संक्षिप्त परिचय : कवि अपने महबूब को दुल्हन की तरह सजा देख कर उनकी तारीफ़ के पुल बांध रहे हैं । आप भी पढ़िए यह ज़ुबैर जी की यह सुंदर प्रेम कविता हिंदी में।
मेरे महबूब को कोई सजाओ आकर।
बहारो दुल्हन इसको बनाओ आकर।।
शर्माता है दिलबर अपने श्रंगार से।
लाओ मेहंदी के फसाने तलबगार से।
महक़ाओ रागनियों से उसे खुश्बू लगाकर।।
सजाओ इनको इस तरह फूल भी शर्माये।
हूरे इसको देखकर खुदको भूल जाये।
उड़ादो इसको हाया की रिदा मगाँकर।।
बहारो नग़्मे तुम प्यार के तुम सुनाओ।
शहनाई कुछ मीठी कानो मे घोल जाओ।
फूल मेरे महबूब पर तुम बरसाकर ।।
तबस्सुम रेज़ गुलइज़ार सा महबूब मेरा।
तमाम खुशीयों का मालिक है हबीब मेरा।
जिसे देखकर जीता हूँ। कहकर दिलबर।।
खुबसूरत चमक़ता क़मर -ऐ-रूख़े रोशन।
किस्मत से दमक़ता बेक़रारो देख दमन।
चराग़-ऐ-उल्फ़त जलाऊँगा घर मे लाकर।।
सेहरा बाँधकर मेरा महबूब आता है।
आफ़्सा से माँग भर दूं जी चाहता है।
तुमको “ज़ुबैर” चाहेगें अहद -ऐ- उम्रभर।।
लेखक – ज़ुबैर खाँन………📝
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इस हिंदी कविता ‘मेरे महबूब को’ के लेखक ‘जुबैर खाँन’ जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
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Photo by AMISH THAKKAR
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अरे वाह बहुत सुंदर कविता