संक्षिप्त परिचय: बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर आस पास की ख़ूबसूरती का अनूठे ढंग से वर्णन करती है योगेश नारायण दीक्षित जी की यह कविता ।
वसंती धरा के संग पीत वस्त्रों में तुम,
उनकी चूनर उड़ाती हवाओं में तुम।।
अधरों से वंशी बजाते कान्हा सी तुम,
समस्त सृष्टि को गूंथती माला हो तुम।।
हर तरफ झूमती शै, किस तरह देख लें हम,
बदला मौसम तो बिखरी फिजाओं में तुम।।
अब तो लगता है हर दिशा चूमकर कह दूं,
इस जरा आत्मा के मिलन का बिंदु हो तुम।।
तुम तुम्हीं के लिए, हम हमीं के लिए हैं तो क्या,
एक-दूजे में दिखे,आईने की ऐसी तस्वीर हो तुम।।
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कविता के लेखक योगेश नारायण दीक्षित जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
उनकी कवितायें पढ़िए यहाँ:
- वेलेंटाइन: वेलेंटाइन डे – यह वह दिन है जो प्रेम के लिए है। जिसे दुनिया भर के प्रेमी धूमधाम से मनाते हैं। ऐसे में जीवन में प्रेम को कुछ अनूठे ही ढंग से पेश करती है योगेश नारायण दीक्षित जी की यह वेलेंटाइन डे पर कविता ।
- लोकतंत्र? | गणतंत्र दिवस पर कविता: गणतंत्र दिवस है और हम आज़ाद हैं, हाँ! पर कुछ सवाल कहीं ना कहीं तो आप में उठते ही होंगे। कुछ ऐसे ही सवालों की ओर ध्यान आकर्षित करती है यह कविता।
- कृषि कानून: आज भारत में कई किसान कृषि क़ानून का विरोध कर रहे हैं। आज के इसी माहौल पर कुछ अनोखे ढंग से प्रकाश डालती योगेश नारायण दीक्षित जी की यह कविता ।
- क्रिसमस का उल्लास: साल के आख़िरी माह दिसंबर और आने वाले नए साल की शुभकामनाएँ लिए यह छोटी सी हिंदी कविता ‘क्रिसमस का उल्लास’।
- बाजारों में तुम खूब चलोगे: इस दुनिया में कुछ चीजें क्यों होती हैं ये किसी को समझ नहीं आता। ऐसे ही कुछ पहलूओं पर व्यंग्य करती है ये व्यंग्यात्मक कविता ‘बाजारों में तुम खूब चलोगे’ ।
- देर नहीं लगती: इस जीवन में हम अलग अलग तरह के लोगों से मिलते हैं और बात करते हैं। कभी कहीं सच देखते और सुनते हैं और कहीं झूठ। ऐसे ही जीवन के सच और झूठ पर यह कविता।
- दिल कागज पर लिख लाया है: कभी अगर आपका दिल आपसे कुछ कहना चाहे, तो वो क्या कहेगा? कुछ ऐसे ही सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं कवि अपनी कविता ‘दिल कागज पर लिख लाया है’ के माध्यम से।
- इतना कैसे कर लेते हो : योगेश नारायण दीक्षित जी की जीवन पर यह कविता, जीवन के कुछ अजीब तथ्यों को सरलता से प्रस्तुत करती है।
- लॉकडाउन आदमी: योगेश नारायण दीक्षित जी यह कविता लॉकडाउन में भारत के एक आम आदमी की लॉकडाउन में हो रही हालत को बयाँ करती है|
- योगेश #दोलाईना #यूंही : योगेश नारायण दीक्षित जी यह कविता बदलती दुनिया में बदलते लोगों पर गौर करती है।
पढ़िए बसंत पर ही और कविताएँ :-
- माँ का रोपित वसंत: कोरोना काल में जहाँ कई लोग फिर से किसी ना किसी रूप में प्रकृति से जुड़े हैं, वहीं ये कविता एक ऐसी लड़की के मन की आत्म संतुष्टि व्यक्त करती है जिसने वर्षों पूर्व अपनी माता द्वारा रोपित एक वृक्ष में ही अपने परिवार का एक हिस्सा देखना शुरु कर दिया था और इसलिए अब उसे अकेला महसूस नहीं होता । पढ़िए बचपन याद करती यह सुंदर कविता।
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Photo by Tim Mossholder
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