जग में रिश्ते हैं अनेक,
एक रिश्ता सबसे न्यारा ।
भाई का भाई से प्रेम,
कहलाता है भाईचारा।।
इसके हित अनिवार्य नहीं,
कि खून हमारा एक हो ।
इसकी बस एक चाहत है,
हृदय हमारा नेक हो हो।।
आज नश्वर हक के हेतु,
लड़ते हैं सहोदर भाई ।
जननी जनक मुंह ताकते,
होता दृश्य बड़ा दुखदाई ।।
भाईचारा एक भाव है,
मानवता का रखवाला।
यह सुरभित सुमन है,
यही है प्रेम की माला।।
आओ आज शपथ ले ले,
भाईचारा को अपनाएंगे।
जहां मिलेंगे दीन दुखी,
हम उनको गले लगाएंगे।।
होता है वह नर अधम,
करता नित जो अत्याचार।
इस जगत का बड़ा धर्म है,
हर भाई का भाई से प्यार।।
-रामप्रवेश पंडित, मेदिनीनगर झारखंड
रामप्रवेश पंडित जी की रक्षा बंधन पर लिखी हुई एक और कविता पढ़ें यहाँ ।
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