एक भावांजलि 🙏🌹🙏… ग्राम्य-वास को 🌹🙏🌹 | गाँव पर कविता

कवि प्रभात शर्मा की रचना

एक भावांजलि ... ग्राम्य-वास को प्रभात शर्मा की कविता | गाँव पर कविता

संक्षिप्त परिचय: गाँव का जीवन शहर के जीवन से अलग होता है, पर उसमें कुछ वे विशेषताएँ होती हैं जो शहर में ढूँढने से भी नहीं मिलती। कौन सी होती हैं ये विशेषताएँ ? जानने के लिए पढ़िए गाँव पर यह कविता ।

एक मित्र ने कहा –
” सौंधी महक , औ प्रथम फुहारें
उड़ती तितली, औ मन्द बयारें,
सघन पुष्प की सुन्दर लतिका
सावन की निर्झर बौछारें ।

नहर किनारे लगे वृक्ष से
फल खा-खा कर नहर नहाना,
गर्म गर्म गुड़ गन्ने का रस
पीकर घर को दौड़ लगाना।

कोयल के स्वर और मल्हारें
झूलों पर इठलाती गातीं
ताई , चाची और बालाएं ,
जाने सब अब कहां खो गईं
स्वप्न दृश्य सी बात हो गईं ।

पनघट के वे सरस दृश्य थे
होरी के हुरियार मस्त थे ,
सब ही मिलजुल कर रहते थे
सब के दुख में सब सहते थे।
सब ही वे इतिहास हो गए ।

निर्मल आकाशी वे तारे
कहीं ध्रुव, सप्तॠषी सारे ,
तारों की गंगा आकाशी ,
दौड़ लगाते चन्दा प्यारे ,
जानें कहां विलुप्त हो गए ।

कल्लो काकी की गाथाएं,
मन्नो बूआ की बाधाएं ,
चाचा जी के आल्हा-ऊदल
दादी की सब देव कथाएं ,
जाने कहां सुसुप्त हो गए । “

मैं ने कहा–
“” शायद होता तो अब भी है
जो सब कुछ जैसा पहले था
मौलिकता से भाग भाग कर ,
जो था सब हम ही भूले हैं ।

कोयल के स्वर ,गन्ध भूमि की
उड़ती तितली , सावन के झर
वे सब अब भी उड़ते गाते हैं
गन्ध सुमधुर धुन फैलाते हैं ।

पर , हम ही तो भूल गये है
गांवों छोड़ सब दूर हुए हैं ,
बढ़ती जाती धन आराधना
क्रत्रिम वैभव भोग साधना ।

हमने ही तो स्वयं चुने हैं ,
सपने मन में विविध बुने है
उठता धूंआ ,घुटती सांसें,
विश्वासों की लुटती आसें।

घर छोड़े हैं मकान बनाए,
बाग छोड़ बहु मंजिला भाए,
इसीलिए सब न्यून हुआ है ,
न्यून कहीं तो शून्य हुआ है ।

मांटी की वो सुगन्ध चाहिए ,
फूलों की रसगन्ध चाहिए,
उड़ती तितली बौर बाग के,
आत्म,बन्धु, सौहार्द चाहिए।

वापस चलें गांव अपने को
काका,ताऊ ,दादी के घर
नहर किनारे लगे बृक्ष से
तोड़ आम जामुन खाने को ।

तरुणाई फिर से पाने को
शुद्ध दूध,घी माखन खाकर
उन्नत प्रतिरोधकता पा कर
रोगों से बस लड़ जाने को।

अपनापन पाने अपनों का ,
सच करने मन के सपनों का,
खिलता बचपन औ यादों का,
यौवन के उन भूले वादों का ।

मधुर मधुर सा ही सब होगा,
ईर्ष्या,जलन मुक्त जग होगा ,
सच्ची होली ईद मनेंगीं ,
छोटी, बड़ी दुकान सजेंगीं।

हिल-मिल कर अब रहें गांव में,
अपना ही धन्धा करें साथ में ,
कम में ही काम चल जाएगा ,
पर,सुख परिवारिक आएगा । “”

…… प्रभात शर्मा 16.03.2021


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