अंगूठा छाप नेता | Kaka Hathrasi ki Hasya Kavita

angootha chaap neta | काका हथरासी की हास्य कविता

अंगूठा छाप नेता | Kaka Hathrasi ki Hasya Kavita | angootha chaap neta | काका हथरासी की हास्य कविता

संक्षिप्त परिचय: काका हाथरसी की यह कविता एक कड़वे सत्य को बड़ी सरलता से उजागर करती है। आप भी पढ़िए और बताइए क्या इस कविता ने आप को सोचने पर मजबूर किया? ( Kaka Hathrasi ki Hasya Kavita )

चपरासी या क्लर्क जब करना पड़े तलाश !
पूछा जाता -क्या पढ़े ,कौन क्लास हो पास ?
कौन क्लास हो पास ,विवाहित हो या क्वारे !
शामिल रहते हो या  माता पिता से न्यारे ?
कह ‘काका’ कवि, छान बीन काफी की जाती ।
साथ सिफारिश हो, तब ही सर्विस मिल पाती ।।

कर्मचारियों के लिए ,है अनेक दुख-द्वन्द्व ।
नेताजी के वास्ते, एक नहीं प्रतिबंध ।।
एक नहीं प्रतिबंध , मंच पर झाड़ें लेक्चर ।
वैसे उनको  भैंस बराबर काला अक्षर ।।
कह ‘काका’, दर्शन करवा सकता हूँ  प्यारे ।
एम. एल. ए. कई , ‘अंगूठा छाप’ हमारे ।।


काका हाथरसी के बारे में और जानने के लिए पढ़िए यहाँ: कवि काका हाथरसी

पढ़िए काका हाथरसी की हास्य कविताएँ (Kaka Hathrasi ki Hasya Kavita) यहाँ:

  • 98 गुण + 2 अवगुण : काका हाथरसी की यह हास्य कविता पति के गुणों पर है।
  • अद्भुत औषधि: कवि लक्कड़ जी बीमार पड़ गए, डॉक्टर भी आए फिर पढ़िए क्या हुआ आगे। पढ़िए काका हाथरसी की यह हास्य कविता और हमें भी बताइए आपको कैसी लगी ?

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