संक्षिप्त परिचय: भारत की बेटियां सुरक्षित हैं? और अगर नहीं तो क्यों? हम क्या कर सकते हैं उन्हें सुरक्षित करने के लिए? क्या हम जो करते आए हैं वो सही है? ऐसे ही सवालों का जवाब देती कवयित्री रानी कुशवाह की यह हिंदी में कविता ‘सुनो क्या कहती हैं बेटियां’।
एक रावण को सिर्फ इसलिए हर वर्ष जलाया जाता है।
क्योंकि उसने माँ सीता का अपहरण किया था।
बहुत बड़े बड़े ज्ञानी , रामायण देखते हैं।
हर वर्ष रावण की चिता जलाते हैं।
क्या शर्म नहीं आती आप सबको, जो इंसान है ही नहीं उसे तुम क्या मारोगे? किस बात की खुशी मनाते हो?
कौन सी विजय का त्यौहार मनाते हो? आज देखिए इस बेटी को और इस जैसी बहुत सी बेटियां इन जानवर जैसे लोगों का शिकार होती हैं ।
और तब हर माँ रोती है।
फिर भी वह बेटी को एक पुष्प की कली के भाँति अपने घर में और हृदय में छुपा कर रखती है। उसे कभी आवाज तक नहीं उठाने देती है ।
उसे चुप रहने के लिए कहती है। क्योंकि वह बेटी है।
तभी तो यह सब होता है।
बस करिए अपनी बेटियों को ऐसे संस्कार सिखाना ,जो उसकी आबरू को तक ना बचा सके।
बस करिए बेटियों को फूल बनाना, जो हर किसी के पैरों तले कुचली जा सके।
क्यों हर पल बेटे को सूल और बेटी को फूल बनाया जाता है। अब हमारी बेटियां नहीं रुकेंगीं, फिर चाहे माता-पिता, रोकें या समाज या यह बलात्कारी।
बहुत शौक है ना सबको हर वर्ष मरे हुए इंसान के पुतले जलाने का, अरे कुछ तो शर्म करो ।
किस परंपरा को निभा रहे हो,
अब तो गौर करो ।
कब तक मरे हुए को मारोगे कब तक झूठे जश्न मनाओगे।
अब तो आगे बढ़ो ।
अगर सच्चे राम के भक्त हो तो
आज के रावण को मारो।
उसके लिए किसी दशहरे का इंतजार मत करो, जो भ्रष्टाचार करें एवं अत्याचार करें और जो बलात्कार करें ऐसे लोगों को जो जानवर कहलाने के भी लायक नहीं। उन्हें रोको, टोको और ऐसी यातनाएं दो कि फिर किसी की हिम्मत ना हो।
हमारी बेटियों का दामन मटमैला करने की ।
बहुत हुआ बेटियों को ,रोकना टोकना ,संस्कार देना ।
अब बेटों को दो संस्कार- शिष्टाचार के, सभ्यता एवं संस्कृति के, मानवता के, श्रेष्ठ आचरण के, सद व्यवहार के, ताकि कोई बेटा भ्रष्टाचारी ना बने ,बलात्कारी ना बने।
अगर बच्चों को संस्कार नहीं दे सकते तो, जन्म ही क्यों देते हो।
और फिर किस आधार पर हमें, सभ्यता और संस्कृति के पाठ पढ़ाते हो।
दिखता है तुम कितने ताकतवर हो।
कितने संस्कारी हो।
कितने बुद्धिमान हो।
अरे हर वर्ष उस उस व्यक्ति के पुतले को जलाते हो।
जिसको मरे हुए कितने वर्ष बीत गए, युग बदल गए। और जो प्रतिदिन हमारी बेटियों को, किडनैप करते हैं, उनके साथ छेड़छाड़ करते हैं ,दुर्व्यवहार करते हैं ,उनके बलात्कार करते हैं ।
वो आजाद घूमते हैं।
क्या यही वीरता है ,क्या यही संस्कार है। इन संस्कारों पर चलते चलते हमारी माताएं – बहनें, बहू और बेटियां, आज खिलौना बन चुकी हैं। जिससे जब चाहा तब खेला और फिर फेंक दिया। सामाजिक गड्डर में।
जिनमें थोड़ी बहुत और जान बची हो।
वह ये समाज ले लेता है।
ताने दे, दे कर।
हमारे देश में नारी की पूजा होती है । ऐसा सिर्फ सुना है, यहाँ तो कुछ और ही दिखाई देता है। जिन छोटी-छोटी बेटियों में ,आप माँ के दर्शन करते हो।
जिन बहुओं में आप माँ लक्ष्मी के दर्शन करते हो ।
आज उसी का अपमान हो रहा है। निरादर हो रहा है। इसीलिए हमारे देश से सुख, चैन और अमन दूर हो रहा है। और इस सब का कारण है अज्ञानता। अशिक्षा और बेटे बेटियों में भेदभाव करना।
स्वच्छ भारत अभियान पूरा सिर्फ कचरा साफ करने से नहीं होगा। अपने विचारों को स्वच्छ करने से होगा, गंदगी अपने आप खत्म हो जाएगी और भ्रष्टाचार भी।
– कवयित्री कुमारी रानी कुशवाह भोपाल मध्य प्रदेश
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कविता की लेखिका रानी कुशवाह के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
पढ़िए रानी कुशवाह की लिखी हुई भारत की बेटियों के लिए और हिंदी में कविताएँ:
- बेटियाँ: रानी कुशवाह की यह कविता ‘बेटियों पर है। अपनी कविता के माध्यम से वे बेटियों का महत्व तो समझा ही रही हैं साथ ही रूढ़ीवादी सोच की वजह से उन की हो रही स्थिति पर भी प्रकाश डाल रही हैं।
- हम बेटियाँ हिंदुस्तान की: रानी कुशवाह की यह कविता हिंदुस्तान में हो रहे नारी पर अत्याचार और उसकी वजह से पैदा हो रही कठिनाइयों पर प्रकाश डालती है।
पढ़िए बेटियां और उन पर अत्याचार की एक और कविता:
- अब तो कुछ करना होगा : यह कविता ‘अब तो कुछ करना होगा’ नारी पर हो रहे अत्याचार पर आवाज़ उठाती हुई, नारी को सशक्तिकरण की माँग करती हुई कविता है। पढ़िए कवि जुबैर खाँन द्वारा लिखी गयी यह कविता।
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