परिचयत्मक टिप्पणी: कवि सौरभ कुमार अपनी कविता के ज़रिए अपने समर्पणभाव का वर्णन करते हैं।उनका समर्पणभाव इतना गहरा है कि वे अपना सब कुछ समर्पित कर देना चाहते हैं। पढ़िए उनकी यह भावपूर्ण कविता।
अपने जीवन का हर कण तुमको मैं आज समर्पित करता हूँ ।
निज हृदय का प्यारा टुकड़ा मैं तुमको अर्पित करता हूँ।
मेरे हृदय के नील गगन का तुम चंदा अरु तारा हो,
तुम ही ममता का सागर , तुम ही गंगा की धारा हो,
मेरे जीवन में आए हो मैं क्या सेवा कर सकता हूँ ,
अपने जीवन का हर कण तुमको मैं आज समर्पित करता हूँ।
मेरा जीवन तो बिखरा था, उसको तो तुमने संवारा है,
क्यों तुम भूले बैठे हो, मुझ पर अधिकार तुम्हारा है,
इस अधिकार के कारण ही यह सर कदमों में धरता हूँ,
अपने जीवन का हर कण तुमको मैं आज समर्पित करता हूँ।
मेरा जीवन तो बेरस था, तुमने ही रस झलकाया है,
मेरे सूखे जीवन में तुमने ही प्यार बहाया है,
ऐसे बहते प्यार को मैं किन हाथों में भर सकता हूँ,
अपने जीवन का हर कण तुमको मैं आज समर्पित करता हूँ।
तुमने इतने उपकार किए, मैं किस मुख से कह सकता हूँ,
मैंने अब तक तो बहुत सहा, अब और नहीं सह सकता हूँ,
स्वीकार करो इस अर्जी को, मैं स्वयं निवेदन करता हूँ,
अपने जीवन का हर कण तुमको मैं आज समर्पित करता हूँ।
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चित्र के लिए श्रेय: waldryano
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