चाय हमारा मान है | हिंदी कविता

उषा रानी की कविता | A Hindi Poem by Usha Rani

चाय हमारा मान है | उषा रानी की कविता | चाय पर हिंदी कविता

संक्षिप्त परिचय : भारत में लगभग हर घर में चाय एक अनन्य हिस्सा होती है। पर ऐसा क्यूँ होता है? जानने के लिए पढ़िए चाय पर यह कविता ।

चाय🍵☕ हमारा मान है
चाय से ही सम्मान है
किसी के घर🏡 जाओ या
कोई हमारे घर आये
चाय की मनुहार से ही
स्वागत अभिनंदन कराये
चाय के संग आपस में
सुख-दुख बतियाते
मन को खुशी दे जाये
दिल का दर्द भाप बन उड़ जाये
दिल से दिल का रिश्ता गहरा हो जाये
अपनेपन की अनुभूति कराये
हर मौसम में चाय🍵☕
अपने अलग अलग रंग दिखाये
गर्मी में इलायची की खुश्बू से
मन तृप्ति से भर जाये
सर्दी में तन मन को गर्मियों
और बरसात में पकोड़ों के साथ
मस्ती का स्वाद चखाये
चाय के क्या कहने
जाने कितने जतन कराये
मान न मान मैं तेरा मेहमान
प्रेम की नयी किताब लिखाये
इसीलिए शायद हर शहर में
सड़क के मोड़ पर
चाय के ठेले लगे होते हैं
जो हर मौसम में चाय प्रेमियों को
अपने पास बुलाते हैं और
जाने कितनों के दिल💜❤ को
सुकून से भरकर दुआ पाते हैं
वाह चाय! तू ही मेरा मान है
तू ही हम सबका सम्मान हैं

स्वरचित कविता चित्र पर रचना
उषा रानी पुंगलिया जोधपुर राजस्थान



कैसी लगी आपको चाय पर यह कविता ? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवयित्री को भी प्रोत्साहित करें।


कविता की लेखिका उषा रानी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ 


पढ़िए उनकी और कविताएँ:

  • आइसोलेशन – एकांत में अकेला रहना: आज कोरोना की वजह से इंसान का एकांत में रहना मजबूरी हो गया है। इसी पहलू को उजागर करती है उषा रानी की यह कविता ‘एकांत में अकेला रहना’।
  • पुरुष का मौन: जहाँ आज सब स्त्री पर हो रहे अत्याचारों को ध्यान में रखते हुए उन पर कविताएँ लिख रहे हैं, जो कि समय की माँग भी है वहीं एक ऐसी कविता की भी ज़रूरत है जो पुरुष के समाज में योगदान पर भी प्रकाश डाले। ऐसी ही एक कविता है ‘पुरुष का मौन’ जिसे लिखा है उषा रानी ने।
  • दादी तुम चुप क्यों हो? | दादी माँ पर कविता:-कवयित्री उषा रानी की यह कविता बूढ़ी दादी माँ के लिए कई सवाल लिए है। पढ़ के ज़रूर बताइएगा कि क्या आपके दिल में भी ऐसे ही सवाल आते हैं ?

पढ़िए ऐसी ही कुछ और कविताएँ:

  • प्यारे जीजाजी: जैसा की कविता के नाम से प्रत्यक्ष है, उम्मेद सिंह सोलंकी “आदित्य” जी की यह कविता उनके प्यारे जीजाजी के लिए है।
  • माँ का रोपित वसंत: कोरोना काल में जहाँ कई लोग फिर से किसी ना किसी रूप में प्रकृति से जुड़े हैं, वहीं ये कविता एक ऐसी लड़की के मन की आत्म संतुष्टि व्यक्त करती है जिसने वर्षों पूर्व अपनी माता द्वारा रोपित एक वृक्ष में ही अपने परिवार का एक हिस्सा देखना शुरु कर दिया था और इसलिए अब उसे अकेला महसूस नहीं होता । पढ़िए बचपन याद करती यह सुंदर कविता।
  • हमारे घर का आँगन: इस कविता में कवि सौरभ रत्नावत अपने घर की ख़ूबसूरती को बयाँ कर रहे हैं। साथ ही उनके परिवार और प्रकृति के बीच कैसे तालमेल बैठा हुआ है यह भी समझा रहे हैं।

अगर आप भी कहानियाँ या कविताएँ लिखते हैं और बतौर लेखक आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमसे ज़रूर सम्पर्क करें storiesdilse@gmail.com पर। आप हमें अपनी रचनाएँ यहाँ भी भेज सकते हैं: https://storiesdilse.in/guidelines-for-submission/


PC:  五玄土 ORIENTO 

 989 total views

Share on:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *