संक्षिप्त परिचय : हमारा समाज, जहाँ आगे बढ़ने की कोशिश भी करता है वहीं कभी-कभी कुछ कुरीतियों की वजह से पीछे भी रह जाता है। एक ऐसी ही प्रथा जो आज भी परेशान करती रहती है वह है दहेज प्रथा। इसी पर एक छोटी सी कथा है उषा रानी जी की यह रचना ‘वह पागल औरत’ ।
मैंने अक्सर उसे बाजार से गुजरते हुए देखा है। उसका नाम तो पता नहीं है लेकिन वह औरत खूबसूरत जरूर रही है और नहा- धोकर साफ – सुथरी रहे तो आज भी वह खूबसूरत ही लगे। उसका एक हाथ रस्सी का सिरा पकड़े रहता। उसके पीछे रस्सी में गूंथा हुआ कबाड़ का ढेर घसीटते हुए चलता। उसका चेहरा गंदलाया- सा, रूखे- सूखे उलझे हुए बाल और फटे- पुराने मैले- से कपड़े। उसको देखकर कई सवाल उभरते, जिनका उत्तर पाना आसान नहीं है! वह कौन है? कहाँ रहती है? उसका नाम क्या है? हां! सब उसे पागल औरत ही कहते हैं!
एक दिन अचानक वह औरत सामने आती हुई दिखाई दी! एकदम साफ- सुथरी चमकती हुई! बाल भी सलीके से बंधे हुए! हवा में एक सवाल उछला-” ओह! परियों की रानी! आज सज- संवर के कहाँ जा रही हो ? “उसने पूछने वाले को घूरकर देखा! फिर हंस पड़ी! दो- चार मीठी गालियाँ देते हुए बोली-“सुसराल जा रही हूँ! “
फिर एक सवाल उछला-” ये कबाड़ लेकर? “
उसने फिर दो- चार गालियाँ देते हुए कहा-” ओए कलमुँहे! ये मेरा दहेज है! ससुरजी ने मंगाया हैं! “
सुनकर मेरे कान खड़े हो गये! वह अपनी धुन में आगे बढ़ गई! लेकिन मेरे मानस पटल पर कई प्रश्न चिन्ह अंकित कर गई! दहेज का विद्रूप आज भी हमारे सफेद-पोश समाज के मुँह पर काला दाग है जो जाने कितनी औरतों को पागलपन का शिकार बना जाता है और माँ- बाप के दिलों का नासूर बन जाता है!
स्वरचित लघुकथा
उषा रानी पुंगलिया जोधपुर राजस्थान
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यह जीवन का मूल्य समझाती कहानी की लेखिका उषा रानी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
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- दहेज एक मज़ाक : दहेज प्रथा समाज में एक कुरीति बन गयी है, इसके ख़िलाफ़ कई क़ानून होने के बावजूद भी लोग हैं जो इसको ग़लत नहीं समझते। ऐसे ही एक परिस्थिति पर है यह हिंदी लघुकथा ।
- बड़े घर की बेटी: आनंदी एक बड़े घर की बेटी है परंतु जहाँ उसका विवाह होता है वह घर उसके मायके जैसा नहीं होता। वह घर के हिसाब से अपने आप को ढाल लेती है बिना किसी शिकायत के पर एक दिन कुछ ऐसा हो जाता है कि वह सहन नहीं कर पाती। ऐसा क्या होता है और तब वह क्या करती है? जानने के लिए पढ़िए मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ‘ बड़े घर की बेटी ‘।
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