संक्षिप्त परिचय: इस कविता में कवि बता रहे हैं कि कैसे दुनिया में सभी स्वार्थी हैं और सब के हित के लिए यह संसार क्या कर सकता है। पढ़िए यह हिन्दी में कविता।
मेरा मेरा जपता रहता ,
स्वार्थहेतु सब कुछ सहता,
अपने हित में करें अहित,
निजता से सजा बाजार है।
स्वार्थमय यह संसार है ।।
स्वार्थी नर होता जन्मजात,
स्वार्थ हित बिछाता बिसात,
कैसे करूं जगत मुट्ठी में,
करता वह निशदिन विचार है ।
स्वार्थमय यह संसार है ।।
यदि चाहते हो स्वार्थ साधना,
निज स्वत्वकी कर आराधना,
आत्मबल से ही स्वार्थपूर्ति,
पुरुषार्थ परम आधार है।
स्वार्थमय यह संसार है ।।
छोड़ो दूसरों की परवाह,
बना लो अपने आप राह,
मंजिल जितनी ऊंची होगी,
बढ़ता स्वार्थ अधिकार है।
स्वार्थमय यह संसार है।।
अपना लो बंधु प्रबल स्वार्थ,
स्वतः पूर्ण होगा परमार्थ,
बना लो निज को बरगद वृक्ष,
तुम्हारा स्वार्थ भी छायादार है।
स्वार्थमय यह संसार है।।
– रामप्रवेश पंडित मेदिनीनगर झारखंड
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