संक्षिप्त परिचय: ‘तुम न आए’ एक हिंदी कविता है जिसे कवि ज़ुबैर खाँन ने लिखा है। यह एक प्रेम कविता है जिसमें कवि अपने प्रेम का इंतज़ार कर रहे हैं।
बरसात आई सावन आया मगर तुम न आए,
तुम को हम ने दिल से पुकारा मगर तुम न आए,
आती रही जाती हवा मन बहलाती रही मगर तुम न आए,
जिद थी कि आज खुद को तन्हा न छोड़ेंगे,
मुझको अकेला देखकर तुम घर के अंदर न आए ।
तलाश करते रहे हम उन लम्हों को जिस में हर घड़ी रहता है,
मैं तुझको याद न करूँ मुझको ऐसे बहाने न आए,
तुमको हम ने दिल से पुकारा मगर तुम न आए,
क्या बात है जो इस कदर हमसे रूठे हो आज तक,
हमसे भी कोई मिले ऐसी मिलन की घड़ी कब आये ।
हमने तुमको दिल से पुकारा मगर तुम न आए,
खिड़की खुली रही दिल की मगर कोई पैगाम तेरे न आए,
दीप खाली रहे खुशी के, इन्हें जलाने मगर कोई न आए,
हमने तुमको दिल से पुकारा मगर तुम न आए ,
इल्जाम देते हे लोग तेरे जाने का मुझे मगर कोई भी इन को समझाने न आए।
भेजते रहे जवाब हम “जुबैर”से अपनी बेगुनाही का,
पढ़कर मेरे जज्बातों को, मुझको प्यार का मरहम लगाने मगर तुम न आए ।
हमने तुमको दिल से पुकारा मगर तुम न आए।
कैसी लगी आपको इंतज़ार में प्रेम बयाँ करती यह हिंदी कविता ? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवि को भी प्रोत्साहित करें।
इस हिंदी कविता के लेखक ‘जुबैर खाँन’ जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
पढ़िए ज़ुबैर खाँ की और कविताऐं :
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