संक्षिप्त परिचय: यह कविता लॉकडाउन के समय में क्वारंटाइन होने की वजह से मनुष्य के मन में उत्पन्न हो रही भावनायों का वर्णन करती है।
सूखे तन हो गये, रूखे मन हो गए,
हम मिले ही नहीं बहुत दिन हो गये।
कोई आकर के इतना सा कह दे जरा
कब खुलेगा बता लॉकडाउन तेरा।
हमने जो भी किया देख जायज़ किया,
आते -जाते सभी टाइम वायज किया।
कोई सौगंध ले ले भला राम की,
कुछ छुआ भी अगर सेनेटायज किया।
साथ देना पड़ा मास्क को भी मेरा।
कब खुलेगा बता लॉकडाउन तेरा॥
चाहतों की हमेशा रसायन रहे,
आज तक फिट रहे और फाइन रहे।
आ न जाएं विषैले विषाणु कभी,
इसलिए ही सदा क्वारंटाइन रहे।
दूर रहकर तो बस है तेरा आसरा।
कब खुलेगा बता लॉकडाउन तेरा ॥
कवि मुकेश ‘मीत’ के बारे में और जानने के लिए पढ़ें यहाँ: कवि मुकेश ‘मीत’
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