संक्षिप्त परिचय: रानी कुशवाह की यह कविता ‘बेटियाँ’, बेटियों पर है। अपनी कविता के माध्यम से वे बेटियों का महत्व तो समझा ही रही हैं साथ ही रूढ़ीवादी सोच की वजह से उन की हो रही स्थिति पर भी प्रकाश डाल रही हैं।
हर जगह हर मोड़ पर , एक नई शुरुआत है ।
बेटियाँ जो कल को थी , हाँ वही दिन आज है ।
देखा मैंने पल पल अँखियाँ ।
भेजती हैं चिट्ठियाँ ।
क्या करोगे तुम अगर कल को ना होंगी बेटियाँ।
हर जगह हर मोड़ पर तन्हा ही होती बेटियाँ ।
इन कुरीतियों के चलते पल-पल हैं रोती बेटियाँ ।
क्या करोगे तुम अगर कल को ना होंगी बेटियाँ।
हर बुराई से यह लड़ती तन्हा ही क्यूँ बेटियाँ ।
सूना घर आँगन लगेगा , जब ना होंगी बेटियाँ ।
क्या करोगे तुम अगर कल को ना होंगी बेटियाँ।
हर गली बेचैन होगी ,
सुनने को किलकारियाँ ।
क्या करोगे तुम अगर कल को ना होंगी बेटियाँ।
यह जमी बंजर सी होगी । खाली होंगी पेटियाँ ।
हर्ष का कालम ना होगा । जन ना होंगी बेटियाँ ।
क्या करोगे तुम अगर कलको ना होंगी बेटियाँ।
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पढ़िए बेटियों पर अन्य कविताएँ:
- बेटी: अनिल पटेल जी की यह कविता बेटी पर है। जो घर का महत्वपूर्ण अंश हो कर भी एक कुप्रथा से आज भी जूझती है।
- मेरी बेटी: बेटी दिवस पर प्रकाशित प्रमिला ‘किरण’ की यह कविता एक माँ की दृष्टि से बेटी के लिए प्रेम और ममता पूर्ण भावनाओं का खूबसूरत चित्रण है।
- हमारी बेटियाँ: बेटी दिवस पर यह कविता, बड़े ही सरल शब्दों में हमारे जीवन में बेटियों के महत्व को उजागर करती है।
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PC: Loren Joseph
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