संक्षिप्त परिचय: इस सुंदर हिंदी कविता के ज़रिए कवयित्री गुंजन सिंह खुश रहने की प्रेरणा दे रही हैं। कई बार ऐसा हो जाता है कि लगता है अब ज़िंदगी में खुश होने की वजह नहीं हैं – उन पलों का ज़िक्र करती हुई यह हिंदी कविता ।
ऐ दिल तू ज़रा सी खुशी ढूंढ ले
ढूँढी है इस तरह, ज़िन्दगी हर जगह
छूटती जो गयी हाथ से बेवजह
खोल ले अब नज़र, छोड़ दे ये सुरूर
देख ले अब ज़रा, आस पास दूर दूर
चार पल की सही ज़िन्दगी ढूंढ ले
ऐ दिल तू ज़रा सी खुशी ढूंढ ले
कब अँधेरा हुआ, चाँद भी कब जला
कब सवेरा हुआ ये पता न चला
इस ज़मी से अलग उस फलक से परे
बस ठहर जाए जो, जो पलक पर रहे
दो घड़ी की सही रौशनी ढूँढ ले
ऐ दिल तू ज़रा सी खुशी ढूंढ ले
रूठ कर जो गए पल वो तेरे न थे
आज जो न मिले कल वो तेरे न थे
जो महकती रहे थोड़ी थोड़ी जले
नब्ज़ के संग चले, धड़कनों में ढले
जिस में तू रह सके वो घड़ी ढूंढ ले
ऐ दिल तू ज़रा सी खुशी ढूंढ ले
कुछ संभाला भी था कुछ बचाया भी था
आँख को मूँद कर ख्वाब आया भी था
नींद का टूटना ख्वाब सह न सका
दिल में रह न सका, दिल भी कह न सका
अनकही रह गयी वो कही ढूँढ ले
ऐ दिल तू ज़रा सी खुशी ढूंढ ले
होंठ तक बह चले आँख को छोड़कर
दी थी हमने उन्हें वो कसम तोड़कर
कम से कम तो यही और कुछ न सही
जो छलकती न हो हाँ वही, हाँ वही
आँख में जो रहे वो नमी ढूँढ ले
ऐ दिल तू ज़रा सी खुशी ढूंढ ले
आसमाँ उड़ चला और ज़मी बह गयी
पास था सब मगर कुछ कमी रह गयी
दर्द हर मोड़ पर वो हमें दे तो क्या
पाँव घायल करे ठोकरें दे तो क्या
दो कदम जो चले वो ज़मी ढूँढ ले
ऐ दिल तू ज़रा सी खुशी ढूंढ ले
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