संक्षिप्त परिचय: जब बहुत दिनों तक हम अपनों से मिल नहीं पाते। उनके साथ बैठ कर बातें नहीं कर पाते। उनके साथ कहीं घूमने नहीं जा पाते तो मन में कुछ भाव उठते हैं। वही भाव व्यक्त कर रही हैं शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’ जी अपनी इस हिंदी कविता “चलो आज कहीं घूम आते हैं” में ।
यूं कब तलक पैरों को घरों में बांधते हैं,
चलो आज फिर से साथ कहीं घूम आते हैं।
कई महीनों से मैं खुलकर मुस्कुराया नहीं,
चलो न आज फिर से साथ में मुस्कुराते हैं।
तू कुछ अपनी सुनाना कुछ मेरी सुन लेना,
चलो न आज बैठ कर कहीं बाते करते हैं।
किताबें बहुत सारी पढ़ लीं मैंने अबतक,
चलो किताबों के बारे में ही बताते हैं।
ये कविताऐं गजलें नज़्में हम नहीं जानते,
चलो आज तुमसे हम कुछ नया सीख जाते हैं।
मेरे अपने मुझसे जो खो गए जिंदगी में,
चलो न आज सभी को फिर से साथ लाते हैं।
दर्द के तराने बहुत पढ़ लिए जिंदगी में,
चलो न आज तुमको कुछ नया सा पढ़ाते हैं।
बहुत दिनों से तुम भी सुकूँ से सोए नहीं हो,
चलो न आज दो पैक मार कर सो जाते हैं।
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इस कविता की लेखिका शिखा सिंह ‘प्रज्ञा’ के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
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PC: Alex Iby
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