देर नहीं लगती | सच और झूठ पर कविता

कवि योगेश नारायण दीक्षित की कविता | A Hindi poem written by Yogesh Narayan Dixit

देर नहीं लगती | सच और झूठ पर कविता | कवि योगेश नारायण दीक्षित की कविता | A Hindi poem written by Yogesh Narayan Dixit

संक्षिप्त परिचय: इस जीवन में हम अलग अलग तरह के लोगों से मिलते हैं और बात करते हैं। कभी कहीं सच देखते और सुनते हैं और कहीं झूठ। ऐसे ही जीवन के सच और झूठ पर यह कविता।

आँखें बोलती हैं जिनकी आवाज नहीं होती
तस्वीर बदलने में ज्यादा देर नहीं लगती।

झूठ के आवरण में सच
मिश्री में लपेटी अदरक
और शोर मचाती चुप्पी

बनावटी चेहरे पहचानने में देर नहीं लगती।

एक के बाद है दूसरा
दूसरे के बाद तीसरा
फिर अंतहीन सिरा

जो रपटती है वो डोर छूटते देर नहीं लगती।

सीनाजोरी फिर मुंह छिपाई
नहीं दिखाई देती जग हंसाई
कुर्सी पर बैठे खाएं मलाई

आँख खुली तब देर समझने में देर नहीं लगती।
ये सच है कि तस्वीर बदलने में देर नहीं लगती।


कैसी लगी आपको सच और झूठ पर यह कविता? कॉमेंट कर के ज़रूर बताएँ और कवि को भी प्रोत्साहित करें।
इस कविता के लेखक योगेश नारायण दीक्षित जी के बारे में जानने के लिए पढ़ें यहाँ ।


पढ़िए योगेश नारायण दीक्षित जी की और कविताएँ:

  • दिल कागज पर लिख लाया है: कभी अगर आपका दिल आपसे कुछ कहना चाहे, तो वो क्या कहेगा? कुछ ऐसे ही सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं कवि अपनी कविता ‘दिल कागज पर लिख लाया है’ के माध्यम से।
  • इतना कैसे कर लेते हो : योगेश नारायण दीक्षित जी की जीवन पर यह कविता, जीवन के कुछ अजीब तथ्यों को सरलता से प्रस्तुत करती है।
  • लॉकडाउन आदमीयोगेश नारायण दीक्षित जी यह कविता लॉकडाउन में भारत के एक आम आदमी की लॉकडाउन में हो रही हालत को बयाँ करती है|
  • योगेश #दोलाईना #यूंही : योगेश नारायण दीक्षित जी यह कविता बदलती दुनिया में बदलते लोगों पर गौर करती है।

पढ़िए ऐसी ही जीवन के सच और झूठ पर और कविताएँ:

  • ये कैसे हैं रिश्ते: ‘ये कैसे हैं रिश्ते’, यह एक रिश्तों पर कविता है जिसे लिखा है कवि ‘जुबैर खाँन’ ने । अपनी इस कविता में कवि रिश्तों की विचित्रता का वर्णन कर रहे हैं।
  • स्वार्थी संसार: इस कविता में कवि बता रहे हैं कि कैसे दुनिया में सभी स्वार्थी हैं और सब के हित के लिए यह संसार क्या कर सकता है। पढ़िए यह हिन्दी में कविता।
  • अजीब सी रात : यह हिन्दी कविता एक महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डालती है – मानसिक स्वास्थ्य पर। हम सब मिल कर कैसे किसी की ऐसे में सहायता कर सकते हैं आइए जानते हैं इस कविता में।
  • हाँ मैं बदल गई हूँ: आज के समाज में जहां एक तरफ़ स्त्री को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी जाती है वहीं समाज का एक हिस्सा उसे वांछित सम्मान दे पाने में भी असक्षम है। स्त्री पर लिखी गयी यह कविता एक स्त्री के हृदय की आवाज़ है उसी समाज के लिए।

अगर आप भी कहानियाँ या कविताएँ लिखते हैं और बतौर लेखक आगे बढ़ना चाहते हैं तो हमसे ज़रूर सम्पर्क करें storiesdilse@gmail.com पर। आप हमें अपनी रचनाएँ यहाँ भी भेज सकते हैं: https://storiesdilse.in/submit-your-stories-poems/


PC:Daniele Levis Pelusi

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