फटे चिथड़ों में बुरे से हाल थे,
नन्हें कदम थे और सुकोमल गाल थे
भाई-बहन दो सड़क पर जा रहे थे
बाजार के सब रंग नजर आ रहे थे
राखियों से थीं दुकानें सब सजी
क्या राखियां ! रेशम के धागों से बनीं
नन्ही बहन ने अपने भईया से कहा
हैं राखियां, एक से बढ़कर एक यहां
इस बार ना छोटा सा धागा बांधूंगी
मां से मैं ये सुंदर राखी लेकर मांनूंगी
भईया ये सुन, मन में तो घबराया बड़ा
इस जिद पे मां डांटेंगी, मुश्किल में पड़ा
पैसों की गिनती ज्यादा नहीं था जानता
महंगे-सस्ते का फर्क लेकिन था पता
पीछे खड़ी एक कार तब आगे बढ़ी
झटका लगा, कुछ राखियां उससे गिरीं
चालक बेसुध सा आगे बढ़ता ही गया
राखी सड़क पर छोड़कर चलता गया
सुंदर मोती राखियों में थे जड़े
उन्हें देख बच्चे दोनों हतप्रभ थे खड़े
नन्हीं बच्ची ने उठाईं वह राखियां
झूमी ऐसे मिल गया जैसे जहां
आइने में देखता यह कार चालक
चलता रहा, और मुस्कुराता रहा अपलक

कवि के बारे में पढ़िए यहाँ: कवि – अपूर्व ।
चित्र के लिए श्रेय: starline – www.freepik.com
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Bhaisaheb kh rha hu ki apni kavitao ki ek book launch kar do…mante hi nhi meri baat …..kasam se dil khol utha











बहुत बहुत शुभकामनाए , खूब खुश रहो आगे बढ़ो ।

हमें देख कर अच्छा लगा ..
Wah bahut barhiya


tumko khub shubhkamnaye 


बेहतरीन। आज की चकाचौंध में छोटे से मन की ये सरल अभिलाषा।
बहुत सुंदर रचना बधाई के पात्र हो यू ही प्रगति करते रहो
बेहतरीन, भावनाओं को शब्दों में बहुत ही अच्छी तरह से पिरोया आपने।
आप के शब्दों मे भावनाओं का अति सुंदर चित्रण है।
बधाइयां।