संक्षिप्त परिचय: यह कविता उन पलों का विवरण है जब हम अपने आप को अकेला महसूस करते हैं। जब सुंदर से सुंदर चीज़ भी अच्छी नहीं लगती है।पढ़िए कवि के एस मोबिन की यह सुंदर कविता।
जब जिंदगी में अचानक खलिश आ जाए,
कुछ करने को ही न बचे,
जब मौसम के बदलने, पंछियो के चहचहाने,
नदियों के बहने, फसलों के लहराने,
सब बे-मतलब हो जाए।
वो जो तुम नहीं हो, उस पल बहुत याद आती हो।
जब गुनगुनाने को कोई तराना न सूझे,
जब उदासी में कोई हाल न बूझें,
जब खुद से ही मन नाराज रहना चाहे,
किसी के गले लग आंसु बहाना चाहे,
और तन्हाई, साथ न छोड़े,
वो जो तुम नहीं हो, उस पल बहुत याद आती हो।
ऐसा नहीं, की तुम कभी रही ही नहीं,
इन लाखों हसीन चेहरों में मुलाकात तुम से भी हुई,
कभी पूरब से बहती नमी लाई,
तो कभी दक्कन की साड़ी में लिपटी मुस्काई,
तुम संग मैं भी मुस्काया, शरमाया,
पांच दिन के मेले में सात रंग के सपने देख पाया,
फिर मेले के बाद की लंबी खामोशी,
बढ़ती बैचेनी और राहत का इंतजार…
वो जो तुम नहीं हो, उस पल बहुत याद आती हो।
कवि के एस मोबिन के बारे में और जानने के लिए पढ़े यहाँ: कवि के. एस. मोबिन
चित्र के लिए श्रेय: Alemko Coksa
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