संक्षिप्त परिचय: भारत का इतिहास भी उसी की तरह विशाल है। इसी इतिहास की कुछ झलकियाँ दिखलाती अनिल कुमार मारवाल जी की यह कविता है। पढ़िए और आप भी जानिए।
हाँ हमने भारत को लड़ते देखा।
शत्रु के सीने पर ले खड़ग चढते देखा।
सिकंदर को सिंध में डरते देखा
पोरस , मौर्य के जोश से
यूनानियों को भारत से भागते देखा।
पृथ्वी राज की तलवार से
गोरी को क्षमादान मांगते देखा।
हाँ हमने भारत को लड़ते देखा…………….।
दाहिर की तलवारों को
शत्रुओं के रक्त से नहाते देखा
कृष्ण द्वारा अधर्मियों को चेतावनी देते देखा।
राम द्वारा रावण के अहंकार के
दशो सिरों को कटते देखा।
कुरुक्षेत्र में कृष्ण के सुदर्शन द्वारा
कंटको को कटते देखा।
विक्रमदित्य के अश्वों को
विश्व भ्रमण करते देखा।
भोज द्वारा शत्रु को भंजते देखा
समुंद्र गुप्त के अश्वों को भी समंदर
का पानी पीते देखा।
शतकर्णी के तीरों द्वारा भारत को विजय होते देखा।
अशोक द्वारा भारत को महान बनते देखा।
हाँ हमने भारत को लड़ते देखा……………………।
राणा सांगा , कुम्भा के रण कौशल से, मालदेव और प्रताप के सिंहनादो से मुगलों के सीने में भय को पलते देखा।
पंजाब में गुरुगोविंद, अर्जनदेव, महाराजा रणजीत सिंह के अभियानों से देशहित, धर्म के लिए खड़ते देखा।
कहीं वीर मराठों को मुगलों और फिरंगियों से दो-दो हाथ करते देखा।
दुर्गावती, लक्ष्मीबाई, कर्मवती को स्वयं रण में दुश्मन का काल बनते देखा।
मानो रण चंडी खपर को भर रही हैं, अब स्वयं दुर्गा ही शत्रु का विनाश कर रही हैं
संथालो को अपनी जमीं के लिए तीरों और भालों के साथ लड़ते देखा।
मंगल पांडे ,त्यांता टोपे द्वारा वतन की मिट्टी के लिए वतन पर फिदा होते देखा।
भगतसिंह , आजाद ,नीरा , बॉस और अंगीनित क्रांतिकारियों को भारत की आजादी के लिए फिरंगियों से लड़ते देखा ।
बटुकेश्वर दत्त को भी आजाद भारत में रोटी के लिए झूझते देखा।
हां हमने भारत को लड़ते देखा ……………………..।
भूल न जाना राजा प्रथु को जिसके आगे बखित्यार खिलजी ने भी घुटने टेके थे।
ज्ञान और शिक्षा की क्या बात करूँ, सदा भारत के ज्ञान पर अभिमान करूँ।
तक्षशिला , नालंदा, विश्वविद्यालयो से जी करता है मैं फिर से ज्ञान का भंडार भरूँ।
आम किसानों को अपने खेतों के लिए लड़ते देखा।
मेहनतकश नारियों को अपनी इज्जत के लिए अपने आप लड़ते देखा।
हाँ हमने जब भी देखा भारत को लड़ते देखा सदा संघर्ष करते देखा।
कैसी लगी आपको भारत के इतिहास पर यह कविता? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवि को भी प्रोत्साहित करें।
इस कविता के लेखक अनिल कुमार मारवाल के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ।
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