मेरे महबूब को |हिन्दी में प्रेम कविता

जुबैर खाँन की कविता | A Hindi poem by S Zubair Khan

मेरे महबूब को | ज़ुबैर खान की कविता

संक्षिप्त परिचय : कवि अपने महबूब को दुल्हन की तरह सजा देख कर उनकी तारीफ़ के पुल बांध रहे हैं । आप भी पढ़िए यह ज़ुबैर जी की यह सुंदर प्रेम कविता हिंदी में।

मेरे महबूब को कोई सजाओ आकर।
बहारो दुल्हन इसको बनाओ आकर।।

शर्माता है दिलबर अपने श्रंगार से।
लाओ मेहंदी के फसाने तलबगार से।
महक़ाओ रागनियों से उसे खुश्बू लगाकर।।

सजाओ इनको इस तरह फूल भी शर्माये।
हूरे इसको देखकर खुदको भूल जाये।
उड़ादो इसको हाया की रिदा मगाँकर।।

बहारो नग़्मे तुम प्यार के तुम सुनाओ।
शहनाई कुछ मीठी कानो मे घोल जाओ।
फूल मेरे महबूब पर तुम बरसाकर ।।

तबस्सुम रेज़ गुलइज़ार सा महबूब मेरा।
तमाम खुशीयों का मालिक है हबीब मेरा।
जिसे देखकर जीता हूँ। कहकर दिलबर।।

खुबसूरत चमक़ता क़मर -ऐ-रूख़े रोशन।
किस्मत से दमक़ता बेक़रारो देख दमन।
चराग़-ऐ-उल्फ़त जलाऊँगा घर मे लाकर।।

सेहरा बाँधकर मेरा महबूब आता है।
आफ़्सा से माँग भर दूं जी चाहता है।
तुमको “ज़ुबैर” चाहेगें अहद -ऐ- उम्रभर।।

लेखक – ज़ुबैर खाँन………📝


कैसी लगी आपको यह प्रेम कविता हिन्दी में “मेरे महबूब को” ? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवि को भी प्रोत्साहित करें।

इस हिंदी कविता ‘मेरे महबूब को’ के लेखक ‘जुबैर खाँन’ जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।


पढ़िए ज़ुबैर खाँन द्वारा लिखी गयी और कविताएँ यहाँ:

  • शिकायतें | हिन्दी में कविता : बाबा से कुछ शिकायतें कर रहे हैं कवि इस हिन्दी कविता में। पढ़िए यह कविता और जानिए क्या हैं ये शिकायतें ।
  • तन्हाई का सफर | कविता : तन्हाई – किसे पसंद है? कई जज़्बातों से जुड़ जाती है तन्हाई । ऐसे ही कुछ जज़्बातों को बयाँ करती हैं ज़ुबैर खाँन की यह कविता ।
  • विदाई: एक लड़की जो अब तक अपने बाबुल के घर रही, वह शादी करती है, तो उसे दुल्हन बन कर विदा होना पड़ता है। वह विदाई का पल सब के लिए एक बहुत ही भावपूर्ण पल होता है। इसी विदाई पर है ज़ुबैर खाँन की यह कविता ।
  • ये कैसे हैं रिश्तेयह एक रिश्तों पर कविता है जिसे लिखा है कवि ‘जुबैर खाँन’ ने । अपनी इस कविता में कवि रिश्तों की विचित्रता का वर्णन कर रहे हैं।

पढ़िए और हिन्दी प्रेम कविताएँ:-

  • तुम कहो आज मैं सुनूँगा : यह कविता दाम्पत्य प्रेम को बनाए रखने का उपाय बड़े ही सरल ढंग से समझाती है। कैसे? जानने के लिए पढ़िए शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’ की यह प्रेम पूर्ण कविता ।
  • हमसफ़र: जब एक स्त्री अपने जीवनसाथी को देखती है तो उसके मन में ज़रूर कुछ सवाल उठते होंगे, जिन्हें वो कभी पूछ पाती होगी कभी नहीं। उन्हीं प्रश्नों को अपनी कविता में ख़ूबसूरती से उकेरा है आरती वत्स ने।
  • बिना तेरे: प्रेम में बिछड़ना, अपने प्रेम के बिना रहना, उन्हें भूलने की कोशिश करना पर फिर भी ना भूल पाना – बस ऐसे ही दर्द को बयाँ करती है यह कविता ‘बिना तेरे’।
  • प्रेम: दुनिया में मनुष्य ने चाहें बहुत कुछ हासिल कर लिया हो और आज उसे कई चीजों की ज़रूरत ना महसूस होती हो। पर प्रेम एक ऐसी भावना है जिसे हर मनुष्य महसूस करना चाहता है। ऐसे ही प्रेम पर आरती वत्स की यह अद्भुत कविता ।

अगर आप भी कहानियाँ या कविताएँ लिखते हैं और बतौर लेखक आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमसे ज़रूर सम्पर्क करें storiesdilse@gmail.com पर। आप हमें अपनी रचनाएँ यहाँ भी भेज सकते हैं: https://storiesdilse.in/submit-your-stories-poems/


Photo by AMISH THAKKAR

 204 total views

Share on:

One thought on “

मेरे महबूब को |हिन्दी में प्रेम कविता

जुबैर खाँन की कविता | A Hindi poem by S Zubair Khan

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *