ऑनलाइन क्लास | हिंदी हास्य कविता

कवयित्री शिखा सिंह 'प्रज्ञा' की कविता | A Hindi Comic Poem by Shikha Singh 'Pragya'

ऑनलाइन क्लास | हिंदी हास्य कविता | कवयित्री शिखा सिंह 'प्रज्ञा' की कविता | A Hindi Poem by Shikha Singh 'Pragya'

संक्षिप्त परिचय: लॉक्डाउन के समय में एक परेशानी बच्चों की भी है – वह है ऑनलाइन क्लास। इस क्लास को करने में क्या परेशानियाँ आती हैं जानिए इस हिंदी हास्य कविता में।

बोर हुए शिक्षक घर बैठे
लगा दिया ऑनलाइन क्लास
बूढ़ी दादी खाट पर बैठी
दादा बैठे द्वार पुकारे..

अम्मा जगा रही मुन्ना को
शुरू हो गया ऑनलाइन क्लास
लेत अंगड़ाई मुन्ना उठा
बैठ गए लैपटॉप के पास
ब्रश, मंजन कुछ किया नही है
ड्रेस पहने हैं जनाब
आँख मिचे वीडियो पर बैठे
शिक्षक कहे हो गई शुरुआत….

दिमाग में बैठा पब्ज़ का भूत
कब्ज़ लगे है मैथ का ज्ञान
इंग्लिश का इ समझ ना आए
हिन्दी का एच ऊपर से जाए
साइंस ने तो उड़ा दिया होश
पढ़ मुन्ना हो गए बेहोश
माँ दौड़ी उठ जाओ लाल
अब ना करना ऑनलाइन क्लास
बहन लाई ठंडा जलपान
पी लो भाई खत्म हो गई ऑनलाइन क्लास…..

शिक्षक का तो बात क्या कहना
स्कूल में जो कभी आए नही नित्य क्लास
आज दिए जा रहे ऑनलाइन ज्ञान पे ज्ञान
खत्म हुई जैसे ही क्लास
शिक्षक हो गए फिर उदास
समझ नही आए कुछ उनको
दिया नही बहुत दिन से
बच्चो को गलियों का वरदान
लगा दिया फोन मुन्ना को
कहे आजकल कहां हो लाल
सुन मुन्ना का दिमाग चकराया
छट से उसने बहाना बनाया
मोबाइल लैपटॉप सब खराब है बताया
बोला मुन्ना थोड़ा हूं मै भी बीमार…

क्रम रोज का चलता जाए
कभी नेट, कभी मुन्ना ऎसे
ही रास रचाएं और ऑनलाइन
क्लास चलता ही जाए….


कैसी लगी आपको ऑनलाइन क्लास और उससे जुड़ी परेशानियों पर यह हिंदी हास्य कविता ? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवयित्री को भी प्रोत्साहित करें।
यह कविता की लेखिका शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’ के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।


पढ़िए कवयित्री शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’ की और हिंदी कविताऐं:

  • तुम कहो आज मैं सुनूँगा : यह कविता दाम्पत्य प्रेम को बनाए रखने का उपाय बड़े ही सरल ढंग से समझाती है। कैसे? जानने के लिए पढ़िए शिखा सिंह (प्रज्ञा) की यह प्रेम पूर्ण कविता ।
  • हाँ मैं बदल गई हूँ: आज के समाज में जहां एक तरफ़ स्त्री को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी जाती है वहीं समाज का एक हिस्सा उसे वांछित सम्मान दे पाने में भी असक्षम है। यह कविता एक स्त्री के हृदय की आवाज़ है उसी समाज के लिए।
  • चलो आज कहीं घूम आते हैं: जब बहुत दिनों तक हम अपनों से मिल नहीं पाते। उनके साथ बैठ कर बातें नहीं कर पाते। उनके साथ कहीं घूमने नहीं जा पाते तो मन में कुछ भाव उठते हैं। वही भाव व्यक्त कर रही हैं शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’ जी अपनी इस हिंदी कविता “चलो आज कहीं घूम आते हैं” में ।

पढ़िए काका हाथरसी द्वारा लिखी गयी हिंदी हास्य कविताएँ:

  • 98 गुण + 2 अवगुण : काका हाथरसी की यह हास्य कविता पति के गुणों पर है।
  • अद्भुत औषधि: कवि लक्कड़ जी बीमार पड़ गए, डॉक्टर भी आए फिर पढ़िए क्या हुआ आगे। पढ़िए काका हाथरसी की यह हास्य कविता और हमें भी बताइए आपको कैसी लगी ?
  • अंगूठा छाप नेता : काका हाथरसी की यह कविता एक कड़वे सत्य को बड़ी सरलता से उजागर करती है। आप भी पढ़िए और बताइए क्या इस कविता ने आप को सोचने पर मजबूर किया?

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PC: Markus Winkler

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