसों का बीज बोया और उस बीज को पानी पिलाया।”
अप्पा बोले :- “तब तो उग जाएगा।”
हमने कहा :- “हमने देखा खोदकर, वो पैसों का बीज सिक्के की तरह ही है।”
अप्पा बोले :- “क्या ? तूने बीज बोने के बाद खोदकर देखा ? हो गया न सत्यानाश।अब तेरा पेड़ नहीं उगेगा।उसकी जड़े जल गई है। वो बीज खराब हो गया है। अब उस पैसों के पेड़ को भूल जा। नहीं उगेगा पैसों का पेड़।”
दलों बोली :- “अप्पा, मैंने नहीं किया ऐसा, मेरा तो पैसों का पेड़ उग जाएगा न ?”
अप्पा बोले :- “हाँ ! तेरा उग जाएगा, तू समझदार है।”(मुझे ईर्ष्या होने लगी ।)
मैंने कहाँ :- “अप्पा तुम मुझे दूसरा बीज देना। मैं फिर से उगाऊँगी।”
मैं उसके बाद उस जगह वापिस गई और सिक्के का बीज ढूँढने लगी। लेकिन वो सिक्का खो गया। मुझे मिला ही नहीं अर्थात् जिस जगह मैंने अपने पैसों का पेड़ का बीज बोया था।वह जगह भूल बैठी।
दूसरे दिन अप्पा ने फिर एक सिक्के वाला बीज बोने की सारी प्रक्रिया बता कर दी।
उन्होंने कहा :- “जमीन में मिट्टी की खुदाई करो, यह सिक्के वाला बीज उसमे रख दो। फिर उस पर मिट्टी डाल देना ताकि सिक्का दिखाई न दे। फिर रोज पानी देना।लेकिन खोदकर वापिस देखना मत, इससे बीज खराब हो जाता है और पैसे का पेड़ नहीं उगता।”
मैंने बीज बो दिया ओर आँखों मे पैसों के पेड़ की कल्पना तैरने लगी। जब मैं दूसरे दिन बीज को पानी देने पहुंची, तो जिस जगह वह सिक्के का बीज बोई थी, वो जगह मस्तिष्क से कहीं ओझल हो गई थी | मुझे तो कुछ समझ नहीं आया कि कहां बीज बोई थी ? मेरे साथ कई बार यही होता रहा।
मैंने अप्पा को बताया कि मैं तो यह भूल जाती हूं कि मैंने किस जगह पर बीज बोया है? अप्पा ने मुझे बहुत ही स्नेह भरा सुझाव दिया कि उस जगह को चिन्हित करो। इससे नहीं भ्रमित होओगी। अब मैंने उस जगह को चिन्हित करना शुरू कर दिया। ताकि फिर से मैं भ्रमित न हो जाऊं।
अप्पा ने तीसरी बार सिक्के वाला बीज दिया, पेड़ उगाने को ।मैं उसी प्रक्रिया से उगाई और पानी देती रही। एक दिन मन उचट बैठा।पेड़ कहां उगने वाला है ? मुझे तो यह कार्य असंभव लगता है? यह सोचकर एक दिन पानी नहीं दिया।लेकिन अप्पा पर पूर्ण विश्वास… जरूर उगता है – पैसों का पेड़। मैंने फिर अपनी निराशा को आशा में परिवर्तित किया।और अप्पा के पास गई। अप्पा, मेरे पैसों का पेड़ क्यों नहीं उग रहा है ?
अप्पा बोले :- अभी समय लगेगा, सब्र कर, रोज पानी दे रहीं है न ?
मैंने कहा :- “नहीं एक दिन नहीं दिया।”
अप्पा बोले :- “फिर हो गया न सत्यानाश। गलती कर बैठी। फिर से बीज खराब हो गया। तुझसे पैसों का पेड़ नहीं उगने वाला।”
मैंने कहा :- “अप्पा तुमने भी कभी पैसों का पेड़ उगाया है ?”
अप्पा बोले :- “मैंने तो एक रुपए का पेड़ उगाया है और पाँच रुपए के सिक्कों का भी, दस के नोट का भी पेड़।अब सौ रुपए के नोट का पेड़ उगाने वाला हूँ। बस बीज बो दिया है। पानी देता रहता हूँ। कुछ दिनो में उग जाएगा और मुस्कुरा दिए।”
मैंने कहा :- “मुझे बताओ ना ? आपके पैसों का पेड़?”
अप्पा बोले :- “मैं तुझे नहीं बताऊँगा।”
मैंने कहा :- “क्यों ?”
अप्पा बोले :- “कहीं तू जब जी में आया। तब मेरे पैसों के पेड़ से ले लेगी न इसलिए, नहीं बताऊंगा। कहीं तुने मेरे पैसों के पेड़ से पैसे चुरा लिए तो? और तो और हर किसी को पैसों का पेड़ नहीं बताना चाहिए। मेरे पैसों के पेड़ को कहीं तेरी नज़र लग गई तो? मेरा पेड़ पैसे देना बन्द कर देगा तो? “
मन में बहुत ईर्ष्या होने लगा। अप्पा का पैसों का पेड़ उग गया और मैं निकम्मी अभी तक पैसों का पेड़ नहीं उगा पाई।
पढ़िए इस कहानी का अगला भाग:
पैसों का पेड़ (भाग-3): यह कहानी ‘पैसों का पेड़’ कहानी का तीसरा भाग है।
कैसी लगा आपको बचपन की याद करती यह कहानी का दूसरा भाग? कॉमेंट में ज़रूर बताएँ और लेखिका को भी प्रोत्साहित करें।
लेखिका तुलसी पिल्लई “वृंदा”के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़ें यहाँ।
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