संक्षिप्त परिचय: आज इंसान ने तरक़्क़ी तो बहुत कर ली है पर क्या वो जिस सुकून की तलाश में था वो उसे मिल पाया है? जीवन पथ के कुछ ऐसे ही संघर्ष पर प्रकाश डालती है उषा रानी जी की यह कविता ।
तनावों के भंवर में फंसी ,
खुशियों की 🚣नाव,
जाने कहाँ खो गए,
भोले- भाले गाँव ।
चाहतों की आंधी ने
कितना बदल दिया ।
आदमी ढूंढ रहा
सुकून भरी ठंडी छाव ।
मंजिल बहुत दूर,
जाने कितने सफर,
छालों से भरे,
बहुत दुखने लगे पांव ।
जलते है जाने कितने,
एक दूसरे से,
रंजिशों की धूप में,
खेलता आदमी कितने दांव ।
खिले फूलों की किस्मत,
जाने कहाँ जायेंगे,
टूट कर बिखरेंगे या
छूएंगे भगवान के पांव ।
पंछी चहकते उपवन में,
डाली डाली फुदकते,
घोंसला कहाँ बनाऊँ
ढूंढ रही सुरक्षित छांव ।
जिंदगी का कहाँ ठिकाना
पल -पल में बदलती रंग,
कहाँ कहाँ नहीं भटके
आसमान में ढुंढते ठाव ।
अजीब कश्मकश में
रात-दिन खोज रहा,
चांद तारों की दुनिया में
अपने सपनों के गाँव ।
स्वरचित कविता
उषा रानी पुंगलिया जोधपुर राजस्थान.
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आपकी लिखी रचना “पांच लिंकों का आनन्द में” 2 अक्टूबर शनिवार 2021 को लिंक की जाएगी …. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा … धन्यवाद! !