संक्षिप्त परिचय: स्वदेशी पर यह कविता स्वदेशी समान अपनाने की प्रेरणा देती है। साथ ही स्वदेशी अपनाने के महत्व को समझाती है।
कर लो प्रण अब भीषणतम,
सदा स्वदेशी ही अपनाएंगे।
भारत की माटी के फूल से,
माँ भारती का हार बनाएंगे।
सदा स्वदेशी ही अपनाएंगे।।
अपने ही होंगे क्रेता विक्रेता,
अपनों से होगा भरा बाजार।
स्वदेशी जब होगा संबल,
नहीं सहेंगे मंदी की मार।
घर का पौधा रोपेंगे हम,
घर का ही फल खाएंगे।
सदा स्वदेशी ही अपनाएंगे।।
स्वदेशी वस्तु अपनाकर हम,
कर लेंगे अपनों से प्रीत।
दुनिया वाले विस्मित होकर,
सब गाएंगे भारत के गीत।
अब चाइनीज खिलौनों से,
निज घर को नहीं सजाएंगे।
सदा स्वदेशी ही अपनाएंगे।।
जब स्वदेश की माटी से,
सोंधी सोंधी खुशबू आएगी।
तब हर नर की बगिया में,
हर कली कली मुस्कायेगी।
स्वदेशी फूलों की माला ले,
जन गण मन हम गाएंगे।
सदा स्वदेशी ही अपनाएंगे।।
– रामप्रवेश पंडित मेदिनीनगर झारखंड
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