संक्षिप्त परिचय : क्या बस साबुन की दो बट्टियाँ किसी का जीवन बदल सकती हैं? कुछ ऐसे ही सवाल का जवाब देती है उषा रानी जी की यह छोटी सी कहानी जो ग़रीबी पर है – साबुन की दो बट्टी।
सोहन गरीब माँ- बाप का बेटा था। उसके पास न अच्छे कपड़े थे, न ही स्कूल बैग किताबें भी पुरानी खरीदी थी। जो तुड़ी- मुड़ी थी। रोज नहाने के लिए साबुन- तेल भी नहीं था, न कंघी थी। लेकिन वो पढ़ने में होशियार था। इसीसे शिक्षक उसे डांटते नहीं थे।
उसकी मोती जैसे अक्षरों वाली कापी को देख कर हिन्दी अध्यापिका रमा ने शाबाशी देते हुए खास रूचि दिखाई। अगले दिन रमा ने उसे नहाने- धोने के लिए दो साबुन की बट्टियाँ दी। साथ ही कहा-” कल तुम चमकते हुए दिखाई दोगे? ” सोहन ने हामी भरी स्कूल की छुट्टी के बाद घर आकर किताबें रखी और बाल्टी लेकर हैंडपंप पर गया। रगड़- रगड़ कर नहाया। कपड़े खूब मसल- मसल
कर धोये।
माँ- बापू काम से लौटे तो बेटे को साफ सुथरा चमकते हुए देखा तो चकित रह गये। वह गमछा लपेटे बैठा था। माँ को सारी बात बताई। माँ- बापू खुश हुएं। अगले दिन देखा सोहन तैयार हो कर स्कूल जाता हुआ कितना सुंदर लग रहा था। सोहन के बाप को शराब की लत थी। जिस कारण घर में गरीबी थी। बेटा होनहार था। उस पर भी ध्यान नहीं देता था। उसकी पत्नी ही किसी तरह जुगाड़ कर उसे स्कूल भेजती थी। सोहन का बाप राजू को पहली बार अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने अपने मन में संकल्प लिया -” वह आज से ही शराब को हाथ नहीं लगायेगा और सोहन की पढ़ाई पर ध्यान देगा। “
स्वरचित लघुकथा
उषा माहेश्वरी पुंगलिया जोधपुर राजस्थान
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यह जीवन का मूल्य समझाती कहानी की लेखिका उषा रानी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
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