संक्षिप्त परिचय: एक लड़की जो अब तक अपने बाबुल के घर रही, वह शादी करती है, तो उसे दुल्हन बन कर विदा होना पड़ता है। वह विदाई का पल सब के लिए एक बहुत ही भावपूर्ण पल होता है। इसी विदाई पर है ज़ुबैर खाँन की यह कविता ।
खामोशीयाँ दुल्हन की सुनो उस से क्या कहती है
सर पे सजी सहरे की लड़ीयाँ उस से क्या कहती है
अब इस में कोई क्या करे यह रीत ही कुछ ऐसी है
बदलते वक्त में सबको इक दिन बदलना पड़ता है
सबको इक नये रिश्ते मे ढ़लना पड़ता है
अब इस में कोई क्या करे यह प्रीत ही कुछ ऐसी है
बचपन सूना वो घर सूना जिस में तू रहती है
उस दौर का यह दौर तेरा जिस में तू रहती है
अब इसमे कोई क्या करे यह उलझन ही कुछ ऐसी है
हल्दी से सजाया है तुझे ये रस्म ही कुछ ऐसी है
मेहदीं से
दिल को महाकाया है यह खूशबू ही कुछ ऐसी है
खुद सवँरती है अपने पिया के लिए यह दुल्हन ही कुछ ऐसी है
बाबुल के दोश पर तूने गुज़ारे है बचपन
माँ की दुआओं का आता जाता है मौसम
घर छोड़ जाने का रिवाज़ ही कुछ ऐसा है
अब इसमे कोई “जुबैर”क्या करे यह बिदाई ही कुछ ऐसी है
लेखक – जुबैर खाँन…….📝
कैसी लगी आपको विदाई पर यह कविता ? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवि को भी प्रोत्साहित करें।
इस हिंदी कविता ‘विदाई’ के लेखक ‘जुबैर खाँन’ जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
पढ़िए ज़ुबैर खाँन द्वारा लिखी गयी और कविताएँ:
- ये कैसे हैं रिश्ते: यह एक रिश्तों पर कविता है जिसे लिखा है कवि ‘जुबैर खाँन’ ने । अपनी इस कविता में कवि रिश्तों की विचित्रता का वर्णन कर रहे हैं।
- तू ज़िंदगी है: ‘तू ज़िंदगी है’ एक हिंदी कविता है जिसे कवि ज़ुबैर खाँन ने लिखा है। इस कविता में कवि अपने दिल के प्रेम को सुंदर शब्दों में बयाँ कर रहे हैं।
- अब तो कुछ करना होगा: यह कविता ‘अब तो कुछ करना होगा’ नारी पर हो रहे अत्याचारों पर आवाज़ उठाती हुई, नारी के लिए सशक्तिकरण की माँग करती हुई कविता है।
- तुम न आए : ‘तुम न आए’ एक हिंदी कविता है जिसे कवि ज़ुबैर खाँन ने लिखा है। यह एक प्रेम कविता है जिसमें कवि अपने प्रेम का इंतज़ार कर रहे हैं।
पढ़िए और कविताएँ :
- प्यारे जीजाजी | हिंदी कविता जैसा की कविता के नाम से प्रत्यक्ष है, उम्मेद सिंह सोलंकी “आदित्य” जी की यह कविता उनके प्यारे जीजाजी के लिए है।
- माँ का रोपित वसंत: कोरोना काल में जहाँ कई लोग फिर से किसी ना किसी रूप में प्रकृति से जुड़े हैं, वहीं ये कविता एक ऐसी लड़की के मन की आत्म संतुष्टि व्यक्त करती है जिसने वर्षों पूर्व अपनी माता द्वारा रोपित एक वृक्ष में ही अपने परिवार का एक हिस्सा देखना शुरु कर दिया था और इसलिए अब उसे अकेला महसूस नहीं होता । पढ़िए बचपन याद करती यह सुंदर कविता।
- हमारे घर का आँगन: इस कविता में कवि सौरभ रत्नावत अपने घर की ख़ूबसूरती को बयाँ कर रहे हैं। साथ ही उनके परिवार और प्रकृति के बीच कैसे तालमेल बैठा हुआ है यह भी समझा रहे हैं।
अगर आप भी कहानियाँ या कविताएँ लिखते हैं और बतौर लेखक आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमसे ज़रूर सम्पर्क करें storiesdilse@gmail.com पर। आप हमें अपनी रचनाएँ यहाँ भी भेज सकते हैं: https://storiesdilse.in/submit-your-stories-poems/
Image by neerjat
1,486 total views