संक्षिप्त परिचय: कवि प्रभात शर्मा जी की यह सुंदर रचना उस क्षण का विवरण करती है जब हम अपने अंत:करण के प्रेम का सत्य समझ लेते हैं। पढ़िए यह कविता हिंदी में:
सजल नयन, अरूणाभ वलय
में , निरखी निज -छवि,
आलोकित जग, झंकृत तन-मन ।
पतित अश्रु-जल के कण-कण
में, पाया संचित नवल प्रेम-धन ।।
अद्भुत था, अनुभूत नहीं था ,
दिव्य, अलौकिक था वह पलछिन ।
प्रेमाम्बु – संतृप्त हुआ था ,
तब मेरा यह दुर्लभ जीवन ।।
कवि के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
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चित्र के लिए श्रेय: geralt-9301
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