संक्षिप्त परिचय :- जीवन में सुख और दुःख आता ही रहता है। कुछ ना कुछ सीखने को मिलता ही रहता है। कभी कुछ हमें अंदर से हिला देता है तो कभी हम ख़ुशी में झूमने लगते हैं। पर इन सब में जीवन जीने का सही ढंग क्या है? कुछ ऐसी बात समझाती हुई सुंदरी अहिर्वार जी की जी यह कविता।
मनुष्य की जीवन
प्रवृति प्रकृति और
परमात्मा की एक
बहुमल्य महान सौगात है।
जीवन की काल्पन्तमकता में
मनुष्य उलझता और
बिखरता जाता है।
क्षण भंगुर इस जीवन का
तनिक भी आभास नहीं
कर पाता है।
मनुष्य का जीवनत्व
स्वयं में परिपूर्ण होता है
जीवन इस तरह जिया
जाना चाहिए कि जीवन
स्वयं वरदान बन जाए।
मनुष्य का जीवन बाँस की
पोंगरी की तरह है।
जिससे बासुरी का
निर्माण होता है।
अर्थात् यदि जीवन में
स्वर और अंगुलियों को
साधने की कला आ जायेगी
तो उस दिन बाँस की
पोंगरी भी बाँसुरी बनकर
संगीत के सुमधुर संसार का
सृजन कर पाएगी ।
सुंदरी अहिरवार,
भोपाल,म0प्र0
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Photo by Tal Molcho
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