संक्षिप्त परिचय: कवयित्री प्रिया चतुर्वेदी जी की यह कविता स्त्री पर है। कैसा है आज भी एक स्त्री का जीवन, क्या विशेषताएँ हैं उसकी, पढ़िए इस कविता में।
आँसुओं का पी समंदर
पीड़ा लिए है घोर अंदर,
फिर भी मुस्काती है ,
एक स्त्री कितनी सादगी से हर गम छुपाती है …….
इस संसार में कोई समझ ना पाया है,
ऋषि मुनियों तपेश्वरीयों ने तप कराया है,
इस संपूर्ण सृष्टि की सृजन-करता है,
जो उसे जग ने महज़ भोग की वस्तु बनाया है
लिए अस्तित्व की पहचान,
बनाए रखने अपना मान,
सब कुर्बान जाती है,
एक स्त्री कितनी सादगी से हर गम छुपाती है ……..
कभी अपनों कभी गैरों के लिए बलि चढ़ी है,
स्त्री सदा ही अस्तित्व के खातिर लड़ी है,
अधिकार में स्थान किंचित मात्र है उसका,
किंतु त्याग, समर्पण में सदा आगे खड़ी है
वही दुर्गा वही काली,
नम्र उदार हृदय वाली,
क्षमादात्री है हर दुख भूल जाती है,
एक स्त्री कितनी सादगी से हर गम छुपाती ………..
सोच रही है आज वह अपने अंतर्मन में,
क्या पाया है आकर उसने इस जीवन में,
कौन भला समझा है उसकी पीड़ा को ,
उसके मन की व्यथा रही निज मन में
व्याकुल हृदय से रोती है,
पीड़ा उसको भी होती है,
फिर भी मुस्कुराती है,
एक स्त्री कितनी सादगी से हर गम छुपाती है।।
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कविता की लेखिका प्रिया चतुर्वेदी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।
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हाँ मैं एक पत्रकार हूँ: यह एक पत्रकार पर कविता है जो लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ को समर्पित है जो दिन रात कड़ी मेहनत और लगन शीलता से हम सब लोगों तक न केवल खबरें पहुंचाते हैं बल्कि समाज को सच्चाई से भी रूबरू कराते हैं।
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PC: Molly Belle
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